देश की बढ़ती जनसंख्या और खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खेती-किसानी को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस वजह से फसलों के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है. इसके साथ ही साथ मिट्टी के दोहन के कारण मृदा से पोषक तत्वों का ह्रास भी भारी मात्रा में हुआ है. इससे भूमि की उर्वरता तथा उत्पादकता में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है. इनकी क्षतिपूर्ति के लिए मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए हरी खाद एक उत्तम विकल्प है. उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग प्राचीन काल से हो रहा है. हालांकि पिछले कुछ समय में नकदी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में काफी कमी आई है. लेकिन, अगर आप इसकी खूबियां जानेंगे तो जरूर इस्तेमाल करेंगे.
ऊर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि तथा गोबर की खाद जैसे अन्य कार्बनिक स्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और भी बढ़ गया है. कृषि में हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मुख्य तौर पर जमीन में पोषक तत्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है. इसका प्रयोग मृदा की नाइट्रोजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. आमतौर पर इस तरह की फसल को इसके हरी स्थिति में ही हल चलाकर मृदा में मिला दिया जाता है.
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हरी खाद से मृदा में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है. इसके साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो जाती है. हरी खाद के उपयोग से न सिर्फ मिट्टी में नाइट्रोजन उपलब्ध होता है, बल्कि जमीन की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है. हरी खाद के लिए प्रयोग की गई दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रन्थियां होती हैं, जो नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं. फलस्वरूप नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है.
एक अनुमान लगाया गया है कि ढैंचा को हरी खाद के रूप में प्रयोग करने से प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम नाइट्रोजन की बचत होती है. मृदा के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में वृद्धि होती है, जो टिकाऊ खेती के लिए आवश्यक है. विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में इसके जरिए 43.10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर मृदा में बढ़ाई जा सकती है. दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की जो मात्रा बढ़ाती हैं उसका 1/3 हिस्सा वह अपनी बढ़वार के लिए भी उपयोग कर लेती हैं.
यह केवल नाइट्रोजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है, बल्कि इससे मृदा में कई अन्य आवश्यक पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है. इसके प्रयोग से मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जलधारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण में भी कमी जैसे लाभ मिलते हैं.
हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता में सुधार होता है. हरी खाद में मृदाजनित रोगों में भी कमी आती है. हरी खाद खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक होती है. इसके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों में कमी की जा सकती है.
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