MP Patwari Exam: छात्रों को 5 साल बाद मिला पटवारी बनने का मौका, मगर, गड़बड़ियों ने सभी को रोका

MP Patwari Exam: छात्रों को 5 साल बाद मिला पटवारी बनने का मौका, मगर, गड़बड़ियों ने सभी को रोका

मध्य प्रदेश में इन दिनों पटवारी भर्ती परीक्षा में हुई कथित गड़बड़ियों का मामला सत्ता, समाज और सियासत के गलियारों में खासा चर्चित है. इस मामले पर चल रही चर्चाओं के बीच यह जानना भी लाजमी है कि शासन प्रणाली में पटवारी के पद का कितना महत्व है और इस पद पर नौकरी पाने के लिए युवाओं में कितना क्रेज है.

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MP Patwari Exam: छात्रों को 5 साल बाद मिला पटवारी बनने का मौका, मगर, गड़बड़ियों ने सभी को रोकापटवारी भर्ती परीक्षा में कथि‍त गड़बड़ी के विरोध में छात्रों ने भोपाल में प्रदर्शन किया

मध्य प्रदेश में जिस पटवारी की भर्ती को लेकर बवाल मचा हुआ है, उसकी भर्ती के नियम विभिन्न राज्यों में भले ही अलग अलग हों, लेकिन ग्रामीण व्यवस्था में पटवारी की अहमियत पूरे देश में निर्विवाद रूप से एक समान है. ग्रामीण इलाकों में हर प्रकार की जमीन और राजस्व संबंधी रिकॉर्ड का 'कस्टोडियन' यानी पहरेदार, पटवारी ही होता है. इतना ही नहीं पीएम किसान सम्मान योजना में लाभार्थी होने के लिए कोई व्यक्ति किसान है या नहीं, इसका प्रमाण भी पटवारी ही देता है. इस पद का अपना एक इतिहास भी है. जिसके अनुसार सन 1500 में जन्मे राजा टोडरमल को पटवारी पद का जनक माना जाता है. राजा टोडरमल शेरशाह सूरी के दरबार में भू अभिलेख मंत्री थे. वित्त एवं राजस्व मामलों में सिद्धहस्त माने गए राजा टोडरमल को बाद में मुगल सम्राट अकबर के नवरत्न मंत्री के रूप में भी भू राजस्व मामलों का मंत्री बनाया गया.

टोडरमल ने ही गांवों में जमीन की नाप जोख रखने के लिए पटवारी तैनात किए थे. बाद में ब्रिटिश शासन में भी पटवारी प्रणाली को जारी रखते हुए मामूली बदलावों के साथ 1814 में एक कानून बनाकर शासन प्रणाली का अंग बनाया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने 1918 में देश के सभी गांवों में सरकार के प्रतिनिधि के रूप में लेखपाल नियुक्त किए. जिन्हें बाद में पटवारी कहा गया. पटवारी को जमीन की पैमाइश से लेकर लगान वसूली तक, राजस्व संबंधी तमाम जिम्मेदारियां दी गई.  

पटवारी की परीक्षा

यूपी, बिहार सहित अन्य राज्यों की तर्ज पर एमपी में भी लोअर ग्रेड की परीक्षा में पटवारी पद के लिए होने वाली भर्ती में युवाओं का क्रेज खूब देखने को मिलता है. इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश में इस साल पटवारी के लगभग 7 हजार पदों के लिए हुई परीक्षा में लगभग 13 लाख आवेदन किए गए थे. एमपी में दरअसल पटवारी पद पर भर्ती के लिए युवाओं ने इस बार एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. इसकी वजह पटवारी पद के लिए 5 साल बाद भर्ती परीक्षा आयोजित किया जाना था. मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल यानी एसईबी द्वारा पटवारी पद के लिए 15 मार्च से 26 अप्रैल के बीच 35 शिफ्टों में परीक्षा आयोजित की गई थी. जानकारों का मानना है कि लंबे इंतजार के बाद भर्ती परीक्षा  होने के कारण सरकार ने गड़बड़ी होने की आशंका के चलते 35 दिन में यह परीक्षा कराई. जिससे किसी भी तरह की गड़बड़ी को समय रहते रोका जा सके.

तकनीक का भरपूर इस्तेमाल

आम तौर पर पटवारी की परीक्षा में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र शामिल होते हैं. इस परीक्षा को लेकर सबसे ज्यादा क्रेज ग्रामीण इलाकों के युवाओं में ही होता है. जाहिर है कि ग्रामीण इलाकों के युवाओं में अत्याधुनिक तकनीक का सीमित ज्ञान होने के बावजूद एमपी सरकार ने किसी भी स्तर पर गड़बड़ी को रोकने के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली को अपनाया. इसमें ऑनलाइन आवेदन से लेकर परीक्षा भी ऑनलाइन ही हुई थी. जिससे पूरी परीक्षा प्रणाली पर सरकार की निगरानी बनी रहे. यही वजह रही कि इस परीक्षा को भिन्न भिन्न जिलों में 35 दिनों के दौरान आयोजित किया गया. इसके लिए इतना चाक चौबंद सिस्टम बनाया गया कि हर परीक्षा केंद्र को परीक्षा की अवधि के लिए जैमर से लैस तक किया गया. जिससे सेंटर के बाहर बैठे लोग ऑनलाइन परीक्षा के दौरान प्रश्न पत्र को हैक न कर लें.

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परीक्षा में मारामारी

पद और परीक्षार्थियों की संख्या को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि एमपी में पटवारी भर्ती के लिए किस हद तक गला काट कंपटीशन देखने को मिला. ग्रामीण इलाकों में रोजगार की कमी ने गांवों के पढ़े लिखे युवाओं को इस भर्ती में शामिल होने और परीक्षा में सफल होने के लिए हर हथकंडा अपनाने के लिए मजबूर कर दिया. एमपी में इससे पहले 2017 में पटवारी भर्ती परीक्षा हुई थी. उस समय लगभग 7 हजार पद सृजित हुए थे. इस साल भर्ती परीक्षा के माध्यम से एमपी में पटवारी के 6755 पदों पर भर्ती की जानी थी. एसईबी के मुताबिक इस भर्ती परीक्षा में शामिल होने के लिए 12.79 लाख छात्रों ने आवेदन किया था. इनमें से 9,78,270 अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए.

प्रश्न पत्र का प्रारूप

परीक्षा में शामिल हुए अभ्यर्थी को परीक्षा केंद्र पर उपलब्ध कराए गए कंप्यूटर के मार्फत परीक्षा देनी थी. इसके लिए छात्रों को दिए गए ऑनलाइन प्रश्न पत्र में शामिल किए गए हर सवाल का एक अलग आईडी थी. उस आईडी के आधार पर ही प्रश्नपत्र में भरे गए उत्तरों की जांच की जानी थी.  पूरे प्रदेश में 35 दिनों तक चली परीक्षा में हर श‍िफ्ट के लिए अलग प्रश्न पत्र दिया गया. इसमें 200 सवाल पूछे गए. प्रश्न पत्र में सामान्य ज्ञान, गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी और रीजनिंग सहित 8 विषयों के 25-25 सवाल पूछे गए. इस परीक्षा में कोई नेगेटिव मार्किंग नहीं थी. प्रश्नपत्र सॉल्व करने के बाद छात्रों को इसे सबमिट करना था. इसके बाद 30 जून को परीक्षा परिणाम घोषित होने पर छात्रों को एसईबी की वेबसाइट पर जाकर अपना रोल नंबर और एक कोड डालने पर अपनी उत्तर पुस्तिका देखने का मौका दिया गया.

जिसमें छात्र ये देख सकते हैं कि उन्होंने कितने सवालों का सही या गलत उत्तर दिया है. इसके आधार पर मिले अंकों एवं मेरिट लिस्ट में अपनी स्थिति को छात्र जांच भी सकते हैं. कुल मिला कर पूरी परीक्षा प्रणाली को अत्याधुनिक तकनीक से लैस कर इसमें गड़बड़ी करने की आशंकाओं को सरकार ने नाकाम बनाने की  भरपूर कोशिश जरूर की. इससे इतर, परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद जिस तरह से हर दिन नई गड़बड़ी के मामले उजागर हो रहे हैं, उसे देखकर कहा जा सकता है कि खोट तकनीक में नहीं, बल्कि तकनीक को संचालित करने वालों की मंशा में था. 

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