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पान के लिए बेहद खतरनाक है बीघा रोग, कुछ ही दिनों में सड़ा देता है पत्ता, ऐसे करें उपचार

पान के लिए बेहद खतरनाक है बीघा रोग, कुछ ही दिनों में सड़ा देता है पत्ता, ऐसे करें उपचार

भारत में पान की खेती लगभग 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. इसके अलावा इसकी खेती बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस आदि देशों में भी की जाती है. लेकिन पान की खेती में भी कीट और बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है.

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पान की खेती के लिए खतरनाक है ये रोग पान की खेती के लिए खतरनाक है ये रोग

भारत में पान की खेती नकदी फसल के रूप में की जाती है. पान की खेती व्यावसायिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है. पान एक बारहमासी लता है. हमारे देश में इसका उपयोग पूजा के साथ-साथ भोजन और औषधि में भी किया जाता है. भारत में पान की खेती लगभग 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. इसके अलावा इसकी खेती बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस आदि देशों में भी की जाती है. लेकिन पान की खेती में भी कीट और बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है. जिसके कारण किसानों को परेशानी और चिंता का सामना करना पड़ता रहता है. पान की खेती में नमी बहुत महत्वपूर्ण है.

लेकिन नमी कई बीमारियों को भी बढ़ावा देती है. जिससे फसल खराब होने का डर बना रहता है. वहीं पान के लिए बीघा रोग बेहद खतरनाक रोग है. यह कुछ ही दिनों में पान की अच्छी फसल को बर्बाद कर देता है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें उपचार और रोकथाम.

क्या है इस रोग की पहचान

सबसे पहले, रोगग्रस्त भाग पर छोटे, काले गोल क्षतिग्रस्त धब्बे बन जाते हैं. जो आर्द्र मौसम में बहुत तेजी से बढ़ते हैं. कभी-कभी यह तने को पूरी तरह से घेर लेता है. जिससे प्रभावित लताएं गांठों से टूट जाती हैं या सूख जाती हैं. बेल की गांठें काली हो जाती हैं और पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे धंसे हुए आकार बन जाते हैं.

Bigha disease
Bigha disease

कैसे करें रोकथाम

रोग के लक्षण दिखते ही डाइथेनियम-45 (0.3%) या बाविस्टिन (0.1%) का छिड़काव करें. यह इस रोग में काफी उपयोगी पाया गया है. दो से तीन छिड़काव से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है.

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ऐसे करें पान की रोपाई

पान की कलमों को रोपाई के समय और प्रबंधन के समय भी उपचार की आवश्यकता होती है. इसके लिए बुआई से पहले मिट्टी को उपचारित करने के लिए 500 पीपीएम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के साथ 50 प्रतिशत बोर्डा मिश्रण का उपयोग किया जाता है. इसके बाद बुआई से पहले भी बेलों को फंगस और बैक्टीरिया से बचाने के लिए ऊपर दिए गए मिश्रण का प्रयोग किया जाता है.

सिंचाई और जल निकास व्यवस्था

उत्तर भारत में प्रतिदिन चार बार (गर्मियों में) और सर्दियों में दो से तीन बार सिंचाई की आवश्यकता होती है. पान की खेती के लिए उचित जल निकासी व्यवस्था भी आवश्यक है. अधिक नमी से पान की जड़ें सड़ जाती हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है. अतः पान की खेती के लिए ढलान वाली जगह सर्वोत्तम होती है.