चिकन-अंडे का पोल्ट्री बाजार तलवार की धार पर चलने वाला कारोबार है. एक छोटी सी अफवाह भी इस बाजार को नीचे गिरा देती है. एक झटके में पोल्ट्री फार्मर सड़क पर आ जाते हैं. आज पोल्ट्री फार्मर बाजार में चिकन-अंडे के रेट और क्वालिटी से नहीं सोशल मीडिया समेत पांच दूसरे मोर्चों पर लड़ाई लड़ रहा है. हालांकि इस लड़ाई में अभी पोल्ट्री फार्मर अकेला है, लेकिन जल्द ही केन्द्र और राज्यों सरकारों से कोई मदद नहीं मिली तो पोल्ट्री सेक्टर पिछड़ जाएगा. आज जब भारत के अंडे वर्ल्ड के कई देशों में अपनी पहचान बना रहे हैं वो सब कोशिश बेकार चली जाएंगी.
वहीं दूसरी ओर आज चिकन-अंडे का प्रोडक्शन बढ़ाने के साथ ही उसकी खपत बढ़ाने को प्रचार-प्रसार करना भी जरूरी है. ये कहना है पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) के प्रेसीडेंट रनपाल डहंडा का. गोवा में चल रही फेडरेशन की एनुअल जनरल मीटिंग के दौरान किसान तक से बातचीत के दौरान उन्होंने पोल्ट्री सेक्टर से जुड़े ये मुद्दे रखे. इस मीटिंग में देशभर के पोल्ट्री सेक्टर से जुड़े 300 से ज्यादा लोग हिस्सा ले रहे हैं.
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पीएफआई के प्रेसीडेंट रनपाल डहंडा ने बुधवार को एजीएम को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में मुर्गें-मुर्गियों की फीड पर बड़ा असर पड़ने वाला है. पहले से ही पोल्ट्री बाजार फीड की कमी से जूझ रहा है. सोयाबीन की कमी और रेट को लेकर पोल्ट्री फार्मर पहले से ही परेशान रहता है. लेकिन अब इथेनॉल भी पोल्ट्री फीड पर बड़ा असर डलेगा. अभी तक सोयाबीन और मक्का फूड और फीड के लिए इस्तेमाल हो रहे थे.
एजीएम में एवियन इन्फ्लूएंजा का मुद्दा भी छाया रहा. रनपाल डहंडा का कहना है कि अब देश के किसी ना किसी हिस्से से एवियन इन्फ्लूएंजा के बारे में लगातार खबर आती रहती हैं. मुर्गें-मुर्गियों को होने वाली ये बीमारी पोल्ट्री फार्मर को पूरी तरह से सड़क पर ला खड़ा करती है. अभी तक इस पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया गया है. हम देश में वेटरनरी की वैक्सीन पर काम करने वाले संस्थान और सरकार से मांग करते हैं कि वो जल्द से जल्द इस बीमारी पर काबू पाएं. इस काम के लिए जब भी, जहां भी फेडरेशन की जरूरत होगी वो हमेशा साथ देगी.
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अंडे के लिए मुर्गियां पालने वाला हो या चिकन के लिए मुर्गें पालने वाला, आज हर कोई सोशल मीडिया से पीड़ित है. जानकारी न होने पर भी लोग सोशल मीडिया पर अंडे-चिकन से जुड़ी तमाम अफवाहें उड़ाते हैं. कभी कहते हैं कि अंडे और चिकन के लिए मुर्गे-मुर्गियों को बड़ी मात्रा में एंटी बॉयोटिक्स खिलाई जाती हैं. जबकि अगर सर्वे करा लिया जाए तो पोल्ट्री सेक्टर में इस दवाई का इस्तेमाल बहुत ही कम निकलेगा.
वो भी तब किया जाता है जब मुर्गी बीमार हो. ये तो सिर्फ एक बानगी है. इसी तरह की और भी ना जाने कितनी ही अफवाहें उड़ाई जाती हैं. कभी कहा जाता है कि अंडा नॉनवेज है. अंडे में चूजा होता है. मुर्गे के संपर्क में आने के बाद मुर्गी अंडा देती है. जबकि ये पूरी तरह से वेजिटेरियन है. कोरोना के बाद से अंडे की डिमांड और बढ़ी है.
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