ओडिशा में 500 सालों से हो रही पाला बैंगन की खेती, सदियों पुरानी विरासत के लिए जीआई टैग की मांग 

ओडिशा में 500 सालों से हो रही पाला बैंगन की खेती, सदियों पुरानी विरासत के लिए जीआई टैग की मांग 

ढेंकनाल से आने वाला पाला बैंगन मुख्य तौर पर ढेंकनाल-कामाख्या रास्‍ते के पास ब्राह्मणी नदी के किनारे उगाया जाता है. कामगरा और कनापाला जैसे गांवों में इनकी खेती खासतौर पर होती है. इन इलाकों के किसान सदियों से इस फसल की खेती करते आ रहे हैं. ओडिशा टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक पीढ़ियों से बैंगन की खेती की जाती है.

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ओडिशा में 500 सालों से हो रही पाला बैंगन की खेती, सदियों पुरानी विरासत के लिए जीआई टैग की मांग पाला बैंगन अपने स्‍वाद के लिए मशहूर है (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

ओडिशा के ढेंकनाल जिले में ब्राह्मणी नदी के किनारे के किसान पीढ़ियों से एक अनोखी किस्म के 'पाला बैगना' की खेती करते आ रहे हैं. स्थानीय लोगों का दावा है कि इस खास किस्म का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. नयागढ़ के कांतिमुंडी बैंगन की तरह ही, अब इस खास फसल के लिए जीआई टैग की मांग बढ़ रही है. बैंगन हर घर में आम सब्जी है, चाहे अमीर हो या गरीब, लेकिन पाला बैंगन अपने स्वाद और विरासत के लिए सबसे अलग है. 

1 किलोग्राम तक होता है वजन 

ढेंकनाल से आने वाला पाला बैंगन मुख्य तौर पर ढेंकनाल-कामाख्या रास्‍ते के पास ब्राह्मणी नदी के किनारे उगाया जाता है. कामगरा और कनापाला जैसे गांवों में इनकी खेती खासतौर पर होती है. इन इलाकों के किसान सदियों से इस फसल की खेती करते आ रहे हैं. ओडिशा टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक पीढ़ियों से बैंगन की खेती की जाती है. एक किसान नटबर मलिक ने कहा, 'हम इसकी खेती करते आ रहे हैं. इसकी गुणवत्ता बेहद खास है और यह असाधारण है. किसी और राज्‍य या फिर ओडिशा के दूसरे जिलों में इसकी खेती नहीं होती है. हर बैंगन का वजन 500 से 700 ग्राम के बीच होता है. इसे ढेंकनाल बाजार से कई क्षेत्रों में सप्‍लाई किया जाता है. लोग इसे खोजते हैं और इसे खाने का आनंद लेते हैं.'  

स्‍वाद होता है बेहद मीठा और खास 

एक और किसान अदैता मल्लिक ने बताया कि दो पाला बैंगन का वजन एक किलोग्राम तक हो सकता है. करीब  25 से 30 किसान इस किस्म की खेती में लगे हुए हैं. इसका स्वाद मीठा होता है और वाकई बहुत अच्छा होता है. इसकी कीमत स्थानीय बाजार में 70 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है. पारंपरिक बीजों के गायब होने की बढ़ती चिंताओं के बीच, किसान सदियों पुराने तरीकों का उपयोग करके पाला बैंगन को संरक्षित रखे हैं और इसे उगाना जारी रखे हैं. बीजों को पहले क्यारियों में बोया जाता है और बाद में रोपाई की जाती है. फसल को जैविक खाद और गोबर से पोषण दिया जाता है. इसकी कटाई का मौसम आमतौर पर दिवाली से लेकर मार्च-अप्रैल के महीने तक होता है. 

सिर्फ 3-4 गांवों में होती है खेती 

स्थानीय बुद्धिजीवी शिशिर सतपथी ने कहा, 'यह किस्म कामगरा के पास सिर्फ तीन-चार गांवों में उगाई जाती है. यहां के लोग करीब 500 सालों से इसकी खेती कर रहे हैं. यह इस इलाके की मूल प्रजाति है और इसे कहीं और नहीं उगाया जा सकता. जिस तरह नयागढ़ के कांतिमुंडी बैंगन को इसकी खूबी के लिए जीआई टैग मिला है, यह भी उससे कम नहीं है. प्रशासन को इसके लिए जीआई टैग की कोशिश करनी चाहिए. 

कहीं और उगाने की कोशिशें फेल 

एक स्थानीय कृषि वैज्ञानिक ने पुष्टि की कि इसे उगाने वाले किसानों का समूह जीआई रजिस्ट्री प्राधिकरण में आवेदन करने की प्रक्रिया में है.  ढेंकनाल कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बिमलेंदु मोहंती ने बताया कि पाला बैंगन की खेती रेतीली मिट्टी में की जाती है और इसे सदियों से यहां उगाया जाता रहा है. भौगोलिक और पर्यावरणीय परिस्थितियां इसके विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसे कहीं और उगाने के प्रयास विफल रहे हैं. अगर उगाने की कोशिश भी कई तो या तो बैंगन बहुत कठोर निकला या ठीक से नहीं बढ़ा. इसका स्वाद बहुत बढ़िया होता है और इसे कई तरह के ओडिया व्यंजनों में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. 

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