आम को फलों का राजा कहा गया है. इसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है. खास बात यह है कि भारत में आम की कई किस्में हैं. सभी राज्यों की अलग-अलग किस्में हैं. उत्तर प्रदेश का लंगड़ा आम विश्व प्रसिद्ध है, तो पटना के दूधिया मालदह की भी अपनी पहचान है. यह अपने ज्यादा गूदा, पतला छिलका और उमदा स्वाद के लिए जाना जाता है. आम के मौसम में पटना के दीघा इलाके के विश्व प्रसिद्ध दूधिया मालदह के स्वाद की कहानी सात समंदर पार तक गूंजती है.
नेटवर्क 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, फलों के राजा आम की सभी किस्मों में दूधिया मालदह सबसे खास है. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक इस आम की खेप विदेशों में भेजते हैं. पटना के बिहार विद्यापीठ स्थित आम बगान के प्रबंधक प्रमोद कुमार ने बताया कि एक समय था जब यह आम बगान पूरे दीघा क्षेत्र में था. हालांकि, कंक्रीट के जंगलों के निर्माण के कारण अब बाग सिकुड़ गए हैं और केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गए हैं. प्रमोद कुमार ने बताया कि लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन इस आम के पौधे को पाकिस्तान के इस्लामाबाद की शाह फैसल मस्जिद के इलाके से लाए और इसे पटना के दीघा में लगाया.
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ऐसा माना जाता है कि नवाब साहब के पास बहुत सारी गायें हुआ करती थीं, वे बचे हुए दूध से पौधों की सिंचाई करते थे. एक दिन जब पेड़ बड़ा हुआ और फल निकले तो दूध जैसा पदार्थ निकला, जिसके बाद इसका नाम दुधिया मालदा रखा गया. प्रमोद कुमार के मुताबिक, पिछले सीजन में 33 देशों में आम की खेप भेजी गई थी. यहां से देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत तमाम नेताओं को आम भेजे जाते हैं. इसके अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, जापान और दुबई समेत तमाम देश इस आम के दीवाने हैं और हर साल इसके ऑर्डर आते हैं. यह आम जून में पककर तैयार हो जाता है. आम लगभग 100 प्रति किलो की दर से बिकता है.
प्रमोद ने कहा कि मैंने अपने दादाजी से सुना है कि पहले राजधानी के बोरिंग कैनाल रोड से लेकर दीघा तक आम का जंगल हुआ करता था, लेकिन अब इस इलाके में कंक्रीट का जंगल बन गया है. इस वजह से जंगल सिकुड़ गया है और अब केवल कुछ ही स्थानों पर दूधिया मालदा आम पाया जाता है. बिहार विद्यापीठ में दूधिया मालदा के लगभग 50 पेड़ हैं, जबकि पटना में अभी भी लगभग 1,000 पेड़ बचे हैं. यह आम सफेद दिखता है. अगर आप सभी आमों को एक जगह रख दें तो जो सबसे सफेद होता है वो दूधिया मालदा होता है.
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प्रमोद कहते हैं कि इस साल लू से काफी नुकसान हुआ है. फल कम हैं और जो फल हैं वे गिर रहे हैं. पिछले दो साल से मौसम की वजह से ज्यादा नुकसान हुआ है. फिलहाल बिहार विद्यापीठ के पास 33 एकड़ का आम का बगीचा है. इस परिसर में दुधिया मालदा के अलावा कई तरह के आम के पेड़ हैं. लेकिन हर साल इसमें कमी आ रही है. हर साल दस पेड़ सूख रहे हैं. बिहार विद्यापीठ में लगभग 40 ऐसे आम के पेड़ हैं जो निज़ाम के समय के हैं.
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