देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र में रबी सीजन के प्याज की खेती की तैयारियां शुरू हो गई हैं. प्याज की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी लगाई जाती है, फिर नर्सरी से निकालकर उसे खेत में लगाया जाता है. दिसंबर-जनवरी में इसकी रोपाई होती है जबकि फसल की कटाई मार्च से लेकर मई तक होती है. महाराष्ट्र के कुल प्याज उत्पादन का 65 फीसदी रबी सीजन में ही होता है. रबी सीजन का प्याज ही स्टोर किया जाता है. जबकि खरीफ और लेट खरीफ सीजन का प्याज स्टोर करने लायक नहीं होता. इसका बीज इस साल 500 रुपये किलो तक बिक रहा है.
राज्य के खानदेश एरिया में किसान रबी सीजन वाले प्याज की खेती की तैयारी कर रहे हैं. इसके लिए प्याज की नर्सरी तैयार की जा रही है. खास बात यह है कि प्याज के बीज के दाम स्थिर होने से किसानों को राहत मिल रही है. कुछ किसानों ने अक्टूबर में ही नर्सरी में बीज लगा दिए. कुछ किसान अभी भी नर्सरी लगा रहे हैं.
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ऐसा देखने में आया है कि पिछले कुछ दिनों में प्याज के बीज के दाम कम हुए हैं. क्योंकि जब प्याज का अच्छा दाम नहीं मिल रहा था तब काफी किसानों ने उसके बीज तैयार कर लिए थे. इसलिए बीज की कीमतों में लगातार गिरावट आई है. ग्रामीण क्षेत्रों में कई किसान गुणवत्तापूर्ण बीज बेच रहे हैं. कुछ किसान इस गारंटी के साथ भी बीज बेच रहे हैं कि वे अंकुरण के बिना बीज का भुगतान नहीं लेंगे. दरअसल, प्याज के बीज में अंकुरण बहुत बड़ी समस्या होती है.
धुले, शिंदखेड़ा, शिरपुर, जलगांव, एरंडोल, धरणगांव, रावेर और चोपड़ा आदि एरिया में प्याज के बीज बेचने वाले बहुत किसान हैं. जो इस साल अधिकतम 500 रुपये प्रति किलो के भाव पर प्याज का बीज बेच रहे हैं. हालांकि इस वर्ष नर्सरियों की संख्या पहले से कम है. कहा जा रहा है कि बहुत से किसान प्याज की फसल की ओर रुख नहीं करेंगे. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों का अनुभव यह है कि जब प्याज किसानों के पास होता है तो दाम कम होता है. पिछले दो साल से किसान 2 से लेकर 10 रुपये किलो तक के ही दाम पर प्याज बेच रहे हैं, जो घाटे का सौदा है.
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