कभी करती थीं दिहाड़ी मजदूरी, अब ड्रोन से खेतों का छिड़काव कर अच्छी कमाई कर रहीं ये महिलाएं, 80 प्रतिशत तक कम हुई लागत... जानिए कैसे मुमकिन हुआ यह बड़ा बदलाव

कभी करती थीं दिहाड़ी मजदूरी, अब ड्रोन से खेतों का छिड़काव कर अच्छी कमाई कर रहीं ये महिलाएं, 80 प्रतिशत तक कम हुई लागत... जानिए कैसे मुमकिन हुआ यह बड़ा बदलाव

तेलंगाना के संगरेड्डी की ये महिलाएं एक समय पर दिहाड़ी मज़दूर थीं लेकिन ड्रोन उड़ाना सीखकर इन्होंने अपनी जिन्दगी बदल ली है. अब ये न सिर्फ ड्रोन्स की मदद से स्थानीय किसानों का हाथ बंटा रही हैं, बल्कि अपने क्षेत्र में कृषि विकास की एक नई राह भी तैयार कर रही हैं.

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तेलंगाना की इन महिला मजदूरों ने ड्रोन उड़ाना सीखकर कैसे बदली अपनी किस्मत? ड्रोन तकनीक की मदद से आसान होगी खेती.

अगर आपसे ड्रोन कहा जाए कि ड्रोन उड़ाते हुए किसी इंसान की कल्पना कीजिए तो शायद आपके मन में पहली तस्वीर हाथ में रिमोट कंट्रोल लिए किसी युवा की बनेगी. लेकिन तेलंगाना के संगरेड्डी जिले की ये किसान महिलाएं आपकी कल्पना की दीवारों को गिराकर पारंपरिक खेती को आधुनिक तकनीक से जोड़ रही हैं. 

ये महिलाएं एक समय पर दिहाड़ी मज़दूर थीं लेकिन ड्रोन उड़ाना सीखकर इन्होंने अपनी जिन्दगी बदल ली है. अब ये न सिर्फ ड्रोन्स की मदद से स्थानीय किसानों का हाथ बंटा रही हैं, बल्कि अपने क्षेत्र में कृषि विकास की एक नई राह भी तैयार कर रही हैं.

कैसे शुरू हुआ यह सफर?
संगरेड्डी की ये महिलाएं दरअसल एक सेल्फ हेल्प ग्रुप (Self Help Group) का हिस्सा हैं. यानी ये नई चीजें सीखने और लागू करने में एक-दूसरे की मदद करती हैं. इस सेल्फ हेल्प ग्रुप की 53 महिलाओं ने तेलंगाना के जोगीपेट शहर में नौ दिन तक ट्रेनिंग ली. यहां उन्हें ड्रोन उड़ाने से लेकर फर्टिलाइजर और कीटनाशक के इस्तेमाल से जुड़ी बारीकियों तक सब कुछ सिखाया गया. 

बढ़ती लागतों और घटते मजदूरों के कारण कई किसानों ने इन कामों के लिए ड्रोन टेक्नोलॉजी का रुख किया है.द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि ये महिलाएं पांच घंटे में 50 एकड़ तक की ज़मीन पर काम कर सकती हैं.

क्या है महिलाओं की प्रतिक्रिया?
द न्यू इंडियन एक्ससप्रेस की रिपोर्ट इसोजिपेट गांव की पुल्कल मंडल के हवाले से कहती है कि पहले ये महिलाएं दूसरों पर काम के लिए निर्भर रहती थीं लेकिन इस स्किल की बदौलत वह अब अपना खुद का ड्रोन खरीदने के बारे में सोच सकती हैं. उनके पास तीन एकड़ जमीन है और वह सात एकड़ जमीन पट्टे पर भी लेती हैं. 

वह कहती हैं कि  अगर सरकार ऐसे सेल्फ हेल्प समूहों को ड्रोन हासिल करने में मदद करती है तो हर एकड़ की लागत 3000 रुपए से घटकर 500 रुपए हो जाएगी. यह उनके जैसे छोटे किसानों के लिए बहुत मददगार होगा. इसी तरह ड्रोन ट्रेनिंग लेने वाली सपना कहती हैं कि एक समय पर यह काम सिर्फ पुरुषों का था लेकिन अपने सेल्फ हेल्प ग्रुप की मदद से वह भी आसमान छू रही हैं.

"ये तो बस शुरुआत है"
एक्सप्रेस की रिपोर्ट इस ट्रेनिंग को मुमकिन बनाने वाली संगरेड्डी की कलेक्टर वेलुरू क्रांति के हवाले से कहती है कि यह अभी सिर्फ शुरुआत है. और आने वाले समय में महिलाओं को सरकार की ओर से ड्रोन भी मिलेंगे. 

उन्होंने कहा, “हमने इन महिलाओं को भविष्य के लिए तैयार कौशल से सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षित किया. केंद्र सरकार की ‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना के तहत, उन्हें 80% तक की सब्सिडी के साथ ड्रोन और ड्रोन कैमरे मिलेंगे. महिलाओं को  10 लाख रुपये के ड्रोन के लिए आठ लाख रुपये का कवर मिल सकता है. बाकी राशि लोन या व्यक्तिगत योगदान के ज़रिए ली जा सकती है.” 

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