आलू हमारे भोजन का अभिन्न हिस्सा है. इसके बिना खान-पान अधूरा है. यह कई रूपों में हमारे भोजन में शामिल है, इसलिए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. ऐसे में किसान भी इसकी खेती पर अधिक जोर देते हैं क्योंकि उनकी उपज कभी बेकार नहीं जाती. उपज हर हाल में बिक जाती है. अब तो कीमत भी अच्छी मिल रही है क्योंकि कुछ राज्यों में इसकी कमी बताई जाती है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए किसान यदि आलू से अधिक कमाई चाहते हैं तो उन्हें बायोफोर्टिफाइड आलू की कुफरी जामुनिया किस्म की खेती करनी चाहिए.
कुफरी जामुनिया एक मध्यम और अधिक उपज देने वाली नई उन्नत प्रजाति है. यह बुवाई से लेकर कटाई तक लगभग 90 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 320-350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति बायोफोर्टिफाइड है. ICAR की पत्रिका खेती में दी गई जानकारी के मुताबिक, कुफरी जामुनिया किस्म में पोषण की मात्रा ज्यादा है. विशेष रूप से कुफरी जामुनिया में एंथोसायनिन अधिक मात्रा में होता है, जो इसके जीवंत बैंगनी गूदे में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट हैं.
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खेत की जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 15 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए. रासायनिक खादों का इस्तेमाल मिट्टी की उर्वराशक्ति, फसल चक्र और प्रजाति पर निर्भर होता है. आलू की बेहतर फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 150 से 180 किग्रा नाइट्रोजन, 60-80 किलो फॉस्फोरस और 80-100 किलो पोटाश का प्रयोग करें.
फॉस्फोरस और और पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डालनी होती है. बची हुई नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में डाला जाता है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की बुवाई के लिए लगभग 25-30 क्विंटल बीज की जरूरत होती है. खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोदकर उसमें बीज डालें और उसके ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें. पंक्तियों की दूरी 50-60 सेमी होनी चाहिए जबकि पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सेमी होनी चाहिए.
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आलू को काली रूसी यानी कि ब्लैक स्कर्फ और अन्य कंदजनित और मृदाजनित रोगों से बचाना जरूरी होता है. इसके लिए किसानों को 3 प्रतिशत बोरिक अम्ल के घोल में 20-30 मिनटों तक डुबोकर उपचारित करना चाहिए. बुवाई से पहले आलुओं पर इसका छिड़काव करें. इसके बाद छायादार स्थान पर सुखाकर बुवाई करें. एक बार बनाए घोल को 20 बार तक प्रयोग कर सकते हैं.
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