ज्यादा से ज्यादा दूध लेने के लिए कुछ पशुपालक इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं. कुछ दवाइयां भी पशुओं को खिलाई जाती हैं, जिसके चलते कुछ लोगों ने दूध से दूरी बना ली है. दुनियाभर में वीगन कम्यूनिटी के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जो पशुओं से दूध लेने को हिंसा की श्रेणी में रखते हैं. ऐसे में इन दिनों प्लांट बेस्ड मिल्की मांग होने लगी है. वहीं ज्यादातर डायबिटीज पेशेंट भी मवेशियों के दूध में लैक्टोज होने के चलते उसे पीना बंद कर देते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट साइंस एंड टेक्नोंलॉजी (सीफेट) लुधियाना ने एक मशीन बनाई. जिसके माध्यम से मूंगफली से दूध-दही और क्रीम-पनीर तैयार किया जा सकता है, जो मवेशियों से मिलने वाले दूध की तुलना में काफी सस्ता है.
अगर कोई मूंगफली के दूध से बने प्रोडक्ट का छोटे लेवल पर कारोबार करना चाहता है तो सीफेट ने 20 लीटर दूध की क्षमता वाला प्लांट तैयार किया है. इसकी कीमत करीब साढ़े तीन लाख रुपये हैं. अगर कोई चाहता है कि प्लांट की क्षमता 500 से एक हजार लीटर दूध की हो तो प्लांट में इस्तेमाल होने वालीं करीब छह तरह की मशीनों की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. लुधियाना में मूंगफली के दूध से बना पनीर खूब बिक रहा है. कई फर्म अब धीरे-धीरे सीफेट की इस टेक्नोंलॉजी को खरीद रही हैं.
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सीफेट के इस प्रोजेक्ट से जुड़ी रिसर्च स्कॉलर डॉ. नवजोत ने किसान तक को बताया कि बाजार में 120 से 130 रुपये किलो तक बिकने वाली किसी भी वैराइटी की मूंगफली का इस्तेमाल दूध निकालने के लिए किया जा सकता है. एक किलो मूंगफली से सात लीटर तक दूध निकल आता है. जबकि आज बाजार में भैंस का दूध 60 से 65 रुपये लीटर तक बिक रहा है.
मूंगफली के इस दूध से आप दही, पनीर और क्रीम भी बना सकते हैं. पनीर में प्रोटीन की मात्रा भी खूब होती है. इसके साथ ही आप अगर चाहें तो क्रीम से ऑयल भी बनाया जा सकता है. एनीमल मिल्क की तरह से मूंगफली के दूध को चाय, शरबत, लस्सी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फ्लेवर्ड मिल्क बनाकर भी पिया जा सकता है.
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सीफेट के इस प्रोजेक्ट से जुड़ी रिसर्च स्कॉलर डॉ. गुरजीत ने बताया कि विश्व में चीन के बाद मूंगफली उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है. हमारे देश में 10 मिलियन मीट्रिक टन से ज्यादा मूंगफली का उत्पादन होता है. इस लिहाज से मूंगफली के दूध से बने प्रोडक्ट को बाजार में बेचने के लिए कोई भी इस कारोबार को शुरू कर सकता है. देश में मूंगफली की कोई कमी नहीं है. लागत भी ज्यादा नहीं आती है.
डॉ. नवजोत ने बताया कि पहले छीली हुई मूंगफली को कुछ देर के लिए हल्के गर्म पानी में भिगोया जाता है. इसके बाद मूंगफली को एक मशीन में डाला जाता है, जहां मूंगफली के ऊपर से लाल रंग वाला छिलका उतारा जाता है. फिर छिली हुई मूंगफली को कुकर वाले ग्राइंडर में डाला जाता है. जहां एक तय माप के साथ पानी भी डाला जाता है. वहीं मूंगफली ग्राइंड की जाती है. इस दौरान बॉयलर को चालू कर दिया जाता है. फिर बॉयलर की स्टीम कुकर में पहुंचा दी जाती है. तय वक्त के बाद कुकर में वैक्यूम छोड़ा जाता है. जिसके दबाब से वो सारा लिक्विंड एक अलग मशीन में आ जाता है. और फिर उस दूध का छानकर अलग बर्तन में कर लिया जाता है.
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