संसद के मानसून सत्र में भारतीय कृषि क्षेत्र को लेकर कई जानकारियां सामने आई हैं. इसमें अगर कुछ प्रमुख फसलों पर मौजूद आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि भारतीय कृषि क्षेत्र अभी भी समग्र मशीनीकरण के 50 प्रतिशत के स्तर तक नहीं पहुंच सका है. संसद में हाल ही में दिए गए जवाबों से पता चला है कि चावल, गेहूं, मक्का, ज्वार और बाजरा, दलहन, तिलहन, कपास और गन्ना जैसी फसलों के लिए कुल औसत मशीनीकरण स्तर 47 प्रतिशत है.
बिजनेसलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल सभी फसलों में बीज-बिस्तर तैयार करने के लिए 70 प्रतिशत, बुवाई, रोपण, रोपाई के लिए 40 प्रतिशत, निराई और इंटर-कल्चरल के लिए 32 प्रतिशत और कटाई और थ्रेसिंग के लिए 34 प्रतिशत मशीनीकरण हुआ है, जिसका कुल औसत स्तर 47 प्रतिशत है.
फसलों में केवल गेहूं (69 प्रतिशत) और चावल (53 प्रतिशत) में 50 प्रतिशत से ज्यादा मशीनीकरण हुआ है. वहीं, अन्य फसलों- मक्का में 46 प्रतिशत, दालों में 41 प्रतिशत, तिलहन में 39 प्रतिशत, कपास में 36 प्रतिशत और गन्ने में 35 प्रतिशत मशीनीकरण स्तर तक पहुंचा है. ज्वार और बाजरा के मामले में मशीनीकरण स्तर 33 प्रतिशत है.
जुलाई 2023 में संसद के दोनों सदनों में पेश की गई 'देश में छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि मशीनीकरण में अनुसंधान और विकास' शीर्षक वाली संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश का समग्र कृषि मशीनीकरण स्तर चीन (59.5 प्रतिशत) और ब्राजील (75 प्रतिशत) जैसे अन्य विकासशील देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है.
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कृषि मशीनीकरण के लाभों के बारे में बताते हुए संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान बीज और उर्वरकों पर 15-20 प्रतिशत की बचत करते हैं. मशीनीकरण से बीजों के अंकुरण में 7-25 प्रतिशत सुधार होता है और किसानों का 20-30 प्रतिशत समय बचता है.
स्थायी समिति ने कहा कि देश में किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है, जब तक कि छोटी जोतों के लिए उपयुक्त मशीनें उपलब्ध नहीं कराई जाती या पर्याप्त कृषि एकीकरण नहीं होता, छोटे और सीमांत किसानों के लिए अपनी मशीनरी खरीदना मुश्किल है.
हालांकि, अधिकारियों का अनुमान है कि 75-80 प्रतिशत मशीनीकरण तक पहुंचने में देश को 25 वर्ष और लगेंगे. संसदीय स्थायी समिति के एक प्रश्न के जवाब में कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि वर्तमान 47 प्रतिशत के स्तर से 75-80 प्रतिशत मशीनीकरण के स्तर को प्राप्त करने के लिए 25 साल और लगेंगे.
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि सरकार ने देश में कृषि मशीनीकरण के समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए 2014-15 में कृषि मशीनीकरण पर एक उप मिशन शुरू किया था. इस योजना के तहत राज्य सरकारों को कृषि मशीनरी का प्रशिक्षण और प्रदर्शन प्रदान करने तथा किसानों को विभिन्न कृषि मशीनरी और उपकरणों की खरीद में सहायता करने के साथ-साथ कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान की जाती है.
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