जुलाई की शुरुआत से ही अंडों के रेट में बड़ा उलटफेर हो रहा है. हर चार-पांच दिन बाद पोल्ट्री फार्मर को एक बड़ा झटका लगता है. सावन महीने की शुरुआत के बाद से ही अंडों के दाम गिरना शुरू हो गए थे. पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि सावन में अंडों की रिटेल बिक्री बहुत ही कम हो जाती है. अंडा बाजार की मौजूदा हालत के चलते बीते 20 दिन से छोटे पोल्ट्री फार्मर बहुत नुकसान उठा रहे थे. लेकिन जिस तरह से दो ही दिन में अंडों के रेट 35 रुपये प्रति सैंकड़ा कम हुए हैं उससे बड़े पोल्ट्री फार्मर का गणित भी बिगड़ने लगा है.
क्योंकि बाजार में अंडे के दाम न्यूनतम लागत रेट से भी नीचे चले गए हैं. अंडा बाजार की ये चाल अभी ठीक होती हुई भी नहीं दिख रही है. क्योंकि आस्था का महीना सावन इस बार दो महीने का है. जिसका मतलब ये है कि रिटेल बाजार में अंडों की बिक्री अगस्त तक मंदी रहेगी. खास बात ये है कि इसका असर दक्षिण भारत के अंडा बाजार पर भी पड़ रहा है.
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बरवाला, हरियाणा अंडा मंडी की गिनती बड़े बाजारों में होती है. यहां से यूपी, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश समेत और भी दूसरे प्रदेशों को अंडा सप्लाई होता है. अगर दो जुलाई की बात करें तो बरवाला में 100 अंडे के दाम 472 रुपये थे. लेकिन देखते ही देखते 12 जुलाई को अंडों के दाम 372 पर आ गए. ये वो रेट थे जिसके चलते 10 से 15 हजार मुर्गियों का पालन करने वाला पोल्ट्री फार्मर बहुत प्रभावित हुआ. क्योंकि छोटे फार्मर के फार्म पर एक अंडे की लागत कम से कम 420 रुपये आती है. 13 जुलाई से एक बार फिर अंडों के दाम चढ़ना शुरू हो गए. 18 जुलाई तक ये दाम 400 रुपये प्रति सैंकड़ा पर पहुंच गए.
हालांकि पोल्ट्री एक्सपर्ट का आरोप है कि ये ट्रेडर्स की एक चाल होती है. जो पहले सस्ता अंडा खरीदकर कोल्ड स्टोरेज में रखा गया है उसे बेचने को चार से पांच दिन तक अंडे के दाम चढ़ाए जाते हैं. लेकिन 18 जुलाई के बाद दो दिन में ही अंडे के दाम फिर से 35 रुपये नीचे आ गए. 19 जुलाई को अंडों के दाम 375 रुपये पर आ गए तो 20 जुलाई को ही 365 रुपये पर आ गए.
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पोल्ट्री एक्सपर्ट अनिल शाक्या का कहना है कि जैसे ही 100 अंडों के दाम 420 रुपये प्रति सैंकड़ा से नीचे आए तो छोटे पोल्ट्री फार्मर को नुकसान होना शुरू हो गया. क्योंकि छोटे फार्मर के अंडों की लागत 420 रुपये आती है. वहीं अब अंडों के रेट 365 पर आ गए हैं तो बड़े फार्मर को भी पांच पैसे का नुकसान उठाना पड़ रहा है. हालांकि ये रेट नेशनल ऐग कोआर्डिनेशन कमेटी (एनईसीसी) के हैं, जबकि बाजार में खरीद इससे भी कम रेट पर हो रही है.
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