खेती को फायदे का सौदा बनाने और उत्पादन बढ़ाने के साथ ही किसानों की लागत घटाने के लिए केंद्र सरकार मॉडर्न कृषि तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दे ही है. इन तकनीकों में एग्रीकल्चर ड्रोन प्रमुख रूप से उभरा है. ड्रोन के इस्तेमाल से खेती की लागत और समय में बचत समेत कई फायदे किसानों को मिल रहे हैं. केंद्र सरकार इसको लेकर ड्रोन दीदी योजना भी चला रही है. जबकि, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) विश्व बैंक के साथ मिलकर एग्रीकल्चर ड्रोन प्रोजेक्ट चला रहा है, जिसके तहत 5 लाख से ज्यादा छात्रों को ड्रोन पायलट बनाया जा रहा है.
विश्व बैंक ऑर्गनाइजेशन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 77 कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को विश्व मानकों के अनुरूप ढाला है. 5,14,000 से अधिक छात्रों को छात्रों को मॉडर्न लैब्स में ट्रेनिंग दी जा रही है. जहां, उन्हें GPS, ड्रोन, रिमोट सेंसिंग तकनीक, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करना सिखाया जा रहा है. ताकि, खेती के तरीकों को विकसित करते हुए किसानों के लिए अधिक फायदेमंद बाया जा सके. विश्व बैंक और आईसीएआर के इस प्रोजेक्ट ने 90 से अधिक उद्यमियों की मदद की है, जबकि 500 से अधिक रोजगार पैदा किए हैं. इससे सालाना औसतन 92 लाख रुपये का कारोबार किया जा रहा है.
विश्व बैंक ऑर्गनाइजेशन के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के प्रोजेक्ट का हिस्सा बनीं तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर की B.Sc. (ऑनर्स) कृषि की छात्रा गायत्री टी ने छात्र से ड्रोन पायलट तक का सफर तय किया है. छात्रा गायत्री ने कहा कि मैंने कृषि के लिए ड्रोन चलाना सीखा, पौधों की सुरक्षा के लिए रसायन और पोषक तत्व इस्तेमाल किए. इस ट्रेनिंग ने बढ़ते ड्रोन उद्योग में मेरे लिए नए करियर के अवसर खोले हैं. उन्होंने कहा कि अब वह प्रशिक्षक बनने की तैयारी कर रही हैं और उनका अपना ड्रोन व्यवसाय शुरू करने का सपना है.
From Agriculture student to Drone Pilot! 🌾✈️
— World Bank India (@WorldBankIndia) October 7, 2024
Meet Gayathri T., a https://t.co/PUrmTw64rq. (Hons) Agriculture student from TNAU, Coimbatore, whose career took off thanks to a drone pilot training program supported by the @WorldBank and @ICARIndia through #NAHEP.
"I learned to… pic.twitter.com/7mUvHAFjH7
ड्रोन फर्म एग्रीविंग्स के सीईओ विदुर वर्मा ने बताया कि ड्रोन के इस्तेमाल से खेती की लागत में तो कमी आती ही है, किसान का समय भी बचता है. इसके अलावा बुवाई या छिड़काव में देरी की स्थिति में ड्रोन के इस्तेमाल से फसल के उत्पादन को बनाए रखने में भी मदद मिलती है. उन्होंने कहा कि ड्रोन तकनीक के जरिए दवा या कीटनाशक छिड़काव करने में प्रति एकड़ करीब 8 घंटे का समय बच जाता है. जबकि, छिड़काव लागत 2000 रुपये तक प्रति एकड़ बचत की जा सकती है.
1 एकड़ खेत में ड्रोन से छिड़काव करने पर लागत आमतौर पर 500 रुपये से लेकर 1000 रुपये प्रति एकड़ तक होती है. हालांकि, सर्विस प्रोवाइडर और क्षेत्र पर भी निर्भर करता है. जबकि, मैनुअल या पारंपरिक तरीके से छिड़काव में मजदूरी लागत प्रति एकड़ 1500 रुपये से 3000 रुपये तक आती है. यह पंप या नॉकबैग स्प्रेयर के इस्तेमाल और श्रमिक दरों पर भी निर्भर करता है. इस तरह से देखें तो ड्रोन से छिड़काव करने पर 1000 रुपये से 2000 रुपये तक की बचत होती है.
अगर समय बचत को देखें तो एक एकड़ खेत में ड्रोन से छिड़काव करने में 8 से 10 मिनट का समय लगता है. वहीं, मैनुअल या पारंपरिक तरीके से छिड़काव में लगभग 5 से 8 घंटे तक का समय लगता है. इस तरह से देखें तो समय में भी बचत होती है. ऐसे उन किसानों को ज्यादा फायदा मिलता है जिनकी देरी से बुवाई होती है या फिर छिड़काव में देरी हो चुकी होती है. इससे उत्पादन पर फर्क नहीं पड़ता है.
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