Chickpea varieties: जलवायु परिवर्तन में भी चने की ये तीन किस्में देंगी अधिक उपज, जानें इनकी खासियत

Chickpea varieties: जलवायु परिवर्तन में भी चने की ये तीन किस्में देंगी अधिक उपज, जानें इनकी खासियत

Chickpea varieties: जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में पहले से ही तापमान में वृद्धि दर्ज की जा रही है, इसलिए गर्मी और सूखा से सहनशील चने की किस्में भारतीय किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं. ICRISAT के सहयोग से ICAR के संस्थानों ने तीन नई चने की किस्में विकसित की हैं, जो जलवायु-लचीली और रोग-प्रतिरोधी हैं. आइए इन किस्मों की खासियतों को जानते हैं रबीनामा सीरीज में...

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Chickpea varieties: जलवायु परिवर्तन में भी चने की ये तीन किस्में देंगी अधिक उपज, जानें इनकी खासियत किसान चने की खेती से कर सकते हैं बंपर कमाई

रबीनामा: जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने के लिए जलवायु अनुकूल खेती एक बेहतर विकल्प है. जलवायु ऐसा फैक्टर है जिसका प्रभाव जीव-जंतु, पेड़-पौधों और खेती पर होता है. कृषि शोध संस्थान जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने के लिए फसलों की नई किस्में विकसित कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में पहले से ही तापमान में वृद्धि दर्ज की जा रही है, इसलिए गर्मी और सूखा से सहनशील चने की किस्में भारतीय किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं. ICRISAT के सहयोग से ICAR के संस्थानों ने तीन नई चने की किस्में विकसित की हैं, जो जलवायु-लचीली और रोग-प्रतिरोधी हैं और इन किस्मों की खासियतों को जानते हैं इस रबीनामा सीरीज में.

चने की नई किस्मों की खेती करें किसान

बदलते जलवायु परिवर्तन के हिसाब से जलवायु अनुकुल चने की सूखा सहने की क्षमता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और अधिक उपज देने वाली चने की तीन नई किस्में विकसित की गई हैं. इन किस्मों को भारतीय किसानों के लिए साल 2021 में केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा खेती के लिए अधिसूचित किया गया था. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, भारत के चना उत्पादक क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और सूखे के कारण चने की उपज सालाना 60 फीसदी तक घट जाती है. बदलती जलवायु परिस्थितियों में चने तीन नई किस्में आइपीसीएल 4-14, पूसा 4005 और समृद्धि किसानों के लिए बेहतर उपज दिला सकती हैं. वर्षा आधारित क्षेत्र हो या सिंचाई क्षेत्र, दोनों जगहों में ये किस्में बढ़ते तापमान और सूखे की परिस्थितियों में बेहतर उत्पादन दे सकती हैं.

सूखे में भी ये किस्म देगी अधिक उपज

आइपीसीएल 4-14 चने की किस्म साल 2021 में रिलीज की गई थी और इस किस्म को भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर द्वारा विकसित किया गया है. इसका प्रति एकड़ उत्पादन 7 से 8 क्विंटल होता है. यह किस्म 128 से 133 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म को भारत में चने की खेती को प्रभावित करने वाली जलवायु परिस्थितियों और अन्य कारकों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए विकसित किया गया है. इस किस्म की खेती से वातावरण में सूखे की स्थिति में बेहतर उत्पादन मिल सकता है. इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर के मैदानी इलाकों, राजस्थान के कुछ हिस्सों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए जारी किया गया है. यह सिंचित और समय पर बुवाई के लिए बेहद बेहतर किस्म है. यह किस्म विल्ट, कॉलर रोट, स्टंट रोगों के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी और शुष्क जड़ सड़न के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है.

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पूसा 4005 जलवायु चुनौती में भी बेहतर

पूसा 4005, यानी बीजीएम 4005, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित गई है और इसे 2021 में खेती के लिए जारी किया गया था. इसकी उपज क्षमता सूखे की परिस्थितियों में प्रति एकड़ 8 क्विंटल होती है. यह किस्म लगभग 130 से 131 दिनों में तैयार हो जाती है. इस किस्म को भारत में चने की खेती को प्रभावित करने वाली जलवायु परिस्थितियों और अन्य कारकों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए विकसित किया गया है. इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए जारी किया गया है. यह किस्म विल्ट यानी उकठा रोग, कॉलर रोट, स्टंट रोगों के प्रति मध्यम रूप से प्रतिरोधी है और शुष्क जड़ सड़न के प्रति मध्यम रूप से सहनशील है.

समृद्धि किस्म इन राज्यों के लिए बेहतर

समृद्धि (आईपीसीएमबी 19-3) देसी किस्म है, जिसे भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र कानपुर ने विकसित किया है. इसे 2021 में किसानों के लिए खेती के लिए जारी किया गया था. यह उकठा रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है और सिंचित स्थिति में खेती के लिए बेहतर है. इसकी उपज क्षमता प्रति एकड़ 8 से 9 क्विंटल है. इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए बेहतर है. यह किस्म 100 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.

चने की बुवाई के समय इन बातों का रखें ध्यान

चने की बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 से 30 अक्टूबर तक है. निचले क्षेत्रों में चने की बुवाई नवंबर में करनी चाहिए. चने की खेती चिकनी दोमट या बारीक दोमट मिट्टी वाले खेतों में करनी चाहिए. सीड ड्रिल से 6 से 8 सेमी. गहराई पर बोनी चाहिए और लाइन से लाइन की दूरी 30 से 45 सेमी होनी चाहिए. चने की बुवाई के लिए छोटे आकार की किस्म का बीज दर 26 किलोग्राम, मध्यम आकार के चने की किस्म का बीज दर 30 किलोग्राम और बड़े दाने वाली किस्म का बीज दर 40 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बोना चाहिए.

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बुवाई से पहले ये काम करना न भूलें

चने का बीज बोने से पहले बीज का उपचार करना न भूलें, क्योंकि इसमें उकठा रोग, रतुआ रोग, शुष्क जड़ रोग का प्रकोप अधिक होता है. इसलिए बीज बोने से पहले बीज का उपचार करें. चने के उकठा रोग और गलन रोग की रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम थीरम या 1 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. कीटों से रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस 1 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपाचारित करें. इसके बाद चने की अधिक पैदावार के लिए राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें. 200 ग्राम कल्चर का एक पैकेट 10 किलोग्राम बीज उपचार के लिए पर्याप्त है. कल्चर को बाल्टी में घोलकर 10 किलो बीज डालकर अच्छी तरह मिला लें ताकि सभी बीज अच्छी तरह मिल जाएं. कुछ समय बाद चने की बुवाई करनी चाहिए.

 

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