26 साल की कुर्वा मंजुला तेलंगाना के विकराबाद के गांव थोंडापल्ली गांव में रहती हैं. मंजुला बटाई किसान हैं. इनकी परेशानी ये है कि इनके माथे पर सात लाख रुपये का भारी-भरकम कर्ज है. इसमें से पांच लाख रुपये आठ अलग-अलग देनदारों को लौटाया जाना है. इस दर्दनाक कर्ज की कहानी कुछ यूं है कि मार्च 2021 में उनके पति ने खुदकुशी कर ली. ऐसा कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि 2019 में भीषण बाढ़ के चलते फसलें बर्बाद हो गई थीं. पति के जाने के बाद कुर्वा मंजुला लगातार कर्ज में फंसती चली गईं. मुश्किल ये है कि कुर्वा को अभी तक किसी तरह का मुआवजा नहीं मिला है.
विकराबाद से दूर अदिलाबाद में भी यही हाल है. यहां जुलाई 2022 में आई बाढ़ ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया. अदिलाबाद के कुप्ती गांव के किसान वेंकट रमन 'बिजनेसलाइन' से कहते हैं, हमारे गांव में 50 से अधिक किसानों की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गईं. लेकिन सरकार का कोई अधिकारी फसली नुकसान का जायजा लेने यहां नहीं आया. वेंकट रमन अपने इलाके में बड़े पैमाने पर सोयाबीन और कपास की खेती करते हैं.
इस साल मार्च महीने में तेलंगाना के अलग-अलग हिस्सों में ओलावृष्टि होने के बाद तेलंगाना सरकार ने 10,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा देने का ऐलान किया. इसमें बटाई किसानों को भी शामिल किया गया. साल 2018 के बाद ऐसा पहली बार किया गया जब तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए फसली मुआवजे का ऐलान किया. लेकिन गौर करने वाली बात है कि इस साल मार्च में ओलावृष्टि की घटना और उससे फसलों की बर्बादी कोई पहली बार नहीं हुई थी. ऐसे में सवाल उठे कि सरकार ने केवल इसी साल मुआवजे का क्यों ऐलान किया.
ये भी पढ़ें: बुंदेलखंड में नहीं थम रहा किसानों की खुदकुशी का सिलसिला, दो किसानों ने दे दी जान
तेलंगाना में अक्टूबर 2020 में 15 लाख एकड़ में फसलों का नुकसान हुआ था. यह आंकड़ा खुद तेलंगाना सरकार ने केंद्र को दिया था. लेकिन उस साल भी किसानों को मुआवजे के नाम पर एक रुपया नहीं दिया गया. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में किसानों के हक की लड़ाई वाला संगठन रायतु स्वराज्य वेदिका का कहना है कि केंद्र के डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने तेलंगाना को 188 करोड़ रुपये दिए, लेकिन अभी तक इस फंड के पैसे का वितरण नहीं किया गया है.
मुआवजा नहीं मिलने की सूरत में कुछ किसानों ने सितंबर 2021 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने कोर्ट को आदेश दिया कि किसानों को फौरन मुआवजा दिया जाए. लेकिन तेलंगाना सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई और दलील दी कि जिन इलाकों में बर्बादी हुई, उन इलाकों को रिकवर कर लिया गया है. तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अब तक पेंडिंग है. जुलाई 2022 की बारिश में तेलंगाना के लगभग 11 लाख एकड़ खेतों में बर्बादी हुई. लेकिन राज्य सरकार ने किसानों को मुआवजे के नाम पर एक रुपया नहीं दिया. पिछले पांच साल का रिकॉर्ड देखें तो तेलंगाना सरकार ने केवल 2018 में मात्र एक बार 23 करोड़ रुपये का मुआवजा जारी किया है. वह भी हाई कोर्ट के आदेश पर.
ये भी पढ़ें: PMFBY: किसानों के लिए परेशानी का सबब बना फसल बीमा, आसान नहीं है मुक्ति की राह
तेलंगाना के किसानों के लिए फसल मुआवजा बहुत जरूरी है क्योंकि यह राज्य उनमें शामिल है जहां अभी तक केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू नहीं की गई है. इसके विकल्प के तौर पर तेलंगाना ने कोई स्टेट पॉलिसी भी लागू नहीं किया है. इसके बारे में तेलंगाना सरकार तर्क देती है कि फसल बीमा योजना में क्लेम का रेश्यो बहुत कम है और सरकार के पास इस मद के लिए पैसे की भी कमी है. तेलंगाना सरकार का कहना है कि इंश्योरेंस कंपनियां बीमा के नाम पर मुनाफा बनाना चाहती हैं जबकि बाकी लोगों का तर्क है कि यह बात किसी पॉलिसी को रोकने का समाधान नहीं हो सकता.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today