भारत हर साल यूरोपीय यूनियन (EU) को बड़ी मात्रा में सोयामील यानी सोयाबीन की खड़ी का निर्यात करता है, लेकिन अब यह निर्यात मुश्किल में पड़ सकता है. दरअसल यूरोपीय यूनियन इस साल के आखिरी में नया EU Deforestation Regulation (EUDR) कानून, लागू करने जा रहा है. इस कानून के मुताबिक, यूरोपीस संघ से जुडें देश जंगलों को काटकर उगाई गई फसलों से बने उत्पादों का बहिस्ष्कार करेंगे. दूसरी तरह से समझें तो यूरोप में ऐसे सामानों के आयात पर रोक लग जाएगी.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, EU का यह नया नियम 30 दिसंबर, 2025 से लागू होगा. नियम लागू होने के बाद कॉफी, कोको, सोयाबीन, सोयामील और इनके उत्पादों का निर्यात करने वाली कंपनियों को यह साबित करना होगा कि ये उत्पाद 31 दिसंबर, 2020 के बाद किसी कटे हुए जंगल की जमीन पर इनकी खेती नहीं हुई थी. यह सबूत देने के लिए हर खेप के लिए जमीन की जियो-लोकेशन और डिफॉरेस्टेशन से मुक्त होने का प्रमाण देना अनिवार्य होगा.
EU के नए नियम को लेकर सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने चिंता जताई है, क्योंकि इस नियम का बुरा असर सीधे सोयाबीन खली के निर्यात पर पड़ेगा. SOPA के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने कहा कि यूरोप को होने वाला भारत का सोयामील निर्यात इस नए नियम से खतरे में पड़ सकता है. SOPA ने वाणिज्य मंत्रालय को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है और सरकार से कोई आसान समाधान निकालने का अनुरोध किया है।
हालांकि, इसमें भारत के लिहाज से अच्छी बात निकलकर सामने आई है. EU ने भारत को 'कम जोखिम वाला देश' माना है, जिससे भारतीय व्यापारियों के लिए जांच प्रक्रिया थोड़ी आसान हो जाएगी. यूरोप भारत से हर साल 5 लाख टन नॉन-GM सोयाबीन खली आयात करता है. मौजूदा कीमतों के हिसाब से इसकी वैल्यू करीब 2000 रुपये के करीब है. SOPA ने कहा कि भारत में सोयाबीन की ज्यादातर खेती छोटी जोत वाले किसान करते हैं. उनके पास 1 हेक्टेयर से 5 हेक्टेयर तक जमीन होती है. भारत में लगभग 120 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन सोयाबीन की खेती की जाती है.
SOPA ने बयान में कहा कि यह सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज है. लेकिन मंडियों में इसकी खरीद नीलामी के माध्यम से होती है और इसमें एक लॉट में कई खेतों की उपज होती है. साथ ही यह कई व्यापारियों और बिचौलियों से होकर प्रोसेसिंग प्लांट तक पहुंचती है. ऐसे में सोयाबीन किस खेत से आई है, यह पता लगा पाना संभव नहीं है. अब इसका समाधान निर्यातक नहीं कर सकता. सिर्फ सरकार ही है जो सामूहिक रूप से इसकी जानकारी डिक्लेयर कर सकती है. SOPA ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में होने वाली सोयाबीन की खेती कभी भी जंगल की जमीन पर नहीं होती. यह न पहले हुई है और नहीं भविष्य में होगी.
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