खेती के लिए सिंचाई जरूरी होती है और सिंचाई के लिए पानी भी जरूरी है. यूपी के आगरा जिले में 12 ब्लॉक ऐसे हैं जहां पर पानी की काफी कमी हो गई है. जिले के ये ब्लॉक डार्क जोन में चले गए हैं, जिसकी वजह से किसान चाह कर भी कई फसलों की खेती नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में जिले के आरबीएस कॉलेज के एग्रोनॉमी विभाग के शोध के बाद किसानों के लिए सफलता का मॉडल विकसित किया गया है. घरेलू सीवेज के पानी को खेती में प्रयोग करके अच्छा उत्पादन प्राप्त करने में सफलता मिली है. किसानों ने पहले सब्जी की खेती की लेकिन भारी धातुओं के पाए जाने के चलते उन्होंने फूलों की खेती को बढ़ावा दिया. फूलों की खेती से न सिर्फ कम लागत में अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि जिले के कई किसान इस खेती से अपनी आमदनी बढ़ाने में कामयाब हुए हैं.
आगरा जिले के आरबीएस कॉलेज के एग्रोनॉमिस्ट डॉ. एस. के चौहान के द्वारा 9 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए फूलों की खेती को संभव कर दिखाया है. जिले में 40 किसानों 150 हेक्टेयर जमीन पर सीवेज के पानी से गुलदाउदी और गेंदे के फूल की खेती कर रहे हैं. प्रति हेक्टेयर किसानों को 3 से 3:50 लाख रुपए का मुनाफा भी हो रहा है. आरबीएस कॉलेज के एग्रोनॉमिस्ट विभाग के शोध के बाद कई किसानों की किस्मत बदली है. वर्ष 2019 में यह प्रोजेक्ट आरबीएस कॉलेज को प्राप्त हुआ. भारतीय लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा कॉलेज के इस शोध के परिणाम को देखने के बाद किसानों को गुलदाउदी और गेंदे की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. आगरा में कुल 9 सीवेज ट्रीटमेंट प्लान है. बड़ी संख्या में किसान सीवेज के पानी से सब्जियों और फूलों की खेती कर रहे हैं. ताज़ा शोध में पाया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मानक से कम मात्रा में भारी धातु है. नहर के सीवेज के पानी में मिली है जिससे फूलों की खेती संभव हो सकती है.
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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और अयोध्या मंदिर बनने के बाद फूलों की मांग काफी बढ़ गई है. ऐसे में किसानों के द्वारा फूलों की खेती को लेकर प्रयास भी किया जा रहे हैं. आगरा जिले में खेती की राह में सबसे बड़ा रोड पानी की कमी है लेकिन आरबीएस कॉलेज के शोध के परिणाम स्वरुप अब किसान सीवेज के बेकार पानी का उपयोग करके फूलों की खेती कर रहे हैं. जिले में 40 से 50 किसानों के द्वारा डेढ़ सौ हेक्टेयर पर फूलों की खेती हो रही है. इस खेती से किसानों को प्रति हेक्टेयर तीन से साढे तीन लाख रुपए का फायदा हो रहा है. डॉ एस.के चौहान ने बताया कि जुलाई 2024 से रजनीगंधा फूल की खेती पर शोध किया जाएगा. सीवेज के पानी से खेती की जाएगी सफलता मिलने पर किसानों को प्रेरित किया जाएगा.
सीवेज के पानी से उगाई जा रही सब्जियां को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सवाल किए गए हैं. ऐसे में किसान फूलों की खेती के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं. डॉ. एस.के चौहान ने बताया कि फूलों की खेती को सीवेज के पानी करने से कम उर्वरक की जरूरत होती है. एक हेक्टेयर में फूलों की खेती करने में यूरिया की जरूरत दूसरी फसलों के मुकाबले आधी से भी कम है. जिले के धांधूपुरा एसटीपी की पानी से किसान बेला, गेंदा, गुलाब की खेती कर रहे हैं.
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