मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से सोयाबीन की फसलों पर सफेद मक्खी और रस चूसक कीटों का प्रभाव बढ़ गया है. समस्या से निपटने के लिए किसान सीधे तौर पर फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं. फसलों पर इसके प्रभाव को कम करने और कम खर्च में इसके निपटान के लिए किसानों को मैकेनिकल तरीका अपनाना चाहिए, ताकि फसलों पर कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग को कम किया जा सके. रिमझिम बारिश के साथ तापमान में उतार-चढ़ाव के चलते फसलों में कीटों और इल्लियों के लिए मौसम अनुकूल हो गया है. जिसके कारण यह तेजी से पनप रहे हैं.
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि वर्तमान में सोयाबीन और सब्जियों की फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान निराई-गुड़ाई जल्द शुरू करें. साथ ही सभी फसलों में सफेद मक्खी और रस चूसक कीटों की नियमित निगरानी करें. साथ ही वैज्ञानिकों ने बताया कि सोयाबीन की फसल में पक्षियों के बैठने के लिए टी आकार की बर्ड पर्चेस लगाएं. इससे कीटभक्षी पक्षियों द्वारा कीटों, मक्खी और इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलेगी.
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मैकेनिकल विधि में किसान को 'टी' आकार की खूंटियां खेत में फसल के बीच लगानr चाहिए. किसान प्रति हेक्टेयर में 35 से 40 खुटियां लगा सकते हैं. खेतों में लगी खूटियों पर पक्षी आकर बैठेंगे और इल्लियों को खाकर फसल को नियंत्रित करेंगे. किसानों को इस बात का भी ध्यान रहे कि खेत में लगी खुटियां फली में दाना भरते समय निकाल लें.
खेती में साल-दर-साल रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का खेती में उपयोग बढ़ते जा रहा है. ऐसे में एक वर्ष के दौरान किसान रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों पर अधिक खर्च कर रहे हैं. इस लिहाज से दोनों सीजन में किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 10 हजार रुपये के रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों खर्च कर रहे हैं. ऐसे में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग में कमी लाने के लिए किसानों को विभागीय स्तर पर जागरूक किया जा रहा है. मौसम में हो रहे बदलाव के चलते फसलों पर कीट, मक्खी और इल्लियों का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. जिनके नियंत्रण के लिए किसानों को सलाह दी जा रही है.
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