New Wheat Varieties: जलवायु परिवर्तन को मात देंगी गेहूं की 3 नई किस्में, कम समय में मिलेगी बंपर पैदावार

New Wheat Varieties: जलवायु परिवर्तन को मात देंगी गेहूं की 3 नई किस्में, कम समय में मिलेगी बंपर पैदावार

जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए वैज्ञानिकों ने गेहूं की 3 नई किस्में तैयार की हैं. ये किस्में गर्मी सह सकती हैं और कम समय में पक जाती हैं. सबसे खास बात यह है कि इनसे किसानों को बहुत ज्यादा पैदावार मिलती है. साथ ही, ये इनमें रोग बीमारी कम होती हैं और इनमें प्रोटीन भी ज्यादा होता है जिसके बारे में डिटेल जानकारी दी गई है.

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जलवायु परिवर्तन को मात देंगी गेहूं की 3 नई किस्में, कम समय में मिलेगी बंपर पैदावारगेहूं की नई किस्मों से मिलेगी अधिक पैदावार

बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भारतीय कृषि वैज्ञानिक लगातार नए समाधान खोजने में जुटे हैं. उनका लक्ष्य ऐसी फसलें विकसित करना है जो न केवल विपरीत परिस्थितियों जैसे कि अधिक गर्मी और कम पानी में उग सकें, बल्कि किसानों को बेहतर पैदावार और अधिक पोषक तत्व भी प्रदान करें. इसी प्रयास में, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने गेहूं की कई नई किस्में विकसित की हैं, जो रोग प्रतिरोधी, अधिक उपज देने वाली और जल्दी पकने वाली हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजबीर यादव ने गेहूं की तीन प्रमुख किस्मों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. 

HD 3410 (पूसा जवाहर गेहूं)

गेहूं की यह किस्म मध्य भारत के लिए एक वरदान है, जिसे विशेष रूप से मध्य प्रदेश और दिल्ली के आसपास के मैदानी इलाकों में जल्दी बुवाई के लिए विकसित किया गया है. जहां गेहूं की पारंपरिक किस्में नवम्बर में  बोई जाती  है मगर यह 20 किस्म अक्टूबरके बाद कभी बोई जा सकती है .इससे  किस्म की फसल को ज्यादा समय मिलता है जिससे दूसरे किस्मों की तुलना में अधिक पैदावार मिलता है 

इस किस्म की औसत उपज लगभग 66-67 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो मौजूदा किस्मों की तुलना में काफी अधिक है. इसमें 12.6% उच्च प्रोटीन की मात्रा होती है, जो इसे पोषण की दृष्टि से बहुत बेहतर बनाती है. इसके आटे से बनी ब्रेड और बिस्किट की गुणवत्ता भी उत्तम होती है. यह किस्म गेहूं में लगने वाले तीनों प्रमुख रस्ट (रतुआ) रोगों—धारीदार रतुआ, पत्ती रतुआ और तना रतुआ—के प्रतिप्रतिरोधी है. साथ ही, यह करनाल बंट जैसी बीमारी से भी फसल को सुरक्षित रखती है. इसके पौधे की ऊंचाई 100-105 सेंटीमीटर तक होती है, जिससे फसल के गिरने का खतरा कम हो जाता है. अपनी इन्हीं खूबियों के कारण HD 3410 किसानों को बेहतर उपज और लाभ देने वाली किस्म है.

HD 3388 (पूसा यशोधरा गेहूं)

यह किस्म पूर्वी भारत के किसानों के लिए तैयार की गई है. यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम जैसे राज्यों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, जहां अक्सर बदलता मौसम फसल के लिए चुनौती बनता है. HD 3388 की सबसे बड़ी खासियत इसकी गर्मी सहन करने की अद्भुत क्षमता है, जो इसे जलवायु परिवर्तन के दौर में बहुत उपयोगी बनाती है.

यह 2967 से बेहतर किस्म है जो समय और देऱ से बोई जा सकती है, जिससे किसानों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता. इस किस्म से किसानों को प्रति हेक्टेयर लगभग 52 क्विंटल की औसत उपज मिलती है, और इसकी अधिकतम उत्पादन क्षमता 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक जा सकती है. यह किस्म भी पत्ती रतुआ, धारीदार रतुआ और तना रतुआ जैसे प्रमुख रोगों के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधक क्षमता रखती है, जिससे फसल सुरक्षित रहती है.

गेहूं HD 3390

दिल्ली और एनसीआर के किसानों के लिए IARI ने HD 3390 किस्म जारी किया है जिसे समय पर सिंचित बुवाई की परिस्थितियों के लिए बनाया गया है. इस किस्म की औसत उपज 62.36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि इसकी संभावित उपज 71.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. यह फसल लगभग 144 दिनों में पककर तैयार होती है. इसमें 12% प्रोटीन होता है, जिस कारण इसका आटा चपाती बनाने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. HD 3390 में रतुआ रोगों से लड़ने के लिए विशेष जीन (Yr10) मौजूद है, जो इसे भारत में पाए जाने वाले सभी रतुआ रोगों से बचाता है. यह किस्म दिल्ली-एनसीआर के किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन और बेहतर मुनाफा दे सकती है.

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