DBW296: सीम‍ित सिंचाई वाले इलाकों के लिए बेस्‍ट है गेहूं की यह किस्‍म, बंपर पैदावार के साथ होंगे कई फायदे

DBW296: सीम‍ित सिंचाई वाले इलाकों के लिए बेस्‍ट है गेहूं की यह किस्‍म, बंपर पैदावार के साथ होंगे कई फायदे

रबी सीजन की शुरुआत में गेहूं की किस्म डीबीडब्ल्यू 296 किसानों के लिए बेहतर विकल्प है. यह सीमित सिंचाई वाले इलाकों में उच्च उपज (83.3 क्विंटल/हेक्टेयर) देती है.

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सीम‍ित सिंचाई वाले इलाकों के लिए बेस्‍ट है गेहूं की यह किस्‍म, बंपर पैदावार के साथ होंगे कई फायदेDBW 296 गेहूं किस्‍म (सांकेतिक तस्‍वीर)

देशभर में खरीफ फसलों की कटाई के साथ रबी सीजन की बुवाई का सिलसिला भी शुरू हो गया है. मौसम विभाग के अनुसार, अगले कुछ दिनों में दक्षिण-पश्‍चिमी मॉनसून की वापसी की भी संभावना बन रही है. इसलिए बारिश थमने के कुछ दिन  बाद का समय गेहूं की बुवाई के लिए बढ़‍िया मौका साबित हो सकता है. ऐसे में जानिए गेहूं की एक ऐसी किस्‍म के बारे में जो पैदावार के मामले में बढ़‍िया है और सीमित सिंचाई वाले उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है.

गेहूं की यह किस्‍म डीबीडब्ल्यू 296 (करण ऐश्‍वर्या) है. इसे भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने बनाया है.  डीबीडब्ल्यू 296 को केंद्रीय बुवाई समिति ने दिसंबर 2021 में अधिसूचित किया था. यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश (ऊना और पांवटा घाटी), उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त मानी गई है.

25 अक्‍टूबर से 5 नवंबर तक करें बुवाई

DBW 296 गेहूं किस्म की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक है. किसान बुवाई से पहले खेत की अच्छी तैयारी करें. इसके लिए सिंचाई के बाद डिस्क हैरो, लेवलर और रोटावेटर से जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी समतल और भुरभुरी रहे. वहीं, अगर बारिश हाल ही में हुई हो तो सिंचाई की खास जरूरत नहीं है. इसकी बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलो बीज की जरूरत होती है और पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. बीजों को कवकनाशी (कार्बोक्सिन + थीरम) से उपचारित करना जरूरी है.

खाद प्रबंधन और सिंचाई के लिए सलाह

इस किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर 90:60:40 किलो एनपीके की सिफारिश की गई है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और शेष आधी पहली गांठ बनने की अवस्था (लगभग 45–50 दिन बाद) में दी जानी चाहिए. सीमित सिंचाई की स्थिति में इस किस्म ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है. बुवाई से पहले और 45 से 50 दिन बाद दो सिंचाई पर्याप्त मानी गई हैं.

खरपतवार नियंत्रण के लिए अपनाएं ये तरीके

संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए किसान आईसोप्रोट्यूरॉन, क्लोडिनाफॉप, पिनोक्साडेन या फेनोक्साप्रॉप जैसे खरपतवारनाशकों का उपयोग कर सकते हैं. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2,4-डी या मेटसल्फ्यूरॉन का प्रयोग 30-35 दिन बाद करना चाहिए. बेहतर परिणाम के लिए मिट्टी में नमी का होना जरूरी है.

इन रोगों से लड़ने में सक्षम

डीबीडब्ल्यू 296 किस्म पीले, झुला और काले रतुआ जैसे रोगों के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी है. जीन परीक्षण से यह स्पष्ट हुआ है कि इसमें कई प्रभावी रतुआ रोधी जीन मौजूद हैं. फफूंदी या पाउडरी मिल्ड्यू की शुरुआती अवस्था में घुलनशील सल्फर 0.1% घोल का छिड़काव करना फायदेमंद है.

अध‍िकतम उपज 83.3 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर

डीबीडब्ल्यू 296 सीमित सिंचाई की स्थिति में औसतन 56.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है, जबकि इसकी अधिकतम उपज क्षमता 83.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है. यह किस्म अन्य लोकप्रिय किस्मों जैसे एचडी 3043 और पंजाब सिंच से बेहतर साबित हुई है.

गुणवत्ता की बात करें तो डीबीडब्ल्यू 296 बिस्किट, ब्रेड और चपाती सभी के लिए उपयुक्त है. इसका बिस्किट स्प्रेड फैक्टर 9.5/10 और ब्रेड गुणवत्ता स्कोर 8.2 है. इसमें मजबूत ग्लूटेन और उच्च हेक्टोलिटर वजन (78.6) होने से यह व्यावसायिक उपयोग के लिए भी आकर्षक विकल्प बनती है.

डीबीडब्ल्यू 296 उन किसानों के लिए लाभदायक किस्म है जो सीमित सिंचाई वाले इलाकों में गेहूं की खेती करते हैं. यह न केवल अधिक उपज देती है, बल्कि रोगों के प्रति भी बेहतर प्रतिरोध दिखाती है और अनाज की गुणवत्ता के लिहाज से भी उच्च श्रेणी की है.

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