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Cotton Farming: उपज के मामले में चीन और पाक‍िस्तान से भी पीछे क्यों है कॉटन क‍िंग भारत, जान‍िए वजह 

Cotton Farming: उपज के मामले में चीन और पाक‍िस्तान से भी पीछे क्यों है कॉटन क‍िंग भारत, जान‍िए वजह 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट के अनुसार कॉटन की उपज 1950-51 में स‍िर्फ 88 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 443 क‍िलोग्राम से अध‍िक हो चुकी है. न‍िश्च‍ित तौर पर समय के साथ उपज बढ़ी है लेक‍िन यह भी सच है क‍ि हम कई अन्य देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं. खासतौर पर चीन और अमेर‍िका से. 

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दुन‍िया का सबसे बड़ा कॉटन उत्पादक है भारत. दुन‍िया का सबसे बड़ा कॉटन उत्पादक है भारत.

 कॉटन की खेती और कुल उत्पादन के मामले में भारत दुन‍िया में पहले नंबर पर है. लेक‍िन, अगर प्रत‍ि हेक्टेयर उपज की बात करें तो इस ल‍िहाज से फ‍िसड्डी है. यहां तक क‍ि पाक‍िस्तान से भी पीछे. अमेर‍िका, आस्ट्रेल‍िया, और चीन जैसे देशों की बात तो छोड़ ही दीज‍िए, हम कहीं व‍िश्व औसत के आसपास भी नहीं ट‍िकते. कृष‍ि क्षेत्र के जानकारों का कहना है क‍ि अगर उपज में 25 फीसदी भी वृद्ध‍ि हो जाए तो हम कॉटन के मामले में पूरी दुन‍िया पर राज करेंगे और क‍िसानों की आय में इजाफा भी हो जाएगा. सवाल यह है क‍ि विश्व कपास उत्पादन का लगभग 26 फीसदी ह‍िस्सेदारी रखने के बावजूद भारत उपज में क्यों इतना पीछे है.

इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें कपड़ा, श्रम और कौशल विकास पर बनी संसद की स्थायी कमेटी की र‍िपोर्ट को भी सामने रखने की जरूरत है. ज‍िसने कहा है क‍ि भारत को कपास की खेती में सुधार के लिए मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल नई किस्मों के बीज और पौधों की सख्त जरूरत है. कमेटी को ऐसा लगता है क‍ि बीटी और अन्य समान गुणों वाले बीज के अलावा, देश को कपास के ऐसे बीजों की किस्मों की भी सख्त जरूरत है जो हमारी मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूल हों.  

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कपास की क‍ितनी है उपज

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट के अनुसार कॉटन की उपज 1950-51 में स‍िर्फ 88 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 443 क‍िलोग्राम से अध‍िक हो चुकी है. कुछ जगहों पर 447 क‍िलोग्राम का दावा क‍िया जाता है. न‍िश्च‍ित तौर पर समय के साथ उपज बढ़ी है लेक‍िन यह भी सच है क‍ि हम कई अ्रन्य देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं. खासतौर पर चीन (2122 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर) और अमेर‍िका (1068 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर) से काफी कम है.

क‍ितने एर‍िया में होती है खेती 

युनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) के मुताब‍िक वर्ष 2022-23 में दुन‍िया में कपास की खेती 31.69 म‍िल‍ियन हेक्टेयर में होती है. ज‍िसमें से सबसे ज्यादा 12.70 म‍िल‍ियन हेक्टेयर यानी 127 लाख हेक्टेयर का ह‍िस्सा भारत के पास है. व‍िशेषज्ञों का कहना है क‍ि अगर इतनी जमीन में चीन या अमेर‍िका जैसी उपज हमारे यहां हो जाए तो हम इसकी खेती से काफी पैसा कमा सकते हैं. क‍िसानों का भला हो सकता है. संयुक्त राज्य अमेर‍िका में कपास का एर‍िया 2.86 म‍िल‍ियन हेक्टेयर है. इसी तर‍ह पाक‍िस्तान में 2.40 म‍िल‍ियन हेक्टेयर, चीन में 2.90 म‍िल‍ियन हेक्टेयर और ब्राजील में 1.66 म‍िल‍ियन हेक्टेयर एर‍िया है.

कॉटन की उपज में अव्वल देश.

नए क‍िस्म के बीजों की जरूरत 

स्थायी कमेटी ने भी कहा है क‍ि अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज की तुलना में भारत में किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज बेहद कम है. भारत में प्रति हेक्टेयर कम पैदावार इस तथ्य के कारण है कि देश में बीटी बीज तकनीक पुरानी हो गई है और नए किस्म के बीजों की तत्काल आवश्यकता है. कमेटी ने कपड़ा मंत्रालय से कपास की उत्पादकता बढ़ाने के ल‍िए व्यापक अध्ययन करने को कहा है. इसमें कहा गया है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के साथ समस्या यह है कि किसानों को हर साल बीज खरीदना पड़ता है, जिससे उनकी कर्ज यात्रा शुरू हो जाती है, जो उपज में आनुपातिक वृद्धि के बिना कीटनाशकों, उर्वरक और श्रम लागत के बढ़ने के साथ और अधिक गंभीर हो जाती है. 

वैज्ञान‍िक ने बताई तीन बड़ी वजह 

कमेटी की ही बातों को सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर र‍िसर्च ऑन कॉटन टेक्नोलॉजी (CIRCOT) के प्र‍िंस‍िपल साइंट‍िस्ट डॉ. पीएस देशमुख भी आगे बढ़ा रहे हैं. उनका कहना है भारत में कुछ दूसरे देशों की तुलना में कॉटन की उपज में कमी होने के पीछे तीन बड़ी वजह हैं. पहला कारण यह है क‍ि भारत में खेत का आकार छोटा है, ज‍िसकी वजह से कीटों के अटैक या रोगों के फैलने पर हम ज्यादा प्रभावी तरीके से न‍ियंत्रण नहीं कर पाते. ऐसे में उपज पर बुरा असर पड़ता है. दूसरी वजह यह है क‍ि हमारे यहां नए बीजों का अभाव है और तीसरी वजह यह है क‍ि पानी की कमी है. आठ महीने की फसल में कम से कम पांच बार पानी देना पड़ता है. अध‍िकांश राज्यों के क‍िसान ऐसा नहीं कर पाते. ज‍िसकी वजह से हम उत्पादकता में काफी पीछे हैं.

सही दाम पर हो कॉटन खरीद

कमेटी ने कहा क‍ि अगर कपास आयात को सीमा शुल्क से छूट दी जाती है तो इससे अन्य देशों से सस्ते कपास की आवक हो सकती है. इससे पहले से ही संकटग्रस्त कपास किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है. कमेटी की राय है कि कपड़ा मंत्रालय को कृषि मंत्रालय के परामर्श से उत्पादन लागत का कम से कम डेढ़ गुना लाभकारी मूल्य पर सुनिश्चित खरीद के रूप में कपास किसानों को सुरक्षा की गारंटी के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए. 

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