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क्या होती है सिंचाई की बौछारी विधि जिसमें पानी का नहीं होता नुकसान, फसलें भी तेजी से बढ़ती हैं

क्या होती है सिंचाई की बौछारी विधि जिसमें पानी का नहीं होता नुकसान, फसलें भी तेजी से बढ़ती हैं

जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों को कई तरह की सलाह दी जाती है. उसमें से एक है सिंचाई की बौछारी विधि यानी ड्रिप स्प्रिंकलर की विधि. इस विधि से सिंचाई करने पर किसानों की लागत कम होती है और साथ ही अच्छा उत्पादन भी मिलता है.

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क्या है बौछारी विधि? क्या है बौछारी विधि?

पूरी दुनियां में जल संकट एक गंभीर समस्या बनाता जा रहा है. भारत के भी कई इलाके आज जल संकट से जूझ रहे हैं. इस समस्या के समाधान के लिए कई अभियान भी चलाए जा रहे हैं. लोगों को वर्षा जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा रहा है. पानी की सबसे ज्यादा जरूरत खेती में है, क्योंकि अगर पानी नहीं होगा तो फसल का उत्पादन नहीं होगा और लोग खायेंगे क्या? प्राचीन काल से ही कृषि में पारंपरिक तरीकों से सिंचाई की जाती रही है, जिसमें पानी अनावश्यक रूप से बर्बाद होता है. इसलिए अब जरूरी है कि हम खेती व्यवस्था में नयी तकनीकों का इस्तेमाल कर जल संकट कि समस्या को कम करें. इस कड़ी में सिंचाई की बौछारी विधि बेहद कारगर और सफल है. 

क्या है बौछारी सिंचाई

जल संरक्षण के साथ-साथ फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों को कई तरह की सलाह दी जाती है. उसमें से एक है सिंचाई की बौछारी विधि यानी ड्रिप स्प्रिंकलर की विधि. इस विधि से सिंचाई करने पर किसानों की लागत कम होती है और साथ ही अच्छा उत्पादन भी मिलता है. बौछारी विधि को 'टपक सिंचाई' या 'बूंद-बूंद सिंचाई' भी कहते हैं. बौछारी सिंचाई पद्धति, सिंचाई की आधुनिकतम पद्धति है. इस पद्धति में पानी की अत्यधिक बचत होती है. इस पद्धति के अन्तर्गत पानी को हवा में छोड़ा जाता है और फिर बारिश की बूंदों की तरह पानी पौधों पर आकार गिरते हैं. इस पद्धति में पानी की बर्बादी नहीं होती है. 

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क्या हैं बौछारी सिंचाई के लाभ

  • पैदावार में 150 प्रतिशत तक वृद्धि
  • बाढ़ सिंचाई की तुलना में 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है. इस प्रकार बचाए गए पानी से अधिक भूमि की सिंचाई की जा सकती है.
  • फसल लगातार, स्वस्थ रूप से बढ़ती है और जल्दी पक जाती है.
  • उर्वरक उपयोग की क्षमता 30 प्रतिशत बढ़ जाती है.
  • उर्वरक, पानी की जरूरत और श्रम की लागत कम हो जाती है.
  • बौछारी सिंचाई प्रणाली के माध्यम से उर्वरक और रासायनिक उपचार किया जा सकता है.
  • बंजर क्षेत्र, नमकीन, रेतीली तथा पहाड़ी भूमियों को भी उपजाऊ खेती के अंतर्गत लाया जा सकता है.