पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में बासमती धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन किसानों के लिए बकानी रोग (झंडा रोग) एक बड़ी समस्या बन गया है. यह रोग धान की पैदावार को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. एपिडा के बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (BEDF), मोदीपुरम, मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने बताया है कि बासमती धान की नर्सरी में भी बकानी रोग के लक्षण दिख रहे हैं. उन्होंने किसानों को सतर्क रहने और सही पहचान करने की सलाह दी.
धान की नर्सरी में इस रोग के कारण में पौधे शुरुआत से ही पतले और असामान्य रूप से लंबे हो जाते हैं, जिससे उनकी सामान्य वृद्धि रुक जाती है. धीरे-धीरे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और अंततः पूरा पौधा सूख जाता है. स्वस्थ पौधों की तुलना में रोगग्रस्त पौधे ज़्यादा पतले और लंबे दिखते हैं. कुछ मामलों में, बिना लंबाई बढ़े ही तना और पत्तियां गलने लगती हैं. ऐसे संक्रमित पौधे ज़्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाते और जल्द ही सूख जाते हैं.
रोपाई के बाद, ये पौधे पीले, पतले और लंबे दिखते हैं, साथ ही उनमें कल्ले (टिल्लर) भी कम निकलते हैं. अगर रोगग्रस्त पौधे किसी तरह बच भी जाते हैं, तो उनमें बालियां और दाने नहीं बनते, जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ता है. नम वातावरण में, संक्रमित पौधों के तनों के निचले भाग पर सफेद से गुलाबी रंग का फंगस दिखाई देता है, जो धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ता है. इस रोग की एक और पहचान है कि संक्रमित पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं और उनमें दुर्गंध आती है.
रितेश शर्मा के अनुसार, यह रोग मिट्टी या रोगग्रस्त बीज के कारण फैलता है और धीरे-धीरे पूरी धान की फसल को अपनी चपेट में ले लेता है. पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 6, पूसा बासमती 1718, पूसा 1401 और पूसा बासमती-1 जैसी कई बासमती किस्मों में इस रोग का असर ज़्यादा देखा जा रहा है. अगर बासमती धान की नर्सरी में बकानी रोग के लक्षण दिख रहे हैं, डॉ. रितेश शर्मा ने किसानों को बकानी रोग को लेकर चिंता न करने की सलाह दी है और इसके बचाव के लिए बताया. उन्होंने कहा कि 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
अगर आप बासमती धान की रोपाई करने जा रहे हैं, तो रोपाई से पहले (पैडलिंग से पहले) 2 किलो ट्राइकोडर्मा को गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर पूरे खेत में बिखेर दें. इससे रोपाई वाले खेत में बकानी रोग की समस्या आने की संभावना कम हो जाती है.
उन्होंने कुछ अहम उपाय बताए जैसे स्वस्थ और स्वच्छ बीजों का प्रयोग करें क्योकि स्वस्थ बीज से उत्पादन भी अच्छा होता है. बुवाई से पहले बीजों को 12 घंटे के लिए सामान्य पानी में भिगो दें. पानी में भिगोने के बाद, 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी के घोल में बीजों को 6 घंटे के लिए भिगो दें. इसके बाद नर्सरी के लिए बीज की बुवाई करें. नर्सरी या खेत में अगर रोग के लक्षण दिखाई दें, तो प्रभावित पौधों को तुरंत उखाड़कर खेत से बाहर फेंक दें.
रोगग्रस्त पौधों से रोपाई न करें. वैज्ञानिकों के अनुसार, बकानी से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा घोल में पौधों को कम से कम एक घंटे डुबाकर रखें. खेत में यूरिया या नाइट्रोजन उर्वरक का अत्यधिक इस्तेमाल करने से बचें. इससे झंडा रोग से काफी हद तक राहत मिलेगी. प्री-मॉनसून में कम बारिश होने से यह रोग ज़्यादा फैलता है, इसलिए किसान इस रोग के प्रति जागरूक रहें. धान की नर्सरी में हमेशा पानी भरकर ही पौधों को उखाड़ें. जिन खेतों में इस बीमारी की शुरुआत हो, वहां पौधों को तुरंत उखाड़ दें. साथ ही, 2 किलो ट्राइकोडर्मा प्रति एकड़ गोबर की खाद में मिलाकर डालें. स्यूडोमोनास का भी स्प्रेकर सकते हैं. इन उपायों को अपनाकर किसान बासमती धान को बकानी रोग से बचा सकते हैं और बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today