हिमालय क्षेत्र में एक से बढ़कर एक औषधीय गुणों वाले पौधे पाए जाते हैं. यहां पाया जाने वाला ऐसा ही जंगली पौधा घिंघारू भी है. जिसे दर्द निवारण में बेहद प्रभावी पाया गया है. औषधीय गुणों के अध्ययन से पता लगा है कि घिंघारू का एंजाइम प्रभाव अन्य दर्द निवारक दवाओं से कई गुना बेहतर है. भविष्य में दर्द निवारक दवाएं बनाने में इस पौधे का इस्तेमाल किया जा सकेगा. यह शोध दिल्ली भेषज विज्ञान एवं शोध विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है. इसे जर्नल ऑफ एथनोफार्माकॉलोजी ने प्रकाशित किया है. जिसका भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी अपनी एक पत्रिका में जिक्र किया है. यह ऊंचाई पर खुली ढलानों, जंगलों, चरागाहों, सड़कों, पैदल रास्तों, खेतों, झरनों व नदी-नालों के किनारे तथा पहाड़ी घाटियों में प्राकृतिक रूप से उगता है.
वैज्ञानिकों ने पिथौरागढ़ जिले में उगने वाले घिंघारू पौधे के फल और पत्तियों पर अध्ययन किया है. इससे पता चला कि इसमें मौजूद सभी तत्व अन्य दर्द निवारक दवाओं से मिलते-जुलते हैं. इसके साथ ही इसका असर अधिक समय तक रहता है, मतलब दर्द पर नियंत्रण करने की क्षमता इसमें ज्यादा है. इस खोज से दर्द निवारक दवा बनाने बड़ी मदद मिल सकती है.
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वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटीन से भरपूर यह पौधा हिमालयी क्षेत्रों में 2700 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है. इसे हिमालयन फायर थार्न के नाम से भी जाना जाता है. घिंघारू के पौधे में छोटे फल गुच्छों में उगते हैं. सितंबर में पककर इन फलों का रंग नारंगी या गहरे लाल रंग का हो जाता है. इसके फलों का स्वाद हल्का खट्टा और मीठा होता है. प्रोटीन से भरपूर घिंघारू का पौधा मध्यम आकार का होता है और इसकी शाखाएं कांटेदार होती हैं. बताया गया है कि यह बहुमूल्य औषधीय पौधा दक्षिण एशिया के मध्य-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में भारत के उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत और चीन में भी पाया जाता है.
शोध के अनुसार, फलों की अपेक्षा इसकी पत्तियां अधिक असरदार होती हैं. कई संस्थानों में इस फल का फार्माकोलॉजिकल एवं रासायनिक अध्ययन किया गया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि इसका वैज्ञानिक अध्ययन और शोध प्रयोगशाला में किया गया. इस अध्ययन में इसके गुणों के बारे में जानकारी हासिल हुई. घिंघारू पर और अधिक शोध की आवश्यकता है ताकि इसके अन्य गुणों का पता लगाया जा सके.
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