केंद्र सरकार ने अब गैर-बासमती चावल के निर्यात के लिए कॉन्ट्रैक्ट्स का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लागू करने के साथ ही प्रति टन 8 रुपये का शुल्क लगाने की तैयारी में है. सरकार इस फीस के साथ यह सुनिश्चित करेगी कि गैर बासमती चावल को ‘इंडिया ब्रांड’ के रूप में वैश्विक बाजार में बढ़ावा दिया जा सके. वर्तमान में कई प्रकार के गैर-बासमती चावल बड़े पैमाने पर निर्यात किए जाते हैं और विदेशी बाजार में स्थानीय आयातकों द्वारा पैक होने पर वे भारतीय पहचान खो देते हैं.
यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब बासमती उद्योग में हाल ही में शुल्क वृद्धि के बाद मतभेद उजागर हुए थे, लेकिन गैर-बासमती निर्यातकों की सभी तीन संघों ने सरकार के इस कदम का समर्थन किया है और इसके ठोस परिणाम मिलने की उम्मीद जताई है.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, दि राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन सीजी के अध्यक्ष मुकेश जैन ने कहा कि हितधारकों की बैठक में यह सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय था और तीनों संघों ने अनुबंधों के पंजीकरण की योजना का समर्थन किया था, इससे पहले कि इसे 24 सितंबर को अधिसूचित किया गया है.
दि राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (TREA) के अध्यक्ष बीवी कृष्णा राव ने कहा कि बासमती उद्योग लंबे समय से अनुबंध पंजीकरण करता रहा है, इसलिए एपीडा के लिए गैर-बासमती चावल के डेटा का होना भी फायदेमंद है. अनुबंध पंजीकरण से एपीडा को यह ट्रैक करने में मदद मिलेगी कि कितना माल कहां जा रहा है और किन देशों द्वारा खरीदा जा रहा है.
राव ने कहा कि यह प्रणाली गैर-बासमती के लिए ठीक है, बशर्ते जमा किए गए अनुबंध की पुष्टि तेजी से हो. एपीडा इस शुल्क का इस्तेमाल गैर-बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए करना चाहता है, इसलिए यह कदम स्वागत योग्य है.
वहीं, इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (IREF) और श्री लाल महल ग्रुप के अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने कहा कि गैर-बासमती चावल निर्यात के लिए अनुबंध पंजीकरण का परिचय स्वागत योग्य और प्रगतिशील कदम है. एपीडा के माध्यम से निर्यातक अब ऑनलाइन पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकेंगे और यह शुल्क केवल 8 रुपये प्रति टन है.
यह कोई बोझ नहीं है, बल्कि एक राइस ट्रेड डेवलपमेंट फंड में योगदान है, जिसका इस्तेमाल भारतीय चावल को वैश्विक बाजार में बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा. TREA CG के अध्यक्ष मुकेश जैन ने कहा कि हाल ही में कुछ देशों में 2,000 कंटेनर गैर-बासमती चावल का विवरण असंगत था. एपीडा के हस्तक्षेप से यह मुद्दा सुलझ गया और नई प्रणाली के माध्यम से निर्यातकों की चिंताओं का समाधान उचित दस्तावेजीकरण के साथ आसानी से किया जा सकेगा.
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