बाजार में दही और दही से बनी लस्सी की डिमांड लगातार बढ़ रही है. डेयरी कंपनियों पर इसका खासा दबाव पड़ रहा है. कई बार तो मार्केट की डिमांड वक्त से पूरी नहीं हो पाती है. ऐसा नहीं है कि दही बनाने के लिए दूध की कमी है. भारत विश्व में दूध उत्पादन में पहले नंबर पर है. लेकिन दही को लेकर डेयरी इंडस्ट्री की सबसे बड़ी परेशानी है वक्त. जी हां, दूध से दही बनने में लगने वाला वक्त इस इंडस्ट्री की बड़ी परेशानी में से एक है. लेकिन गुरू अंगद देव वेटरनरी एंड एनीमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु) के डेयरी साइंटिस्ट ने डेयरी इंडस्ट्री की इस परेशानी का हल खोज लिया है.
अब दूध से दही बनाने में कितना वक्त लगेगा ये सब पहले से फिक्स रहेगा. इतना ही नहीं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रणव कुमार सिंह की मानें तो इस नई रिसर्च के बाद दही को जल्दी खराब होने से भी बचा सकेंगे. डॉ. प्रणव के मुताबिक इस खोज के द्वारा बहुत ही छोटे आकर के गैस के बुलबुले के द्वारा दही, लस्सी और उसी प्रकार के और भी फर्मेन्टेड डेरी ड्रिंक के लिए ये उपयोग किया जा सकता है
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किसान तक से बातचीत करते हुए डॉ. प्रणव ने बताया कि दही-लस्सी की डिमांड को देखते हुए डेयरी कंपनियों पर दबाव रहता है. वक्त से ग्राहक की डिमांड को पूरा करना भी कारोबार के लिहाज से जरूरी है. लेकिन दूध से दही बनने में लगने वाला वक्त हमारी इस रिसर्च के बाद से कम हो जाएगा. इतना ही नहीं, अभी तक होता ये है कि दही के खराब होने की मियाद बहुत ही कम होती है. छह से सात दिन में पैक्ड दही खराब होने लगता है.
लेकिन हमारी खोज के बाद दही की मियाद भी बढ़ जाएगी. अभी हम दावा कर सकते हैं कि कम से कम 14 से 15 दिन तक दही अच्छा बना रहेगा. गौरतलब रहे इस खोज में शामिल मशाीन आई.आई.टी. रोपड़ के वैज्ञानिक डॉ. नीलकण्ठ निर्मलकर ने बनायीं है और डॉ प्रणव के साथ मिल कर डेरी इंडस्ट्री में इसकी उपयोगिता पर काम कर रहे हैं.
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डॉ. प्रणव ने किसान तक को बताया कि हाल ही में फरमेंटेड फूड प्रोडक्ट, हैल्थ स्टेटस और सोशल वैलफेयर पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया था. सम्मेलन का आयोजन नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग में किया गया था. इस सम्मेलन का आयोजन नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग ने स्वीडिश साउथ एशियाई नेटवर्क ऑन फर्मेन्टेड फूड्स (ससनेट एफएफ) के साथ मिल कर किया था. सम्मेलन के आयोजन में स्वीडिश दक्षिण एशियाई नेटवर्क का सहयोग भी रहा है. अच्छी बात ये है कि इसी सम्मेलन के दौरान डॉ प्रणव को उनकी इस खोज के लिए बेस्ट पेपर प्रेजेंटर के खिताब से सम्मानित किया गया है.
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