अपनी 14 मांगों को लेकर नासिक से मुंबई के लिए 5000 किसानों का एक जत्था रवाना हुआ है. किसानों का यह लॉन्ग मार्च शुक्रवार मुंबई पहुंचने की संभावना है. इस बीच किसानों की सरकार के साथ बातचीत की भी खबरें हैं. मुंबई विधान भवन में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ किसान नेताओं की बातचीत जारी बताई जा रही है.
जानकारी के मुताबिक शाहपुर सब-डिविजनल अस्पताल में 50 वर्षीय राधाबाई भागरे को बुखार की शिकायत के बाद भर्ती कराया गया है. सांस लेने में तकलीफ के चलते शीला मोरे (53 साल) को भर्ती कराया गया है. पैर में छाले पडऩे और घायल होने के बाद लक्ष्मण पीठे को दवा दी गई.
नासिक के आदिवासी इलाके से अधिकांश किसान इस लॉन्ग मार्च में शामिल हैं. इसके अलावा अहमदनगर, धुले और औरंगाबाद के किसान भी इसमें शामिल हैं. आदिवासी किसान अपने वनभूमि का अधिकार मांग रहे हैं क्योंकि वे खेत जुताई करते हैं, मगर उसका मालिकाना हक उनके पास नहीं है.
शाहपुर अस्पताल की ओर से बताया गया, मलजी शिंदे रात में चलने के दौरान पत्थर से टकरा गए जिससे उनके पैर और हाथ में चोट आई है. अस्पताल में इलाज लेने के बाद शिंदे ने कहा कि वे किसान मार्च में फिर से जुड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी खेती की जमीन का मालिकाना हक लेना है.
किसानों का मार्च आज दिन में शाहपुर में पहुंचा है. नासिक से तकरीबन 175 किलोमीटर पैदल चलकर किसान मुंबई पहुंचेंगे. शाहपुर सब-डिविजनल हॉस्पिटल की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक गुरुवार को अस्पताल में 15-16 मरीज इलाज के लिए आए.
किसान पिछले चार दिन से महाराष्ट्र की सड़कों पर पैदल चल रहे हैं. 16 मार्च को कूच का चौथा दिन है. नासिक से मुंबई निकले किसान शुक्रवार रात को मुंबई पहुंच सकते हैं. नासिक से 175 किमी पैदल चलकर हजारों किसानों का जत्था मुंबई पहुंचेगा. अभी तक की रिपोर्ट के मुताबिक जत्थे में 5000 किसान शामिल हैं जिनमें नासिक जिले के आदिवासी इलाके के किसान अधिक हैं.
यह पहला मौका नहीं है जब किसान अपनी मांगों की तरफ सरकार का ध्यान खींचने के लिए पैदल आंदोलन कर रहे हैं. पांच साल पहले भी ऐसा ही आंदोलन हुआ था और तब सरकार ने भरोसा दिलाया था कि उनकी सभी मांगें मानी जाएंगी. मगर कुछ ही मांगें मानी गईं. अब फिर उन मांगों को आगे रखते हुए किसान नासिक से मुंबई के कूच पर निकले हैं.
प्याज के दाम के अलावा कृषि लोन माफी की मांग बहुत पुरानी है. इसके अलावा वन की जमीन के अधिकार की मांग भी वर्षों से चलती रही है. किसानों का कहना है कि आदिवासी अपनी जमीन जोतते रहे हैं, लेकिन उन्हें जमीन का मालिकाना हक अभी तक नहीं मिला है. इसके लिए सरकार ने लिखित में आश्वासन दिया है, लेकिन उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. एफआरए के तहत लैंड रिकॉर्ड भी बने हैं तो उसमें कई खामियां हैं.(मुस्तफा शेख की रिपोर्ट)
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