राजस्थान के भीलवाड़ा के राजसमंद और अजमेर जिले की सीमा पर स्थित एक ऐसा गांव है जो सौ घरों की बस्ती है. मगर इस गांव की एक बहुत ही खास बात है. वो बात ये है कि शनिवार को इस पूरे गांव के लोग दूध का उपयोग नहीं करते, बल्कि अपने आराध्य को चढ़ाते हैं. ये आराध्य देव हैं भगवान देवनारायण. इस गांव के लोग सप्ताह के हर शनिवार को दूध नहीं बेचकर भगवान देवनारायण को चढ़ा कर भोग लगाते हैं. गांव की यह परंपरा सैकड़ों सालों से आज भी जारी है.
भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों की सीमा पर बसे रिच्छमाल गांव में 150 फीट ऊंची पहाड़ी पर श्याम बाबा के नाम से शिव मंदिर धूणी और भगवान देवनारायण का मंदिर है. भगवान देवनारायण में गांव वालों की ऐसी आस्था है कि गांव के सभी 100 घरों के लोग हर शनिवार को दूध नहीं बेचकर भगवान देवनारायण को उसका भोग लगाते हैं.
इस गांव के नाम के पीछे एक कहानी भी है. दरअसल एक युद्ध में 24 बगड़ावत में से एक भाई तेजाजी यहां के धूणी पर छुप गए थे. इसलिए इसका नाम रिच्छमाल जी की धूणी पड़ा. चट्टान के नीचे वह धूणी आज भी विद्यमान है. इस मंदिर में जाने के लिए गांव वाले 251 सीढ़ियां चढ़ने के बाद भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं.
रामपुरा ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच तेजमल गुर्जर कहते हैं कि यह हजारों साल पुरानी संतों की तपोभूमि है. यहां के लोग शनिवार को दूध नहीं बेचकर भगवान देवनारायण के चढ़ाते हैं. यह बहुत पुरानी परंपरा है जो आज तक इस गांव के लोग निभा रहे हैं. कुछ महीनों पहले यहां पर 11 दिवसीय रुद्राक्ष और 51 कुंडीय कलश यज्ञ भी हुआ था, जिसमें शिव मंदिर पर कलश भी चढ़ाया गया था और भगवान हनुमान जी की मूर्ति स्थापना की गई थी 150 फीट ऊंची पहाड़ी पर 211 सीढ़ियां चढ़ने के बाद भगवान देवनारायण के दर्शन होते हैं.
इसी के पास स्थित है भगवान देवनारायण का प्राकट्य स्थल मालासेरी की डूंगरी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दर्शन करने आए थे. इसी के पास गुर्जर समाज का राष्ट्र प्रमुख तीर्थ स्थल सवाई भोज मंदिर भी है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today