अब किसानों के लिए मुश्किल नहीं काजू की गिरी निकालना, कृषि विभाग ने ढूंढी इसकी नई तकनीक

अब किसानों के लिए मुश्किल नहीं काजू की गिरी निकालना, कृषि विभाग ने ढूंढी इसकी नई तकनीक

पूरी दुनिया के काजू उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत से अधिक है. ऐसे केरल में किसान सबसे अधिक काजू का उप्तादन करते हैं. देश में 28.09 प्रतिशत काजू का उत्पादन केरल में ही होता है. इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है.

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अब किसानों के लिए मुश्किल नहीं काजू की गिरी निकालना, कृषि विभाग ने ढूंढी इसकी नई तकनीककाजू उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी. (सांकेतिक फोटो)

काजू की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है. अब उन्हें काजू की गिरी निकालने के लिए परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. कृषि विशेषज्ञों ने इंजीनियरों के सहयोग से एक ऐसी मशीन बनाई है, जिससे  काजू की गिरी निकालना आसान हो गया है. यानी अब किसान कम समय में बहुत अधिक काजू की गिरी निकाल पाएंगे. इससे उन्हें पहले के मुकाबले अधिक मुनाफा होगा. क्योंकि इस नई तकनीक के आने से मजदूरों की कम जरूरत पड़ेगी, जिससे किसानों को रोज की देहाड़ी की बचत होगी. वहीं, इस खबर से काजू उत्पादक किसानों के बीच खुशी की लहर है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, आम तौर पर काजू उत्पादक किसान मैन्युअली काजू की गिरी निकालते हैं. इससे समय की बहुत अधिक बर्बादी होती है और प्रोडक्शन भी कम होता है. साथ ही किसानों को मजदूरों के ऊपर भी अधिक खर्च करने पड़ते हैं. इससे किसानों को उतना अधिक फायदा नहीं होता था. ऐसे में किसानों की परेशानी को देखते हुए पंजी स्थित कृषि निदेशालय ने एक ऐसी मशीन बनाई, जिससे काजू की गिरी निकालना आसान हो गया है.

इस तरह होगा किसानों को फायदा

खास बात यह है कि इस मशीन को डिजाइन करने के लिए इंजीनियरों की एक टीन को भी शामिल किया गया है. कृषि निदेशक, नेविल अल्फांसो ने कहा कि इस तकनीक के विकसित होने से काजू उत्पादकों को काफी फायदा होगा. उन्होंने कहा कि कृषि विभाग और बिट्स पिलानी जैसे शैक्षणिक संस्थान आने वाले समय में किसानों को नई तकनीक देने के साथ- साथ फसल की बर्बादी भी रोकने में मदद करेंगे. उनकी माने तो काजू की गिरी निकालने के बाद भारी मात्रा में रेशेदार अवशेष बच जाते हैं, जिसका कोई उपयोग नहीं होता है. 

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उर्वरक के रूप में कर सकते हैं इस्तेमाल

अल्फांसो ने कहा कि काजू के इन अवशेषों में फाइबर के साथ- साथ भारी में पोषक तत्व पाए जाते हैं. उनकी माने तो हर साल देश में हजारों टन काजू के अवशेष बर्बाद हो जाते हैं. क्योंकि इसमें अधिक एसिडिटी होने के चलते मवेशियों के लिए उपयोगी नहीं होता है. हालांकि, इसमें कई ऐसे गुण मौजूद हैं जो जैविक उर्वरक के रूप में काम कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि फिर भी, इसका उच्च पीएच स्तर सीधे मिट्टी निपटान के लिए एक चुनौती पैदा करता है. इसलिए उसके ऊपर वैज्ञानिक शोध की जरूरत है.

केरल में होती है सबसे अधिक काजू की खेती 

बता दें कि देश के कई राज्यों में किसान काजू की खेती करते हैं. पूरी दुनिया के काजू उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत से अधिक है. ऐसे केरल में किसान सबसे अधिक काजू का उप्तादन करते हैं. देश में 28.09 प्रतिशत काजू का उत्पादन केरल में ही होता है. इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है. इसकी काजू प्रोडक्शन में हिस्सेदारी 20.31 प्रतिशत है. हालांकि, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू में भी इसकी बड़े स्तर पर खेती की जाती है.

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