'जब उपज का सही रेट ही नहीं मिलेगा तो किसान क्यों मानें शर्त', इस वजह से खारिज हुआ MSP का फॉर्मूला

'जब उपज का सही रेट ही नहीं मिलेगा तो किसान क्यों मानें शर्त', इस वजह से खारिज हुआ MSP का फॉर्मूला

भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने भी कहा कि उनके संघ ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. प्रस्ताव भ्रामक है, क्योंकि यह केवल पांच फसलों पर एमएसपी की गारंटी देता है. यह कृषि को पुनर्जीवित करने के किसी भी वास्तविक प्रयास की तुलना में ध्यान भटकाने वाली रणनीति अधिक लगती है.

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'जब उपज का सही रेट ही नहीं मिलेगा तो किसान क्यों मानें शर्त', इस वजह से खारिज हुआ MSP का फॉर्मूलासरकार के प्रस्ताव से क्यों नाराज हैं किसान?

केंद्र सरकार के प्रस्ताव से संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक), किसान मजदूर संघ, कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री चिंतित हैं. कहा जा रहा है कि रविवार रात को बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री द्वारा पांच फसलों की खरीद को लेकर पेश किए गए प्रस्ताव से वे सावधान हो गए हैं. दरअसल, किसान और सरकार के बीच मीटिंग समाप्त होने के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि मक्का और कपास के अलावा तीन दलहनी फसलों की खरीद एमएसपी पर की जाएगी. इसके लिए इन फसलों के उगाने वाले किसानों से पांच साल के लिए अनुंबध किया जाएगा. लेकिन उनके ये प्रयास विफल हो गए हैं, क्योंकि पंजाब में इनमें से अधिकांश फसलें एमएसपी से नीचे कीमतों पर बेची गई हैं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक,  पंजाब मंडी बोर्ड से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में किसानों ने 30 प्रतिशत कपास एमएसपी से नीचे बेची थी, और सरकारी एजेंसी ने केवल 15 प्रतिशत उपज खरीदी थी. मूंग के लिए, 76.56 प्रतिशत फसल एमएसपी से नीचे कीमतों पर बेची गई. इसी तरह मक्के की भी यही कहानी है. अकेले अमृतसर जिले में 3.21 लाख क्विंटल मक्का एमएसपी से नीचे बेचा गया है.

क्यों सतर्क हैं किसान

ऐसे में किसानों और अर्थशास्त्रियों को डर है कि केंद्र के नए प्रस्ताव से गेहूं और चावल के अलावा सभी फसलों पर एमएसपी पाने की मांग सिर्फ पांच तक सीमित हो जाएगी. उन्हें यह भी डर है कि NAFED, NCCF और CCI जैसी केंद्रीय एजेंसियों के साथ पांच साल के लिए अनुबंध करने की पेशकश साल भर के संघर्ष के दौरान 2020 में किसानों द्वारा खारिज किए गए तीन कृषि कानूनों में से एक को लाने के समान है.

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स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में क्या है खास

वहीं, संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि इसने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट (सी2+50 प्रतिशत) में दिए गए फॉर्मूले पर एमएसपी प्राप्त करने की किसानों की मुख्य मांगों को कमजोर और भटका दिया है. अर्थशास्त्री डॉ. एमएस सिद्धू ने कहा कि हालांकि अंतिम प्रस्ताव में विशिष्ट बातें बताई जाएंगी. लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार पांच फसलों - उड़द, तुअर, अरहर, कपास और मक्का के लिए अनुबंध खेती की बात कर रही है, जिस पर पांच साल के लिए सुनिश्चित बायबैक का प्रस्ताव है.

नाभा के किसान गुरबख्शीश सिंह ने भी केंद्र के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि किसान इन फसलों की खेती तभी करेंगे जब रिटर्न अधिक होगा या कम से कम धान की खेती पर मिलने वाले रिटर्न जितना अच्छा होगा. किसी को यह समझना होगा कि मूल्य अस्थिरता और उनके श्रम के अंतिम परिणाम की अनिश्चितता का सबसे अधिक सामना किसानों को करना पड़ता है.

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क्या सोचते हैं किसान

वहीं, भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने भी कहा कि उनके संघ ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. प्रस्ताव भ्रामक है, क्योंकि यह केवल पांच फसलों पर एमएसपी की गारंटी देता है. यह कृषि को पुनर्जीवित करने के किसी भी वास्तविक प्रयास की तुलना में ध्यान भटकाने वाली रणनीति अधिक लगती है.

पंजाब के किसानों को मिला सबसे अधिक लाभ

हालांकि, राज्य कृषि विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यह प्रस्ताव पंजाब की खराब कृषि को आगे बढ़ाने का एकमात्र रास्ता है. केंद्र अपने दावे में सही है कि पंजाब के किसानों को देश में सब्सिडी और एमएसपी का सबसे अधिक लाभ मिल रहा है. यदि हमें कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना है तो फसल विविधीकरण समय की मांग है. यदि पुनर्खरीद का आश्वासन दिया गया है, तो किसानों को प्रस्ताव स्वीकार करना चाहिए.

 

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