ओडिशा के रहने वाले 21 साल के छात्र ने खेती की महत्वपूर्ण चुनौती का समाधान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) का इस्तेमाल ऐसे अभूतपूर्व काम को अंजाम दिया है. आज भारत समेत दुनियाभर में उनकी चर्चा है. 21 साल के ऋषिकेश अमित नायक VIT चेन्नई से मेक्ट्रोनिक्स और ऑटोमेशन में बी.टेक ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे हैं. उनका कृषि में क्रांति लाने से लेकर बच्चों में सीखने की अक्षमताओं से निपटने तक, टेक्नोलॉजी ड्रिवेन दृष्टिकोण उन्हें देश और दुनिया में तारीफ दिला रहा है.
ऋषिकेश ओडिशा में एक किसान परिवार में पले-बढ़े हैं. उनके जीवन में साल 2017 में एक निर्णायक मोड़ आया, जब राज्य में एक विनाशकारी कृषि संकट से सबका सामना हुआ, उस समय ऋषिकेश 9वीं कक्षा के छात्र थे और उन्होंने फसल विफलताओं के दुखद परिणामों को सीधे तौर पर देखा था. इनमें किसानों की आत्महत्या, कीटों के आक्रमण और ग्रामीण समुदायों को जकड़ने वाली निराशा की कहानियां शामिल हैं. इस बुरे अनुभव के बाद ऋषिकेश ने तकनीक के इस्तेमाल से भारत के किसानों की आजीविका की रक्षा का मिशन अपने जिम्मे ले लिया.
ऋषिकेश के इस मिशन को पूरा करने के क्रम में 'Kishan Know- किसान नो' की स्थापना की है. यह AI से चलने वाला कृषि-तकनीक उद्यम है, जिसका उद्देश्य कीट और सूक्ष्मजीव प्रकोपों को रोकना है. यह प्लेटफ़ॉर्म स्थान, फसल के प्रकार, रोपण और कटाई की तारीखों से संबंधित चार बुनियादी सवालों के माध्यम से महत्वपूर्ण फसल डेटा जमा करता है. फिर यह फसल के स्वास्थ्य की निगरानी करने और हर 48 घंटे में किसानों को समय पर SMS और WhatsApp अलर्ट भेजने के लिए सैटेलाइट थर्मल इमेजरी और AI एनालिटिक्स का इस्तेमाल करता है.
इस उद्यम की मात्र 85 रुपये प्रति एकड़ प्रति माह की दर से पेश की जाने वाली यह सेवा सुलभ, स्केलेबल है और पहले से ही किसान समुदायों में एक ठोस प्रभाव डाल रही है. किसान WhatsApp के माध्यम से ऑप्ट इन कर सकते हैं और नवाचार और जमीनी स्तर पर आउटरीच का एक संयोजन के रूप में व्यक्तिगत सहायता हासिल कर सकते हैं. आने वाले महीनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने की योजना के साथ, किसान नो दुनिया में कृषि में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में खुद को स्थापित करने जा रहा है.
हालांकि, ऋषिकेश की महत्वाकांक्षाएं खेती से भी परे हैं. DAIRA EdTech Pvt Ltd के सह-संस्थापक के रूप में, उन्होंने विशिष्ट शिक्षण अक्षमताओं (SLDs) वाले बच्चों में प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप के लिए AI-संचालित प्लेटफ़ॉर्म जिवेशा भी बनाया है. भाषाई और सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के पार काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया, जिवेशा पारंपरिक शिक्षण वातावरण में संघर्ष कर रहे बच्चों के लिए समावेशी स्क्रीनिंग, अनुकूलित हस्तक्षेप योजनाएं और सहायता प्रणाली प्रदान करता है.
भारत सरकार के इंडियाएआई मिशन के तहत मान्यता प्राप्त यह प्लेटफ़ॉर्म शिक्षा-उद्योग के बीच की खाई को पाटने में मदद कर रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि कोई भी बच्चा बिना निदान किए संज्ञानात्मक चुनौतियों के कारण पीछे न छूट जाए. ऋषिकेश को जो चीज़ अलग बनाती है, वह सिर्फ़ उनकी तकनीकी प्रतिभा नहीं है - जो कई हैकाथॉन जीत और प्रशंसाओं से प्रदर्शित होती है, बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए उनका जुनून है.
एआई, मशीन लर्निंग और सैटेलाइट डेटा जैसी उभरती हुई तकनीकों का उपयोग करके, वे अक्सर विकास के हाशिये पर रह जाने वाले समुदायों के लिए व्यावहारिक, जीवन बदलने वाले समाधान तैयार कर रहे हैं. समावेशी नवाचार के उनके दृष्टिकोण को व्यापक रूप से ध्यान मिल रहा है, उनके काम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाया गया है. कई लोगों के लिए, ऋषिकेश भारत के युवाओं की परिवर्तनकारी बदलाव लाने की क्षमता का प्रतीक है. (अजय कुमार नाथ की रिपोर्ट)
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