लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों का समापन हो गया है. इन चुनावों में बीजेपी ने दमदार वापसी की है. मसलन, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला है, जबकि तेलंगाना में कांग्रेस भी प्रचंड बहुमत के साथ ही सत्ता में आई है. वहीं मिजोरम में जेडीपीएम को बहुमत मिला है. चुनाव परिणाम जारी होने के साथ ही लोकसभा चुनावों का आगाज भी हो गया है. इसी कड़ी में बीजेपी से उन नेताओं से लोकसभा सदस्य से इस्तीफा ले लिया गया है, जो लोकसभा का सदस्य रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़े थे और जीत दर्ज की थी.
लोकसभा सदस्य पद से इस्तीफा देने वाले विधायकों के नामों की सूची में पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी हैं. दामोह से विधायक बने नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा की सदस्या के साथ ही कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया है. इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्रीय जनजाति मंत्रालय का पदभार संभाल रहे अर्जुन मुंडा को कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है.
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मुंडा को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मिली इस जिम्मेदारी को उनका कद बढ़ाने के राजनीतिक प्रयासों के तौर पर भी देखा जा रहा है, लेकिन दूसरी तरफ अगर उनकी इस ताजपोशी के मायनों को समझें तो बतौर कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा का सफर चुनौतियों भरा हो सकता है. आइए 5 पॉइंट में समझते हैं कि नए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा के सामने क्या चुनौतियां हैं.
अर्जुन मुंडा को कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी तब दी गई है, जब दुनियाभर में EL Nino का संकट गहराया हुआ है. अल नीनो की वजह से माॅनसून सीजन में अगस्त का महीना बीते 10 साल में सबसे सूखा दर्ज किया गया है, जबकि अक्टूबर में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है. वहीं औद्योगिक काल यानी 1900 के बाद साल 2023 को सबसे गर्म वर्ष के तौर पर रेखांकित किया जा रहा है. वहीं ये भी कहा जा रहा है कि मई 2024 तक अल नीनो का असर रह सकता है.
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अल नीनो के अभी तक के प्रभाव की वजह से गन्ने और धान का उत्पादन गिरा है. तो वहीं गेहूं उत्पादन में भी गिरावट होने का अनुमान लगाया जा रहा है. कुल मिलाकर अल नीनो की वजह से भारत 21वीं सदी के सबसे बड़े सूखे की तरफ आगे बढ़ रहा है. वहीं अल नीनो की वजह से किसानों की चुनौतियां बढ़ी हुई है. ऐसे में बतौर कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा पर सूखे के इस संभावित विकराल स्थितियों का सामान कर रहे किसानों की पैरोकारी करते हुए एक ठोस योजना का सफल क्रियान्वयन करने की नजर आती है.
मोदी सरकार की तरफ से तीन कृषि कानून बनाए जाने के बाद नवंबर 2020 में देश में एक बड़ा किसान आंदोलन हुआ था. 13 महीने चले इस आंदोलन को देखते हुए पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है, लेकिन इस आंदोलन के बाद किसान संगठन MSP गारंटी कानून बनाने, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक C2+50 फार्मूले के तहत फसलों के दाम तय करने, किसान कर्ज माफी जैसी मांगों को लेकर आंदोलित हैं. इसी कड़ी में किसान संगठन अभी तक कई छोटी रैलियां कर चुके हैं और साथ ही किसान संगठन ये स्पष्ट कर चुके हैं कि इन मुद्दों पर अमल होने पर लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा किसान आंदोलन किया जाएगा. ऐसे में अर्जुन मुंडा को बतौर कृषि मंत्री लोकसभा चुनाव से पहले किसान आंदोलन की तपिश झेलनी पड़ सकती है.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में धान और गेहूं की एमएसपी पर खरीद में बोनस देने का वादा किया है. बीजेपी ने किसानों से ये वादा तब किया था, जब कांग्रेस किसान कर्ज माफी के साथ ही MSP गारंटी कानून के वादे के साथ चुनावी मैदान में थी. कुल मिलाकर इस चुनाव में बीजेपी ने MSP गारंटी की मांग के सामने MSP बोनस का मॉडल खड़ा किया है. बेशक छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी ने ये वादा किया है और राज्य सरकारों को ये बोनस की राशि देनी है, लेकिन अन्य राज्यों के किसानों को MSP बोनस का मॉडल प्रभावित करेगा, ऐसे में बतौर कृषि मंत्री अन्य राज्यों के किसानों को इस तरह का लाभ मिले, ये सुनिश्चित करने की नैतिक और राजनीतिक जिम्मेदारियां उन पर रहेंगी.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में किसानों के मुद्दे बेहद ही लोकप्रिय रहे हैं. मसलन, कांग्रेस के साथ ही बीजेपी ने किसानों के मुद्दाें को प्रमुखता से अपने घोषणापत्र में जगह दी थी. जिसमें किसान कर्ज माफी, MSP गारंटी कानून, MSP पर अन्य फसलों की खरीद, MSP बोनस के मुद्दे प्रमुख थे. तो वहीं किसान आंदोलन के बाद लोकसभा चुनाव से पहले संभावित किसान आंदोलन भी किसानों के मुद्दों को गर्माएगा. ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव किसानों के मुद्दे पर लड़ा जाएगा, इसकी पूरी संभावनाएं बनी हुई हैं, जिसमें कृषि मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा के तौर पर भी देखा जा सकता है.
झारखंड की राजनीति के 'अर्जुन' रहे कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा से झारखंड को भी बड़ी उम्मीद हैं.असल में अर्जुन मुंडा दो बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं, तो वहीं मौजूदा वक्त में झारखंड की खेती किसान दम तोड़ती हुई दिखाई दे रही है. असल में जलवायु परिवर्तन के लिहाज से झारखंड बेहद ही संवेदनशील है. तो वहीं बीते दो वर्षो से झारखंड लगातार सूखे का सामना कर रहा है. ऐसे में अर्जुन मुंडा पर अपने गृह राज्य झारखंड की खेती किसानी को नया जीवन देने की भी चुनौती है.
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