आज के ज़माने में खेती के लिए पोटैशियम की कमी एक बड़ी समस्या बन चुकी है. पूरी दुनिया में लगभग 20 फीसद खेती वाली जमीन पोटैशियम की कमी से परेशान है. इस कमी के कारण फसलों की गुणवत्ता और पैदावार पर असर पड़ता है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. खासकर भारत में यह समस्या ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि किसान ज्यादा ध्यान नाइट्रोजन और फॉस्फोरस देने पर देते हैं और पोटैशियम की मात्रा कम होती जा रही है. पिछले कुछ वर्षों में भारत में पोटैशियम की कमी काफी बढ़ गई है, जो खेती के लिए चिंता की बात है.
भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में कोकोआ की खेती बड़े पैमाने पर होती है. कोकोआ की खेती से काफी मात्रा में कच्चा माल और कूड़ा-कचरा निकलता है, जैसे कोकोआ के छिलके, पत्तियां और खासकर कोकोआ के पॉट हस्क. ये पॉट हस्क बहुत सारे पोषक तत्वों से भरे होते हैं, खासकर पोटैशियम से. अगर इन्हें सही तरीके से उपयोग किया जाए तो ये खेती के लिए बहुत फायदेमंद हो सकते हैं.
इस समस्या के समाधान के लिए कोकोआ पॉट हस्क को बायोचार में बदलने का तरीका अपनाया गया है. सबसे पहले कोकोआ के पत्ते, पॉट हस्क और बीन्स के छिलकों को धूप में और पॉलीहाउस में सुखाया जाता है. इसके बाद इन्हें एक खास भट्टी में गर्म करके बायोचार बनाया जाता है. इस प्रक्रिया में कोकोआ पॉट हस्क से बनने वाला बायोचार सबसे अच्छा पाया गया. यह बायोचार लगभग 40% दक्षता से बनता है, यानी इसमें पोषक तत्व अच्छी मात्रा में बचते हैं.
बायोचार में पोटैशियम की मात्रा करीब 10.9% होती है, जिसमें से 60% पोटैशियम पानी में घुलनशील होता है, जो पौधों के लिए जल्दी उपलब्ध हो जाता है. इसके अलावा इसमें कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी होते हैं. बायोचार की pH लगभग 10.7 होती है, जो थोड़ी क्षारीय होती है. इसकी बनावट हल्की होती है और इसमें कुछ खास तरह के सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं, जो मिट्टी के लिए लाभकारी होते हैं.
बायोचार की सुरक्षा जांचने के लिए इसे केंचुओं पर टेस्ट किया गया. इसके परिणाम बताते हैं कि यह बायोचार केंचुओं के लिए नुकसानदेह नहीं है. हालांकि केंचुओं को इस बायोचार के साथ सामंजस्य बिठाने में थोड़ा समय लगा, पर कोई भी तेज नुकसान नहीं हुआ. यह दिखाता है कि कोकोआ पॉट हस्क बायोचार पर्यावरण के लिए सुरक्षित है.
कोकोआ पॉट हस्क से बने बायोचार में पोटैशियम की अच्छी मात्रा होने के कारण यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करता है. खासकर जैविक खेती में जहां रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम होता है, यह बायोचार बहुत उपयोगी साबित होता है. इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है और फसलों की पैदावार भी बढ़ती है. इसलिए यह बायोचार भारत के किसानों के लिए एक किफायती और टिकाऊ समाधान हो सकता है, जो पोटैशियम की कमी को पूरा करने में मदद करेगा.
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