पहाड़ों में रोजगार की सीमाएं अक्सर युवाओं को पलायन के लिए मजबूर कर देती हैं; लेकिन हिमाचल में कुल्लू के एक युवक ने मधुमक्खी पालन को अपनाकर न सिर्फ खुद की जिंदगी बदली, बल्कि क्षेत्र में एक नई मिसाल भी कायम की है. अब वह दूसरों को भी रोजगार का मौका दे रहे हैं. सेब उत्पादन के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश इन दिनों पहाड़ी मधुमक्खी पालन में भी अपनी पहचान बना रहा है. यही वजह है कि अब यहां के युवा इस खास मधुमक्खी पालन में अपना हाथ आजमाने लगे हैं. इससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है बल्कि वो कामयाबी का मीठा 'शहद' भी चख रहे हैं. रोजगार के अलाया सेब के पेड़ में फ्लावरिंग प्रॉसेस, पोलिनेशन में भी यह मधुमक्खी मददगार साबित हो रही है.
हिमाचल के कुल्लू के रहने वाले देवेंद्र ठाकुर ने पहाड़ी मधुमक्खी पालन को अपना रोजगार बनाया और और उसमें सफल भी हुए हैं. पहाड़ी मधुमक्खी की तरफ से तैयार शहद से देवेंद्र ठाकुर को लाखों रुपए की आय हो रही है. देवेंद्र ठाकुर ने पांच साल पहले मधुमक्खी पालन की तरफ अपना कदम बढ़ाया था. सिर्फ दो बक्से से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी. फिर देवेंद्र ने जर्मनी की एक संस्था से मधुमक्खी पालन में ट्रेनिंग ली और इसके खास गुर सीखें. यह संस्था कुल्लू में ऑर्गेनिक खेती और मधुमक्खी पालन को लेकर ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रही थी.
इसके बाद देवेंद्र ने मधुमक्खी के बॉक्स बढ़ाने शुरू किए. इसका नतीजा है कि आज वह करीब 90 बॉक्स में मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं. देवेंद्र ने इसके लिए पहाड़ी मधुमक्खी (एपी सिराना) को चुना क्योंकि पहाड़ी मधुमक्खी बर्फीले मौसम में भी रह सकती है. जबकि जो मक्खियां इटली से भारत लाई जा रही हैं, वो ठंड सहन नहीं कर पाती हैं. फलदार पेड़ों और पौधों और जंगलों के पोलिनेशन के लिए इन मधुमक्खी का होना काफी जरूरी है.
देवेंद्र ठाकुर ने बताया कि कुल्लु में सेब की फसल भरपूर होती है इसलिए यहां सेब का शहद भी मिल सकता है. ऐसे में वह इस दिशा में काफी हद तक सफल हो चुके हैं. वहीं जगलों में पेड़ पौधों पर लगे फूलों से मधुमखियां साल में दो बाद शहद का उत्पादन करती है. मधुमक्खी के एक बॉक्स से साल में करीब 7 से 8 किलो शहद निकलता है. जहां दूसरी मधुमक्खियां ज्यादा शहद का उत्पादन करती है तो वहीं पहाड़ी मधुमक्खी कम मात्रा में शहद का उत्पादित करती है.
पहाड़ी मधुमक्खी के शहद में कई तरह के औषधीय गुण भी होते हैं. वहीं इस प्रकार की मधुमक्खी के शहद की बाजार में अच्छी कीमत मिलती है. जहां दूसरी मधुमक्खियों का शहद बाजार में 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है तो पहाड़ी मधुमक्खी के शहद के लिए बाजार में लोग 2000 रुपए प्रति किलो तक के दाम अदा करते हैं. इससे देवेंद्र को अच्छी इनकम हो रही है. देवेंद्र 90 बॉक्स से हर साल 700 किलो तक शहद का उत्पादन कर रहे हैं.
आमदनी के साथ-साथ उनके बगीचों में अच्छा पोलिनेशन हुआ है. इससे सेब की फसल में भी 30 फीसदी का इजाफा हो गया है. देवेंद्र के मुताबिक दूसरे युवा भी बागवानी के साथ साथ मधुमक्खी पालन कर सकते है जिससे उनकी अच्छी कमाई हो सकती है. अब देवेंद्र मधुमक्खी के बॉक्स को पॉलिनेशन के लिए किराए पर भी दे सकते है. घाटी के एक अन्य बागवान लोकेंद्रे के अनुसार वह और उनके दोस्त ने देवेंद्र से प्रेरणा ली है और अब वो भी मधुमक्खी पालन का काम शुरू करने जा रहे हैं. आज युवाओं को इसमें रोजगार की अपार संभावनाए दिख रही है. उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरी के पीछे भागने से अच्छा लोगों को स्व-रोजगार की तरफ सोचना चाहिए.
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