भारत के आर्थिक सुधारों के निर्माता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात दिल्ली में निधन हो गया. वह 92 साल के थे. उनका जन्म पंजाब प्रांत के पश्चिमी क्षेत्र गाह में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में आता है. मनमोहन सिंह एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और भारत और विदेशों में एक सम्मानित व्यक्ति थे. वेबसाइट pmindia.gov पर उनके प्रोफाइल के अनुसार, "डॉ. सिंह ने 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की. उनका शैक्षणिक जीवन उन्हें पंजाब से कैंब्रिज विश्वविद्यालय, यूके ले गया, जहां उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स की डिग्री हासिल की."
इसके बाद मनमोहन सिंह ने 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल. की डिग्री हासिल की. वे 2004 से 2014 तक दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे. इससे पहले 1991 से 1996 तक वे देश के वित्त मंत्री भी रहे.इस दौरान उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसने भारत की दशा-दिशा बदल दी. यूं कहें कि भारत की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल दी. वित्त मंत्री रहते उन्होंने देश के लिए कई ऐसे फैसले लिए जिसकी धमक अभी तक सुनाई देती है. उन फैसलों का प्रभाव अभी तक जाहिर होता है. तो आइए उनके ऐसे ही कुछ अहम निर्णय के बारे में जान लेते हैं.
भारत में आर्थिक उदारीकरण यानी कि लिबरलाइजेशन की नींव किसी ने रखी तो उसमें मनमोहन सिंह शामिल थे. यह 1991 की बात है जब देश में उदारीकरण की कोई चर्चा भी नहीं थी. यह फैसले ऐसे समय में लिया गया जब देश में आर्थिक तंगी थी. विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका था. उसी साल डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री की कमान संभाली. तब देश के प्रधानमंत्री पीवी. नरसिम्हा राव थे. राव को भी इस तरह के रिस्क लेने के लिए जाना जाता था. फिर क्या था. इन दोनों नेताओं ने मिलकर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संकल्प लिया. इसी कड़ी में आर्थिक उदारीकरण का फैसला लिया गया.
इसका सबसे बड़ा फायदा देश में उद्योग और व्यापार को हुआ. उस साल के पहले तक देश में उद्योग शुरू करने के लिए कई तरह के लाइसेंस लेने पड़ते थे. इसके लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते थे. लिहाजा मनमोहन सिंह ने इस लाइसेंस राज को भी खत्म कर दिया. साथ ही, आयात और निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को कम किया गया जिससे देश में देश से बाहर भारत के सामान की पहुंच बढ़ने लगी. इससे भारत में विदेशी कंपनियों का बिजनेस आसान हुआ. साथ ही भारत में विदेशी निवेश का रास्ता आसान बन गया. इससे देश में नई तकनीक आई, रोजगार बढ़े और नतीजतन अर्थव्यवस्था मजबूत हुई.
बतौर वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह ने जहां आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया तो 2004 में प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने ग्रामीण रोजगार को बढ़ाने की नींव रखी. इसमें उनका सबसे अधिक फोकस गरीब और ग्रामीण लोगों का विकास रहा. इसी के तहत 2005 में उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी कि मनरेगा की शुरुआत की. इस योजना में ग्रामीण इलाके में रहने वाले हर परिवार को साल में कम से कम 100 दिन मजदूरी की गारंटी दी गई. इसमें नियम रखा गया कि सरकार अगर 100 दिन का गारंटी रोजगार नहीं देगी तो उसे परिवार के सदस्य को बेरोजगारी भत्ता देना होगा.
इस योजना का फायदा ये हुआ कि ग्रामीण इलाकों में गरीबी कम हुई और लोगों का शहरों की तरफ रोजगार के लिए भागना कम हुआ. ये योजना आज भी ग्रामीण भारत में गरीब परिवारों को बड़ा सहारा दे रहा है. कह सकते हैं कि यह योजना आज भी ग्रामीण भारत की नींव है.
इस योजना के बारे में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम कहते हैं, "अपने पूरे कार्यकाल के दौरान गरीबों के प्रति उनकी (डॉ. सिंह) गहरी सहानुभूति थी. उन्होंने इस तथ्य को नहीं छिपाया कि भारत में लाखों लोग गरीब हैं और उन्होंने हमें याद दिलाया कि सरकार की नीतियां गरीबों के पक्ष में होनी चाहिए. उनकी सहानुभूति के उदाहरण हैं मनरेगा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (राशन सिस्टम) को दोबारा तैयार करना और मध्याह्न भोजन योजना का विस्तार." इससे ग्रामीण क्षेत्र के गरीब परिवारों को बहुत मदद मिली है.
डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते 2005 में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम पारित किया गया. यह ऐसा कानून था जिसने एक आम आदमी को सशक्त बनाया. इस सूचना ने आम आदमी को अधिकार दिया कि वह किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी जानकारी मांग सकता है. इससे सरकारी विभागों की आम लोगों के प्रति जवाबदेही बढ़ी. साथ ही विभागों में पारदर्शिता बढ़ने से भ्रष्टाचार में कमी आई. 2005 में पारित इस आरटीआई ने नागरिकों को सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों से सूचना मांगने का अधिकार दिया, जिससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिला.
डॉ. मनमोहन सिंह ने 2005 में अमेरिका के साथ एक एटमी डील की. इस समझौते को 1-2-3 समझौता भी कहा जाता है. इस समझौते के पहले अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए भारत को परमाणु तकनीक और ईंधन विदेशों से नहीं मिलते थे. इस समझौते के बाद टेक्नोलॉजी के साथ-साथ एटमी फ्यूल मिलने का रास्ता साफ हो गया. इस समझौता की खास बात ये थी कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किया है, उसके बावजूद अमेरिका के साथ यह डील हुई. इसे डॉ. मनमोहन सिंह की कूटनीतिक कामयाबी बताई गई और इस डील के बाद दुनिया में भारत का नाम सम्मान से लिया जाने लगा.
आधार: आधार परियोजना देश के लोगों को विशिष्ट पहचान देने, अलग-अलग सेवाओं तक पहुंच को आसान बनाने के लिए शुरू की गई थी.
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण: इसे डीबीटी भी कहते हैं. मनमोहन सिंह की सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली लागू की, जिसने योजनाओं का लाभ सीधे लोगों तक पहुंचाया और भ्रष्टाचार को कम किया.
कृषि ऋण माफी (2008): कृषि संकट को दूर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये की ऋण माफी के माध्यम से किसानों को राहत दी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today