scorecardresearch
बनारसी पान के बाद अब मऊ के बैंगन, बुंदेलखंड की अरहर को भी म‍िलेगा जीआई टैग!

बनारसी पान के बाद अब मऊ के बैंगन, बुंदेलखंड की अरहर को भी म‍िलेगा जीआई टैग!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकप्रिय स्थानीय वस्तुओं को बाजार से जोड़़कर उन्हें नई प‍हचान देने के लिए 'लोकल फॉर वोकल' का मंत्र दिया था. इस मंत्र को यूपी की योगी सरकार ने ओडीओपी योजना के माध्यम से आगे बढ़ाया है. अब योगी सरकार ने स्थानीय स्तर पर मशहूर वस्तुओं की जीआई टैगिंग कर इनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्राडिंग करने का फैसला किया है.

advertisement
मऊ के बैंगन, बुंदेलखंड की अरहर को भी म‍िलेगा जीआई टैग मऊ के बैंगन, बुंदेलखंड की अरहर को भी म‍िलेगा जीआई टैग

उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना (ओडीओपी) के बलबूते तमाम जिलों के स्थानीय मशहूर उत्पादों को वैश्विक बाजार में भरपूर पहचान दिलाई है. इसी तर्ज पर अब प्रदेश की योगी सरकार ने स्थानीय मशहूर एग्री प्रोडक्ट्स को भी देश दुनिया में पहचान दिलाने की पहल की है. इसी कड़ी में बनारसी पान की तर्ज पर यूपी सरकार ने मऊ के बैंगन, बुंदेलखंड की अरहर दाल और बल‍िया के बोरो धान समेत कई एग्री उत्पादों को ग्लोबल पहचान यानी जीआई टैगिंग' कराने का फैसला किया है.

असल में यूपी के इलाकों में उपजने वाली कई फसलों और उनके उत्पादों का जादू लोगों की जुबान पर चढ़ गया है, स्थानीय स्तर पर पहचान बनाने वाले इन उत्पादों को भी जीआई टैगिंग की मदद से विश्व फलक पर पहुंचाने की कवायद सरकार ने की है. यूपी सरकार का एग्रो मार्केटिंग और कृष‍ि विदेश व्यापार विभाग इस काम को अंजाम दे रहा है.इस योजना के पहले चरण में इलाहाबादी अमरूद और बनारसी पान सहित छह उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है.    

  ये भी पढ़ें- यूपी: ऐसे करें गन्ने की बुआई, खाद और सिंचाई में इन बातों का रखना होगा ध्यान

यह है सरकार की योजना

मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश का ऐसा कोई जिला नहीं है, जिसका कोई स्थानीय उत्पाद उस इलाके की पहचान न बना हो. लंबे समय से ये उत्पाद स्थानीय स्तर पर तो खूब लाेकप्रिय हुए, लेकिन, इनको बाजार का पर्याप्त संरक्षण नहीं मिल पाने के कारण सूबे के बाहर देश विदेश में इन्हें पहचान नहीं मिल सकी. योगी सरकार ओडीओपी की तर्ज पर इन उत्पादों की वैश्विक स्तर पर मार्केटिंग और ब्रांडिंग करने के लिए इन्हें जीआई टैग से लैस करेगी.

गौरतलब है कि योगी सरकार ने 2018 में सहारनपुर की वुड क्राफ्ट, मुरादाबाद के बर्तन और अलीगढ़ के ताले सहित अन्य उत्पादों की ब्रांडिंग करने के लिए ओडीओपी योजना शुरू की थी. इस बार सरकार ने जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) दिलवाकर इन उत्पादों की पहचान को और मुकम्मल बनाने का सिलसिला शुरू किया है.

बन रही जीआई टैग‍िंंग पाने वाले उत्पादों की सूची 

मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर शासन ने सभी जिलों से स्थानीय स्तर पर अपनी खूबियों के कारण लोकप्रिय फसलों या इनसे बने उत्पादों की सूची मांगी है. ऐसे 100 से अधिक उत्पादों की सूची बना भी ली गई है. अब इन्हें जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो रही है. जीआई टैग से लैस होने वाले उत्पादों का चयन सरकार द्वारा गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति कर रही है.

इस बाबत मानक तय किए गए हैं. जो उत्पाद इन मानकों पर खरे उतरते हैं, उन्हें समिति जीआई टैगिंग के लिए मंजूरी प्रदान करती है. इस समिति ने अब तक 21 उत्पादों को जीआई टैग दिलाने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है. समिति द्वारा सूची में बचे अन्य उत्पादों पर भी जल्द फैसला किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- मधुमक्खी काटने से आया आइडिया, आज शहद से 10 लाख की कमाई कर रहा ये किसान

यूपी के इन उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

भारत के अब तक 420 उत्पादों को जीआई टैग से पंजीकृत हो चुके हैं. जीआई टैग पाने वाले इन उत्पादों में 128 कृष‍ि उपज से सीधे तौर पर जुड़े हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के छह कृष‍ि उत्पादों सहित 36 उत्पाद शामिल हैं. प्रदेश के जीआई टैग प्राप्त कृष‍ि उत्पादों में इलाहाबादी अमरूद, बनारसी पान, मलीहाबादी दशहरी आम, महोबा का देसावरी पान पत्ता, गोरखपुर, बस्ती एवं देवीपाटन मंडल का काला नमक धान, बागपत का रतौल आम और पश्चि‍मी यूपी का बासमती चावल शामिल है. 

जीआई टैगिंग के फायदे

किसी उत्पाद के उपजने के स्थान की भौगोलिक स्थिति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकृत रूप से साइबर स्पेस में जोड़ने को 'जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैगिंग' (जीआई टैगिंग) कहते हैं. जियो टैगिंग किसी उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. इससे किसी स्थान विशेष पर उपजने वाली या बनने वाली वस्तु को अनधिकृत तौर पर किसी अन्य स्थान पर बना कर विश्व बाजार में फैलाने से रोका जा सकता है. मसलन, बुंदेलखंड की विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों में पैदा होने वाली देसी अरहर की दाल को पूर्वांचल या बंगाल में पैदा करके बुंदेलखंड की दाल बता कर बेचना अनधिकृत माना जाएगा. इससे किसी भौगोलिक क्षेत्र में बनाई जाने वाली वस्तुओं के उत्पादन की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद मिलती है. साथ ही ऐसी वस्तुओं को कानूनी संरक्षण देकर इनकी विशिष्ट पहचान को भी बरकरार रखा जा सकता है.

ये भी पढ़ें-

मोटे अनाजों पर बड़ी कंपनियों की नजर, अब किसानों को मिलेगा बेहतर मुनाफा
-Video: यहां देखें कैसे बनाया जाता है गुड़, मिलेगी सारी जानकारी