अगर आप खेतों में प्लास्टिक मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं तो सोच-समझ कर इसका इस्तेमाल करें. क्योंकि प्लास्टिक मल्चिंग के बारीक कण खेतों की मिट्टी की फर्टिलिटी कम होती है. इसीलिए कृषि विज्ञानी बायो-डिग्रेडिवल प्लासिंट मल्चिंग लगाने की सलाह देते हैं. राजस्थान में कृषि विभाग भी डिग्रेडिवल प्लास्टिक मल्चिंग के लिए सब्सिडी देता है. क्योंकि प्लास्टिक मिट्टी में मिलने के बाद पानी को नीचे जाने से रोकता है. भीलवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र में सीनियर साइंटिस्ट और हेड डॉ. सीएम यादव से किसान तक ने इस संबंध में बात की. वे कहते हैं, “प्लास्टिक मल्चिंग अगर बायोडिग्रेडिवल है तो इससे कोई खतरा नहीं है, लेकिन अगर किसी किसान ने नॉन डिग्रेडिवल प्लास्टिक मल्चिंग किया है तो उसके छोटे-छोटे कण खेत की मिट्टी में मिल जाते हैं. इससे धीरे-धीरे खेत की मिट्टी में मिनिरल्स की कमी आती है और खेत बंजर होने लगते हैं.”
खेतों में घटिया क्वालिटी की प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी का बायोलॉजिकल तंत्र खराब हो रहा है. कई किसानों का कहना है कि अभी प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे सामने आ रहे हैं, लेकिन लंबी अवधि में इसके नुकसान भी हैं. मल्चिंग से मिट्टी का तापमान बढ़ता है. इससे माइक्रोब्स बढ़ने की जगह नुकसान होता है.
घटिया क्वालिटी की प्लास्टिक के इस्तेमाल से इसे खेत में से निकालते समय टूट जाती है. प्लास्टिक के टूटने से इसके कण मिट्टी में मिल जाते हैं. बाद में यही कण पानी को नीचे जाने से रोकते हैं.
ये भी पढ़ें- Monsoon Update: जयपुर की 250 साल पुरानी परंपरा,हवा की दिशा से लगाते हैं मॉनसून का अनुमान
खेतों में प्लास्टिक मल्चिंग के इस्तेमाल से हो रहे नुकसान को अंतरर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी देख रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में समुद्र से कहीं ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक खेती में मिला हुआ है. एफएओ का अनुमान है कि इसी रफ्तार से विश्व की खेती-बाड़ी में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता रहा तो साल 20230 तक यह 9.5 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा. यह आंकड़ा 2018 में 6.1 मिलियन टन था.
ये भी पढे़ं- एमएसपी मापदंड और सीएसीपी में विरोधाभास, सरकार करे खत्मः किसान महापंचायत
खेती में बढ़ते प्लास्टिक के उपयोग से नुकसान के बारे में बात अब होने लगी है, लेकिन सवाल यह है कि इसका समाधान या विकल्प क्या है. डॉ. यादव कहते हैं कि खेती इसी पर्यावरण और प्रकृति का अंग है. इसीलिए मंल्चिंग के लिए प्लास्टिक से बेहतर जूट या पराली का उपयोग किया जा सकता है. इसे ऑर्गेनिक मल्चिंग कहते हैं. क्योंकि यह आसानी से डिकंपोज हो जाते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today