देश में किसान आंदोलन कर रहे हैं. किसान MSP गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि सरकार 23 फसलों के MSP की घोषणा करती है, लेकिन कानून ना होने की वजह से बाजार में उनकी फसलें MSP से नीचे खरीदी जाती हैं. किसान संंगठनों की मांग है कि MSP गारंटी कानून बना दिया जाए, जिससे खुले बाजार में भी फसलाें की MSP सुनिश्चित हो सके.
किसान संगठन ये मांगें कर रहे हैं. इस बीच WTO की बैठक आबू धाबी में संपन्न हुई है. इस बैठक के बाद से WTO की शर्तों से भारतीय किसानों को होने वाले नुकसान की चर्चा होने लगी है. इसके पीछे मुख्य कारण ये हैं कि WTO की शर्तें MSP पर फसलों की खरीदी के उलट हैं, जिसे देखते हुए बीते दिनों किसान संंगठन भारत सरकार से WTO से बाहर आने की मांग कर चुके हैं.
इस बीच बीते दिनों WTO की बैठक में देश के अंदर MSP पर धान खरीद को लेकर भारत और थाइलैंड आमने-सामने आ चुके हैं. आइए समझते हैं कि WTO की फसलों की MSP पर खरीद सीमित करने वाली शर्तें क्या हैं और क्यों-कैसे भारत और थाइलैंड WTO की मंंत्री स्तरीय बैठक में आमने-सामने आ गए.
भारत में फसलों की खरीद की व्यवस्था न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की जाती है, लेकिन WTO की कृषि शर्तों को MSP का विरोधी कहा जाता है. माना जाता है कि WTO की ये ही शर्तें MSP गारंटी कानून बनाने में सबसे बड़ी बाधा हैं. अगर इन शर्तों को विस्तार से समझने की कोशिश करें तो उसके लिए WTO का स्वरूप समझना होगा. WTO यानी विश्व व्यापार संंगठन, जो दुनिया का शीर्ष व्यापार संंगठन है.
WTO की कृषि शर्तों को सरल शब्दों में समझने की कोशिश करें तो कहा जा सकता है कि WTO ग्लोबल एग्रीकल्चर मार्केट का हवाला देते हुए किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर रोक लगाता है. असल में फसलों की सरकारी खरीद यानी MSP पर फसलों की खरीद को सरकारी सब्सिडी के तौर पर रेखांकित किया जाता है.
इस संबंध में WTO का नियम है कि कोई भी सरकार अपने देश के किसानों से कुल उत्पादन का 10 से 15 फीसदी तक फसलों की खरीदी कर सकती है. मौजूदा वक्त में भारत पीस क्लाज के तहत MSP पर गेहूं और धान की खरीदी 70 से 90 फीसदी तक कर रहा है, जिसका लंबे समय से विरोध कर रहा है.
WTO में शामिल विकसित देश इसे सब्सिडी देकर किसानों से अनाज की खरीदारी के तौर पर रेखांकित करते हैं और WTO में शामिल कई देश भारत सरकार की तरफ से अनाज के सार्वजनिक भंडारण का विरोध भी करते हैं. तो वहीं भारत पूर्व में कई बार स्पष्ट कर चुका है कि वह देश में खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने यानी पीडीएस (राशन की दुकान में वितरण ) के लिए अनाज का सार्वजनिक भंडारण करता है और देश के कमजोर किसानों को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए फसलों की MSP पर खरीदी की जाती है.
WTO की बैठक में बीते दिनों धान की MSP पर भारत और थाइलैंड आमने-सामने आ गए. असल में WTO की बैठक में थाईलैंड के राजदूत ने भारत पर कथित तौर पर ग्लोबल मार्केट में हावी रहने के लिए सब्सिडी वाले चावल (MSP पर खरीदे गए धान) का इंपोर्ट करने का आरोप लगाया, जिसके बाद WTO की बैठक में विवाद खड़ा हो गया. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार थाईलैंड राजदूत के इन आरोपों के बाद भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने उस बैठक का बहिष्कार कर दिया.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थाइलैंड राजदूत ने आरोप लगाया कि भारत में चावल पर सब्सिडी (MSP पर धान की अधिक खरीदारी) की जाती है, इससे भारत को इंटरनेशनल इंपोर्ट में बढ़त मिलती है.
WTO में लंंबे समय से कृषि सब्सिडी का मामला फंसा हुआ है. विकसित देश और विकासशील देश इस मामले को लेकर आमने-सामने हैं. विकसित देश अपने किसानों को अधिक फार्मिंग सब्सिडी देते हैं, लेकिन ग्लोबल एग्रीकल्चर बाजार का हवाला देते हुए विकाशील देशों के किसानों को मिलने वाली सब्सिडी को सीमित करने की बात कहते हैं. इसको लेकर बीते कई सालों से विवाद गहराया हुआ है.
ऐसे में माना जा रहा था कि WTO की इस बैठक में कृषि सब्सिडी का मुद्दा सुलझेगा, लेकिन थाइलैंड की तरफ से जिस तरीके से चावल सब्सिडी का मुद्दा उठाया है उसके बाद WTO में कृषि सब्सिडी का मुद्दा उलझ सकता है.
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