Fertilizer Theft: इस तरह किसानों के हक की खाद चुराते हैं माफिया, अब ये कदम उठाने की जरूरत

Fertilizer Theft: इस तरह किसानों के हक की खाद चुराते हैं माफिया, अब ये कदम उठाने की जरूरत

देश में हर साल हज़ारों करोड़ की खाद चोरी और काला बाज़ार किसानों का हक़ मार रहा है. नकली आधार, सहकारी समितियों और दलालों के जरिए खाद उद्योगों तक पहुंचती है. जानिए इस विषय पर एमएसपी कमेटी के सदस्‍य बिनोद आनंद क्‍या कहते हैं...

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इस तरह किसानों के हक की खाद चुराते हैं माफिया, अब ये कदम उठाने की जरूरतखाद की चोरी
  • बिनोद आनंद

हर सीजन में जब किसान खाद की बोरी लेने दुकान पर जाता है, तो मन में आस होती है कि खेत में ताक़त आएगी, फसल अच्छी होगी, घर में अन्न भरेगा. लेकिन, कई बार किसान खाली हाथ लौट आता है, या फिर उसे वही खाद काले बाज़ार से दोगुनी-तिगुनी क़ीमत पर खरीदनी पड़ती है. सच तो ये है कि जो खाद किसान की मिट्टी में जानी चाहिए, वही खाद गांव-गांव के कुछ दलाल, व्यापारी और बड़े उद्योगपति मिलकर बीच रास्ते से हड़प लेते हैं और यह सब खेल होता है किसान के नाम पर. देश में सरकार हर साल दो लाख करोड़ से ज़्यादा रुपये खाद की सब्सिडी पर खर्च करती है. यूरिया की बोरी किसान को 266 रुपये में मिलती है, जबकि यही चीज़ उद्योगों को बाज़ार से दस गुना महंगी पड़ती है. यही फ़र्क सबसे बड़ा धंधा बना चुका है.

कैसे होती है खाद की चोरी?

गांव में नकली आधार कार्ड और जमीन के कागज़ बना दिए जाते हैं और उनके नाम पर बोरी उठा ली जाती है. बड़े किसानों के नाम पर सैकड़ों बोरी दिखाई जाती है, पर असल में आधी बोरी भी खेत में नहीं पहुंचती. नकली सहकारी समितियां और कंपनियां बनाकर खाद उठाई जाती है और सीधे कारखानों में भेज दी जाती है.

दुकानदार मशीन में नकली अंगूठे से एंट्री कर देता है और फिर यही बोरी माफ़िया जमा कर लेता है, और बाद में किसान को काले बाज़ार में महंगे दामों पर बेचता है. हरियाणा में प्लाइवुड फैक्ट्रियों में सब्सिडी वाली यूरिया की नीम की परत उतारकर गोंद बनाया गया. राजस्थान में किसानों को मजबूरी में बेकार की चीज़ें खरीदवाकर डीएपी दी गई. पूरे देश में ये खेल हर साल हज़ारों करोड़ की चोरी कर लेता है.

अब रास्ता क्या है?

  • सबसे पहले तो प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (PACS) को मज़बूत करना होगा. ये ही असली किसानों को पहचानती हैं, इनसे ही सही वितरण हो सकता है.
  • दूसरा, सरकार को सब्सिडी सीधे किसान के खाते में डालनी चाहिए. यानी किसान बाजार भाव से खाद खरीदे और पैसा बाद में उसके खाते में वापस आ जाए. इसे ही डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) कहते हैं. इससे काला बाज़ार और चोरी बंद हो जाएगी.
  • तीसरा, हर खाद की बोरी पर क्यूआर कोड और ब्लॉकचेन सिस्टम लगाना चाहिए, ताकि पता चले बोरी फैक्ट्री से निकली और किस खेत तक पहुंची. बीच में गायब होने का सवाल ही नहीं रहेगा.
  • और चौथा, जैसे सिलेंडर घर तक आता है, वैसे ही खाद की होम डिलीवरी हो सकती है. किसान का केवाईसी हो, जीपीएस से ट्रैक हो और डिजिटल पर्ची मिले.

दुनिया से सबक

केन्या ने ई-वाउचर से किसानों को सीधे सब्सिडी दी. नाइजीरिया में मोबाइल से किसान को फायदा मिला, बिचौलिया बाहर हो गया. चीन ने ब्लॉकचेन से खाद और कीटनाशक की निगरानी शुरू कर दी. भारत भी अगर ये सब अपनाए, तो किसान को राहत मिलेगी और चोरी करने वालों की जड़ कट जाएगी.

आख़िरी बात

हर चोरी हुई खाद की बोरी मतलब चोरी हुई फसल. समय आ गया है कि सब्सिडी किसान तक पहुंचे, न कि माफ़िया तक. किसान को लाइन में लगने की नहीं, इज़्ज़त से जीने की ज़रूरत है. उसे भरोसा चाहिए, न कि धोखा. और देश को चाहिए ऐसी व्यवस्था, जो खेत को ताक़त दे, माफ़िया को.

(लेखक भारत सरकार की ओर से बनाई गई एमएसपी कमेटी के सदस्‍य हैं)

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