खूबसूरत सेब के बगीचे कश्मीर घाटी की पहचान बन चुके हैं. सेब लंबे समय से घाटी के गौरव और अर्थव्यवस्था का प्रतीक बने हुए हैं. लेकिन अब यहां पर इन सेबों की वजह से एक ऐसा संकट पैदा होता जा रहा है, जो डराने वाला है. एक रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है कि सेब के इन बगीचों में जिन कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है, वो अब यहां के स्थानीय लोगों में कैंसर की बड़ी वजह बनते जा रहे हैं. इस रिसर्च ने कई लोगों को डरा दिया है.
कई तरह के वैज्ञानिक सबूत इस तरफ इशारा करते हैं कि जहरीले कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है. इन सबूतों के बाद कुछ लोग कीटनाशकों के इस्तेमाल को घाटी में कैंसर की बढ़ती घटनाओं से जोड़ रहे हैं. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि कहीं न कहीं सेब की वजह से भी घाटी में कैंसर के मरीज बढ़ते जा रहे हैं. यह फल कश्मीर के बागवानी उद्योग की रीढ़ है.
इंडियन जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल एंड एनवायर्नमेंटल मेडिसिन के मुताबिक साल 2010 में हुई एक रिसर्च से पता चला है कि कश्मीर के बागान बेल्ट में 90 प्रतिशत ब्रेन ट्यूमर के मरीज कीटनाशकों के संपर्क में आए थे. इन सभी मामलों में हाई कैटेगरी यानी एग्रेसिव ट्यूमर शामिल थे. रिसर्च में अनंतनाग, बडगाम और बारामुला जैसे जिलों में स्थित बागवानों को शामिल किया गया था. ये वो क्षेत्र हैं जहां घाटी के 193,109 हेक्टेयर सेब के बागों का 90 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा है. कुलगाम और शोपियां जैसे छोटे जिलों में भी अपेक्षाकृत कम आबादी के बावजूद मामलों की महत्वपूर्ण सांद्रता देखी गई.
जहां इंसानों की हेल्थ पर इनका असर चिंताजनक है तो ये कीटनाशक सेब की क्वालिटी भी खराब कर रहे हैं. कीटनाशकों में मैन्कोजेब, कैप्टन और क्लोरपाइरीफोस शामिल हैं. ये कीटनाशक लंबे समय तक फसल की स्थिरता को खतरे में डाल रहे हैं. सेब की बाहरी त्वचा को रकने के लिए बड़े स्तर पर मैन्कोजेब को प्रयोग किया जाता है. यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने इसे कैंसर की वजह से बनने वाले तत्वों की वजह से बैन कर दिया गया है. ईयू की मानें तो इस कीटनाशक की वजह से पर्यावरण पर भी खतरा बढ़ रहा है.
बैन के बाद भी कश्मीर में इसका प्रयोग अनियंत्रित तौर पर जारी है. एक अनुमान के मुताबिक इस कीटनाशक का हर साल 3,400 मीट्रिक टन का छिड़काव किया जाता है. साथ ही 4,350 मीट्रिक टन कैप्टन और 3,186 मीट्रिक टन क्लोरपाइरीफोस का भी छिड़काव किया जाता है.
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