उत्तर प्रदेश देश में सबसे ज्यादा आम का उत्पादन करता है. वहीं इस साल आम को मानो किसी की नजर लग गई हो. हालात यह है कि मार्च महीने से ही आम के ऊपर कभी मौसम की मार तो कभी बीमारियों की मार पड़ रही है. अभी तक मौसम की मार के चलते आम की फसल को 50 फ़ीसदी से ज्यादा का नुकसान हो चुका है तो वहीं आम की फसल जब तैयार हुई तो कीटों की वजह से फसल को नुकसान होने लगा है. इन दिनों मलिहाबाद के फल पट्टी में सेमी-लूपर कीट(semi-looper) के चलते आम के हुस्न पर दाग लग रहे हैं जिसके चलते फल की रंगत खराब होने लगी है. पहले आम की बागवानी करने वाले किसानों को केवल मौसम की मार ही झेलनी पड़ती थी लेकिन अब मलिहाबाद में कीड़े इस कदर हावी हो गए हैं कि किसानों ने आम कि बागों की धुलाई करने को विवश है. जून के महीने में आम की तैयार फसल पर सेमी-लूपर के चलते ऐसे दाग लग रहे हैं जिसके चलते अब मंडी में इन नामों को खरीदार भी नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने कुछ ऐसे तरीके बताए हैं जिनको अपनाकर किसान अपनी फसल को बचा सकते हैं.
सेमी-लूपर या ब्लैक इंचवर्म का प्रकोप मलिहाबाद के फल पट्टी में जून के महीने में देखने को मिल रहा है. लखनऊ जिले और आसपास के क्षेत्र में आम की फसलों को इस कीट से गंभीर नुकसान हो रहा है. किसानों को फलों पर इस कीट की वजह से क्षति का अंदाजा नहीं था. इसी चलते बहुत से किसानों ने इसका प्रबंधन भी नहीं किया जिसके चलते जब फसल तैयार हुई तो उनके फलों पर ऐसे दाग थे जिसको देखकर खरीदारों ने इन आम को खरीदने से मना कर दिया. इस कीट की उपस्थिति लगभग 10 साल पहले लखनऊ के क्षेत्र में देखने को मिली थी लेकिन अब फिर इस कीट के चलते किसानों का भारी नुकसान पहुंचा है. अवध आम उत्पादक संघ के महासचिव उपेंद्र सिंह ने बताया कि इस कीट की वजह से आम की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है. किसानों को इस साल कीटों के संक्रमण से बचाव के लिए कई बार बाग में कीटनाशक का स्प्रे करना पड़ा है जिससे उनका खर्च काफी बढ़ गया है. इस साल आम के दाग की वजह से किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा है जिससे फसल की लागत भी निकलना मुश्किल हो रहा है.
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आम की फसल में फल बेधक कीट का संक्रमण इन दिनों जोरों पर है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की कीट रोग विशेषज्ञ डॉ.प्रभात शुक्ला ने किसान तक को बताया ऐसे में इन सूडियों की उपस्थिति को दो या दो से अधिक फलों को आपस में चिपकने से संक्रमण फैलता है. वही सूडियों द्वारा उत्पन्न फफूद से फलों में सड़न पैदा होने लगती है जिसके चलते फलों का गूदा खराब हो जाता है. ऐसे फलों को एकत्र कर मिट्टी में दफन या नष्ट कर देना चाहिए. प्रभावित बागों में डाईमेथोएट 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करने से इस बीमारी की रोकथाम होती है. वही सेमिलूपर से बचाव के लिए लैमडासायहलोथ्रीन की 5 ई.सी के 1 मिली को प्रति लीटर पानी में छिड़काव करने की सलाह भी दी गई है.
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