यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने भारत को एक बड़ा झटका दिया है. भारत और पाकिस्तान के बीच बासमती चावल के जीआई टैग विवाद में ईयू पाकिस्तान का पक्ष लेता हुआ दिखाई दे रहा है. पिछले दिनों हुई दो घटनाओं से तो कम से कम इसी बात की जानकारी मिलती है. ये दोनों ही घटनाक्रम भारतीय बासमती चावल उद्योग के लिए नुकसानदायक हैं. दोनों देश पिछले करीब डेढ़ दशक से बासमती के लिए जीआई टैग हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं.
बिजनेस से जुड़े सूत्रों के अनुसार पहली घटना के तहत ईयू ने पाकिस्तान के सिंध इलाके में उगाए गए 'सुपर बासमती कर्नेल' को पोलैंड में आयात करने की अनुमति दे दी है. दूसरे घटनाक्रम के तहत ईयू ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत को उस इलाके में शामिल कर दिया है जहां लंबा दाना वाला बासमती चावल उगता है. यह कदम ईयू ने पाकिस्तान के जीआई टैग आवेदन को जारी करते समय उठाया. यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब पहलगाम आतंकी हमले की वजह से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते पूरी तरह से पटरी से उतर चुके हैं. इस हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी.
'बासमती राइस: द नेचुरल हिस्ट्री जियोग्राफिकल इंडिकेशन' नामक किताब के लेखक एस. चंद्रशेखरन ने अखबार बिजनेसलाइन को बताया कि यूरोनियन कमीशन की तरफ से 23 दिसंबर 2003 को जारी रेगुलेशन के अनुसार बासमती चावल सिर्फ भारत और पाकिस्तान के विशेष क्षेत्रों से होना चाहिए. इनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र शामिल हैं. यह नोटिफिकेशन इसलिए जारी किया गया था ताकि यह साफ हो सके कि किन किस्मों को शुल्क में छूट मिल सकती है.
यूरोपियन राइस मिलर्स फेडरेशन ने अपनी 'यूरोप कोड ऑफ प्रैक्टिस फॉर बासमती राइस' में कहा है कि 'बासमती' उन खास किस्मों का नाम है, जो केवल इंडो-गंगा के मैदानों के चुनिंदा इलाकों में ही उगाई जाती हैं. ये इलाके भारत और पाकिस्तान, दोनों की सीमाओं में आते हैं. फेडरेशन ने बताया कि यह कोड उन्होंने ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (एआईआरईए) और राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ पाकिस्तान (आरईएपी) से बातचीत कर तैयार किया है.
चंद्रशेखरन ने सवाल उठाया, 'जब बासमती को सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों से होना चाहिए जिन्हें 2003 के नोटिफिकेशन अधिसूचना और कोड ऑफ प्रैक्टिस में बताया गया है तो अचानक सिंध कहां से सामने आ गया?' कुछ व्यापारियों ने भी सवाल किया कि पाकिस्तान सिंध क्षेत्र में उगे चावल को बासमती बताकर उसकी प्रामाणिकता का सर्टिफिकेट कैसे दे सकता है. एक और कारोबारी सूत्र ने कहा, 'पूरे मामले में कई खामियां हैं. पहला, सिंध से आए एक उत्पाद को यूरोपियन यूनियन (ईयू) में टैक्स छूट पाने के लिए निर्यात किया गया जबकि उसे यह हक नहीं था. दूसरा, ईयू किसी ऐसी चीज के आयात की इजाजत कैसे दे सकता है, जो नोटिफाइड क्षेत्र में उगी ही नहीं है और उसे बासमती कहा जा रहा है.'
चंद्रशेखरन ने कहा कि ईयू के नियमों की 'आत्मा और भावना' का उल्लंघन हुआ है.' यह बासमती चावल के लिए बनाए गए ईयू कोड को तोड़ना है. इससे उस उत्पाद की असलियत पर सवाल उठते हैं जिसे बासमती कहा जा रहा है. अभी तक यह साफ नहीं है कि वह उत्पाद सच में असली बासमती है या नहीं.
सिंध में बासमती जैसी सुगंधित किस्में ज्यादा ऊपरी सिंध के जिलों जैसे कि सुक्कुर, लरकाना, जैकबाबाद और शिकारपुर में उगाई जाती हैं. इन इलाकों में खेती के लिए अनुकूल मौसम, उपजाऊ दोमट मिट्टी और सिंधु नदी से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. सिंध के कुछ रिसर्च संस्थान, जैसे कि लरकाना जिले के दोकरी में स्थित राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, ने बासमती जैसी किस्में विकसित की हैं जो सिंध की परिस्थितियों के अनुसार ढाली गई हैं. बासमती के इतिहासकार के अनुसार, सिंध हर साल लगभग 1–3 लाख टन बासमती का उत्पादन करता है, हालांकि असली आंकड़ा निश्चित नहीं है.
वहीं विशेषज्ञ मानते हैं यह घटनाक्रम ईयू का एक दबाव बनाने वाला तरीका है ताकि भारत, पाकिस्तान के साथ मिलकर बासमती के जीआई टैग के लिए आवेदन करे. लेकिन भारत ने इस सुझाव को ठुकरा दिया है क्योंकि इससे देश की संप्रभुता पर असर पड़ सकता है. भारत ने पाकिस्तान के जीआई टैग आवेदन का विरोध किया है. भारत का कहना है कि पड़ोसी देश 'गैरकानूनी तरीके' से भारतीय बासमती किस्में उगा रहा है. इस दावे को साबित करने के लिए भारत ने एक यूरोपीय लैब में किए गए डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट भी पेश की है.
25 फरवरी 2024 को आई एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के जीआई टैग आवेदन में कई गड़बड़ियां हैं. यह भारत के बासमती चावल के जीआई टैग आवेदन से टकराता है. भारत ने जुलाई 2018 में अपनी बासमती किस्मों के लिए जीआई टैग मांगा था, जबकि पाकिस्तान ने 23 फरवरी 2024 को इस तरह का आवेदन दाखिल किया. लेकिन पाकिस्तान को अपने जीआई टैग आवेदन में दिक्कतों का सामना करना पड़ा है क्योंकि EU ने इस मामले में इटली की आपत्ति को स्वीकार कर लिया.
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