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अनार की पत्तियां पीली पड़ रही हैं, पौधे बौने हो रहे हैं तो सावधान, तुरंत करें ये उपाय

अनार की पत्तियां पीली पड़ रही हैं, पौधे बौने हो रहे हैं तो सावधान, तुरंत करें ये उपाय

यह अनार की नर्सरी और बगीचों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है. ये राउंडवॉर्म, फफूंदजनित रोगों को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं. इस सूत्रकृमि यानी राउंडवॉर्म ने अनार के बगीचे में कवक रोगों के प्रतिरोध के टूटने में प्रमुख भूमिका निभाई है. इस सूत्रकृमि का प्रकोप मुख्य रूप से अनार की नर्सरी और बागानों में देखने को मिलता है है.

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अनार के बगीचे में लगने वाले रोग अनार के बगीचे में लगने वाले रोग

अनार राजस्थान की एक महत्वपूर्ण फल फसल है. घरेलू और विदेशी बाजारों में अनार की अच्छी कीमत को देखते हुए राजस्थान के किसानों का रुझान अनार की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहा है. राजस्थान में इसकी खेती का कुल क्षेत्रफल 0.8 हजार हेक्टेयर, उत्पादन 5.5 लाख टन और उत्पादकता 6.4 टन/हेक्टेयर है, जो राष्ट्रीय उत्पादकता 6.6 टन/हेक्टेयर के करीब है. यह हेल्दी होने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होता है. यह विटामिन का बहुत अच्छा स्रोत है, इसमें विटामिन ए, सी और ई और फोलिक एसिड प्रचुर मात्रा में होता है. आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस और कैल्शियम जैसे खनिजों, एंथोसायनिन, पॉलीफेनोल्स, सेलेनियम और आहार फाइबर जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण, अनार का फल एंटीऑक्सीडेंट का सबसे अच्छा प्राकृतिक स्रोत माना जाता है.

इसका उपयोग ताजे फल और विभिन्न प्रसंस्कृत उत्पादों के रूप में किया जाता है. लेकिन कई रोग की वजह से अनार की पत्तियां पीली पड़ने लगती है. जिस वजह से इसकी खेती कर रहे किसानों को काफी नुकसान होता है. इतना ही नहीं इस रोग की वजह से पौधे बौने रह जाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इसका उपाय और क्यों होती है ये समस्या?

क्या है जड़गांठ राउंडवॉर्म?

दरअसल जड़गांठ राउंडवॉर्म की वजह से आनर के बगीचों में ये समस्या देखने को मिलती है. राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में इस राउंडवॉर्म का प्रकोप देखा गया है. यह अनार की नर्सरी और बगीचों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है. ये राउंडवॉर्म, फफूंदजनित रोगों को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं. इस सूत्रकृमि यानी राउंडवॉर्म ने अनार के बगीचे में कवक रोगों के प्रतिरोध के टूटने में प्रमुख भूमिका निभाई है. इस सूत्रकृमि का प्रकोप मुख्य रूप से अनार की नर्सरी और बागानों में देखने को मिलता है है.

क्या है राउंडवॉर्म का असर

इस सूत्रकृमि से प्रभावित पेड़ पीले, सूखे और रूखे लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं और पौधे की जड़ प्रणाली विशिष्ट कठोर जड़गांठ दिखाती है. प्रबंधन के दृष्टिकोण से सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्मों का चयन, गैर-होस्ट या खराब मेजबान फसलों के साथ मुख्य क्षेत्र में उपयुक्त फसलचक्र को अपनाना, नर्सरी को बढ़ाने के लिए सूत्रकृमि मुक्त क्षेत्रों का चयन करना, मृदा के सौरीकरण द्वारा नर्सरी क्षेत्रों का कीटाणुशोधन करना, बीज और मृदा के उपचार में शामिल हैं.

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अनार की बागवानी के लिए है खतरनाक

जड़गांठ राउंडवॉर्म, भारत में कई बागवानी और सजावटी पौधों का एक उभरता हुआ और विनाशकारी कीट है. राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में इस राउंडवॉर्म का प्रकोप देखा गया है. यह अनार की नर्सरी और बगीचों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है. ये राउंडवॉर्म, फफूंदजनित रोगों को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं. इस सूत्रकृमि यानी राउंडवॉर्म ने अनार के बगीचे में कवक रोगों के प्रतिरोध के टूटने में प्रमुख भूमिका निभाई है. ये मुख्य रुप से रोपण सामग्री द्वारा मुख्य क्षेत्र में फैलता है. इस सूत्रकृमि का प्रकोप मुख्य रूप से अनार की नर्सरी और बागानों में देखने को मिलता है. इस सूत्रकृमि से प्रभावित पेड़ पीले, सूखे और रूखे लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं.

क्या हैं इसके मुख्य लक्षण

अनार के बगीचों में पत्तियों का पीलापन, पौधे का बौनापन, मुरझाना या सूखना, जड़ों में गांठों का निर्माण और पेड़ों पर कम फल बनना आदि जड़गांठ राउंडवॉर्म के प्रमुख लक्षण हैं. इस सूत्रकृमि का प्रकोप मुख्य रूप से अनार की नर्सरी और बागानों में देखने को मिलता है. 

कैसे करें रोकथाम?

  • गर्मियों में पौध रोपण से पहले नर्सरी/मुख्य उद्यान की गहरी जुताई करें. रोपण सामग्री जड़ गांठ सूत्रकृमि से मुक्त होनी चाहिए. इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोपण से पहले फसल चक्र अपनाएं.
  • पॉलीथीन बैगों को भरने के लिए सोलराइज्ड मिट्टी का उपयोग करें या फिर नर्सरी की मिट्टी को 2-3 सप्ताह के लिए सफेद पारदर्शी शीट (100 गेज) द्वारा मई के महीने के दौरान मदर प्लांट से पॉलीथिन बैग या नर्सरी में ग्राफ्ट स्थापित करने से पहले उपयोग करना आवश्यक.
  • पेसिलोमाइसेस लिलासिनस का जड़गांठ राउंडवॉर्म के जैविक नियंत्रण के लिए प्रयोग.
  • जड़गांठ राउंडवॉर्म का प्रकोप ज्यादा होने पर सबसे पहले रासायनिक नेमाटीसाइड का प्रयोग कर सकते हैं ताकि इनकी आबादी को नुकसान की सीमा से कम किया जा सके. इसके लिए किसान दानेदार नेमाटीसाइड फ्लुएनसल्फॉन 2 प्रतिशत जी.आर. का उपयोग कर सकते हैं. दानेदार नेमाटीसाइड का उपयोग करने के लिए, ड्रिपर के नीचे एक छोटा सा गड्डा (5-10 सें.मी.) बनाएं और दानेदार रसायन/10 ग्राम प्रति ड्रिपर (अधिकतम खुराक 40 ग्राम/पौधे से अधिक नहीं होना चाहिए) लागू करें, इसे मिट्टी से ढककर पानी देना शुरु कर दें.
  • एक अन्य नेमाटीसाइड जैसे फ्लूपीरम 34-48 प्रतिशत एससी/1.5 मि.ली./पौधे के साथ भी ट्रेंचिंग किया जा सकता है. भीगने से पहले पौधे में पर्याप्त रूप से पानी दिया जाना चाहिए. दो लीटर पानी में 2 मि.ली. नेमाटीसाइड मिलाएं और 500 मि.ली. प्रति ड्रिपर (4 ड्रिपर/पौधा) या 10000 मि.ली. प्रति ड्रिपर (2 ड्रिपर/ पौधा) डालें. 
  • प्रभावी परिणाम प्राप्त करने हेतु 3-4 महीने के लिए अनार के पौधों के बीच की जगह में पूसा नारंगी गेंदा और पूसा बसंती गेंदा जैसी अफ्रीकी गेंदा किस्मों का रोपण करना चाहिए.