पशुओं को लगातार एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई जा रही हैं. खासतौर पर गाय, भैंस, बकरी, मछली और मुर्गियों को जरूरत से ज्याएदा एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रही हैं. इसका असर खाने वाले पशुओं पर तो होता ही है, साथ में इंसान भी इससे प्रभावित होते हैं. लगातार इस तरह की चर्चाएं आम हो रही हैं. इसी के चलते वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन वर्ल्ड AMR अवेयरनेस वीक मनाती है. मकसद है लोगों में एंटीबायोटिक को लेकर जागरुकता बढ़े. पशुओं को कम से कम और बहुत ज्यादा जरूरत होने पर ही एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई जाएं. 18 से 24 नवंबर तक अवेयरनेस वीक मनाया जाता है.
सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से आ रही खबरें बताती हैं कि मुर्गों को जल्दी बड़ा करने और मुर्गियों से ज्यादा अंडे लेने के लिए उन्हें एंटीबायोटिक दवाईयां खिलाई जा रही हैं. यही दवाईयां मुर्गे और अंडे खाने वाले इंसानों के शरीर में भी अपना असर दिखाती हैं. जबकि पोल्ट्री ऐसोसिएशन ऐसी खबरों को सिरे से खारिज कर रही है तो साइंटिस्ट इस पर कुछ और ही बोल रहे हैं.
एक्सपर्ट का मानना है कि पशुओं और इंसानों के साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं पर्यावरण के लिए भी बेहद खतरनाक होती हैं. होता ये है कि ज्यादा एंटीबायोटिक देने से जानवरों में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस पैदा हो जाता है. एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस एक ऐसी स्टेज है जिसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवा या एंटीबायोटिक दी जाती है वो काम करना बंद कर देती है. कुछ बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता डवलप कर लेते हैं जिससे वो दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इस कंडीशन को सुपर बग कहा जाता है. सुपर बग कंडिशन से हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत इस वजह से होती है.
ये भी पढ़ें: Shrimp: मंदी में चल रहे झींगा को अमेरिका ने दिया झटका, 50 हजार करोड़ के कारोबार पर संकट
सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अशोक कुमार तिवारी का कहना है कि अभी तक किसी भी तरह की रिसर्च और जांच से यह साबित नहीं हुआ है कि मुर्गे मुर्गियों को एंटीबायोटिक खिलाने से उनका वजन बढ़ता हो या फिर ज्यादा अंडे देती हों. पोल्ट्री फार्म क्योंकि बहुत महंगा कारोबार है और मुर्गियां बहुत ही सेंसेटिव होती हैं तो कुछ लोग जिनकी संख्या बहुत ही कम है वो चोरी-छिपे मुर्गियों को एंटीबायोटिक दवाई खिलाते हैं. यह दवाई इसलिए होती है कि जिससे मुर्गियां बीमार न पड़ें. क्योंकि ऐसे लोगों को डर रहता है कि मुर्गियों में कोई बीमारी न आ जाए.
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रनपाल डाहंडा ने किसान तक को बताया कि एंटीबायोटिक दवाईयां खिलाकर ब्रॉयलर चिकन का वजन नहीं बढ़ाया जा सकता है. दवाई देकर अंडे देने वाली लेयर मुर्गी से ज्यादा और अच्छे अंडे भी नहीं लिए जा सकते हैं. यह 100 फीसद बेसिर-पैर की खबरें हैं. मैं दावा करता हूं कि कोई मुझे ऐसी एंटीबायोटिक बता दें जो मुर्गों का वजन बढ़ाने के लिए दी जा रही है. परेशानी यह है कि आजकल सोशल मीडिया पर कुछ बिना जानकार लोग भी ज्ञानी बन जाते हैं.
जबकि हकीकत यह है कि मुर्गियों को बीमारी से बचाने के लिए हम उनका वैक्सीनेशन कराते हैं. बीमार होने पर दवाई देते हैं. इसके अलावा पूरी तरह से शाकाहारी फीड दिया जाता है. अगर हम इस तरह से महंगी-महंगी दवाईयां मुर्गियों को खिलाने लगे तो होलसेल में 80 से 90 रुपये किलो बिक रहे ब्रॉयलर चिकन में से उसका खर्चा कैसे निकलेगा.
ये भी पढ़ें: Poultry: अंडे-चिकन के बारे में सोशल मीडिया पर फैलाई जा रहीं ये पांच बड़ी अफवाहें, जानें सच्चाई
केन्द्री य मत्य्स्त, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का कहना है कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल सिर्फ बीमार मुर्गी का इलाज करने और उसके संपर्क में आई मुर्गियों पर ही करें. सप्लीमेंट्री फीड के साथ स्पेशल एडीटिव भी दें. जैसे- प्री बायोटिक, प्रो बायोटिक, आर्गेनिक एसिड, एसेंशियल ऑयल्स और इनसूलेबल फाइबर दें. साथ ही यह पक्का कर लें कि मुर्गी को जरूरत का खाना और मौसम के हिसाब से बचाने के उपाय अपनाए जा रहे हैं या नहीं. हर रोज पोल्ट्री फार्म पर बराबर नजर रखें. इस बात की तसल्ली करें कि मुर्गियों की हेल्थल ठीक है. उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आ रहा है. बायो सिक्योरिटी का पालन अच्छे से करें. बीमारी को रोकने और उसे फैलने से रोकने के लिए फार्म में धूप अच्छे से आए इसका इंतजाम रखें. हवा के लिए वेंटीलेशन भी अच्छा हो.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today