गेहूं के बाद गन्ना लगाने से 50 परसेंट घट सकती है पैदावार, बचाव में ये तकनीक अपनाएं किसान

गेहूं के बाद गन्ना लगाने से 50 परसेंट घट सकती है पैदावार, बचाव में ये तकनीक अपनाएं किसान

फर्ब विधि के जरिये रेज्ड बेड पर गन्ने की बुवाई करें तो अच्छी पैदावार मिलेगी. इसमें क्यारी पर गन्ने की खेती की जाती है. इस विधि में गन्ने के साथ गेहूं की बुवाई होती है. इसमें बेड या क्यारी लगभग 50 सेमी चौड़ी होती है. साथ ही गेहूं की तीन पंक्तियों की बुवाई 17 सेमी की दूरी पर बुवाई के उपयुक्त समय नवंबर या दिसंबर के पहले सप्ताह में की जाती है.

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गेहूं के बाद गन्ना लगाने से 50 परसेंट घट सकती है पैदावार, बचाव में ये तकनीक अपनाएं किसानगन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए क्या करें किसान?

खेत में गेहूं के बाद गन्ना लगाने से उसकी पैदावार घटने की आशंका बनी रहती है. किसानों की शिकायत रहती है कि गन्ने की पैदावार घट जाती है. पश्चिमी यूपी की बात करें तो यहां के अधिकतर किसान गन्ने की बुवाई गेहूं की फसल लेने के बाद करते हैं. गेहूं के बाद लगाए गए गन्ने से लभग 35 से 50 प्रतिशत की कमी हो जाती है. ऐसे में किसानों को हमेशा चिंता रहती है कि वे इस पैदावार को बढ़ाने के लिए क्या करें.

इसे लेकर वैज्ञानिकों ने कई तकनीक बताई है. इसी में एक है फर्ब विधि के जरिये रेज्ड बेड पर गन्ने की बुवाई. इसमें क्यारी पर गन्ने की खेती की जाती है. इस विधि में गन्ने के साथ गेहूं की बुवाई होती है. इसमें बेड या क्यारी लगभग 50 सेमी चौड़ी होती है. साथ ही गेहूं की तीन पंक्तियों की बुवाई 17 सेमी की दूरी पर बुवाई के उपयुक्त समय नवंबर या दिसंबर के पहले सप्ताह में की जाती है.

नालियों में करें गन्ने की बुवाई

इस तकनीक में रेज्ड बेड, नालियां बनाने के लिए ट्रैक्टरचालित रेज्ड बेड मेकर कम फर्टी सीड ड्रिल का प्रयोग किया जाता है. गन्ने की बुवाई 80 सेमी की दूरी पर स्थित नालियों में गेहूं बोने के तुरंत बाद दी जाने वाली हल्की सिंचाई के साथ कर देते हैं. इसमें गन्ने के टुकड़ों को सिंचित नालियों में डालते हुए पैर से दबाते हुए आगे चलते हैं. दिसंबर में बोई जाने वाली गेहूं की दशा में गन्ने की बुवाई गेहूं की खड़ी फसल में 80 सेमी दूरी पर स्थित नालियों में फरवरी में की जाती है.

गन्ने की बुवाई गेहूं में सिंचाई के साथ की जाती है. गेहूं में सिंचाई शाम के समय की जाती है और हल्की पानी नालियों में रहता है तब गन्ने के दो या तीन आंखों वाले टुकड़ों को डाल कर पैरों से कीचड़युक्त नालियों में दबाते हुए चलते हैं. इस विधि में दो फसलें एक साथ लगाने से किसानों को दोहरा लाभ होता है. इस विधि को सहफसली खेती कहते हैं. इस तकनीक के जरिये खेती करने से गेहूं और गन्ना एक साथ उगते हैं जिससे गन्ने की पैदावार घटने की आशंका नहीं रह जाती.

सहफसली खेती से फायदा

इसके अलावा, किसान चाहें तो गन्ने की खेती में हरी खाद, दाल या चारा भी लगा सकते हैं. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही कई फसलों की उपज मिल जाती है. शरदकालीन गन्ने के साथ किसान मटर, मसूर, मेथी और बसंतकालीन गन्ने के साथ मूंग, लोबिया, उड़द आदि को उगाते हैं. गन्ने से पहले हरी खाद के लिए ली गई दलहनी फसल 19 से 43 प्रतिशत गन्ने की पैदावार बढ़ा देती है और 41 से 85 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर जमीन में जमा कर देती है.

 

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