बीज से मखाने तैयार करने में अब नहीं जलेंगे क‍िसानों के हाथ, सीफेट ने बनाई मशीन 

बीज से मखाने तैयार करने में अब नहीं जलेंगे क‍िसानों के हाथ, सीफेट ने बनाई मशीन 

सीफेट खुद भी फूड आइटम से जुड़ी मशीनें बनाता है. मशीन बनाने के बाद उसकी टेक्नोलॉजी बाजार में 'नो प्रोफिट और नो लॉस' पर बेच दी जाती है. स्टार्टअप कंपनी या फिर दूसरे लोग उस टेक्नोलॉजी से मशीन बनाकर अपने कारोबार को आगे बढ़ाते हैं. 

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बीज से मखाने तैयार करने में अब नहीं जलेंगे क‍िसानों के हाथ, सीफेट ने बनाई मशीन मखाना प्रोसेसिंग यूनिट की दो मशीन.

कई-कई घंटे तक पानी में खड़े रहना. हाड़-तोड़ मेहनता करना. फिर दहकती हुई भट्टी पर गर्म रेत में बीज से मखाना तैयार करना. इस दौरान एक नहीं कई बार क‍िसानों के हाथ भी जलते हैं. फिर भी लगातार कोशिश यही रहती है कि मखाना अच्छे से फूल जाएंं, जिससे बाजार में चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, लेकिन अब बीज से मखाना तैयार करने में हाथ नहीं जलेंगे. इतना ही नहीं मखाना खूब फूलेगा भी. मशीनों से छोटे-बड़े मखाने अलग-अलग कर पैकिंग भी की जा सकेगी. इसके लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोललॉजी (सीफेट), लुधियाना ने मखाना प्रोसेसिंग पायलट प्लांट तैयार किया है. 

सीफेट के डायरेक्टर डॉ. नचिकेता कोतवाली बताती हैं क‍ि मखाना प्रोसेसिंग प्लांट को लगाकर दो तरह से इनकम की जा सकती है. एक तो यह कि आप अपने मखाने तैयार कर बेचें. साथ ही फेब्रिकेशन पर दूसरे के मखाने तैयार कर पैसे कमाए जा सकते हैं. क्योंकि इस मशीन से एक घंटे में 15 से 20 किलो मखाने तैयार किए जा सकते हैं. जबकि मौजूदा तरीके से दिनभर में 12 से 15 किलो तक ही मखाने तैयार हो पाते हैं. इस प्लांट की कीमत 10 लाख रुपये है. 

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ऐसे काम करता है सीफेट का मखाना प्रोसेसिंग प्लांट

सीफेट के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. रंजीत सिंह ने किसान तक को बताया कि बीज से मखाना तैयार करने का ट्रेडिशनल तरीका बहुत ही जोखिम भरा है. गर्म बीज हाथ पर रखकर लकड़ी के डंडे से फोड़े जाते हैं. मखाने का काम करने वालों की हथेलियों को देखकर आप खुद इसका अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना दर्द सहकर वो मखाने तैयार करते हैं. किसानों के इसी दर्द को समझते हुए सीफेट ने पांच मशीनों वाला मखाना प्रोसेसिंग प्लांट तैयार किया है. यह पूरी तरह से कामयाब है. 

अब अगर इसके काम करने के तरीके की बात करें तो सबसे पहले बीज को धोया जाता है. उसके बाद एक मशीन में डालकर बीज की ग्रेडिंग की जाती है. इस मशीन से छोटे-बड़े हर साइज के बीच अलग-अलग हो जाते हैं. इसके बाद बीज को ड्रायर में सुखाया जाता है, जबकि धूप में सुखाने से कोई बीज पूरी तरह से सूख जाता है तो कोई कम सूख पाता है. ड्रायर से निकालकर बीज को रोस्ट (भूना) किया जाता है. इसमे लोहे की भारी कढ़ाही होती है. कढ़ाही के नीचे गैस के बर्नर जलते हैं. कढ़ाही में हाथ के जैसे लोहे के दो पंजे लगे रहते हैं. पंजे से बीज चलाए जाते हैं. 

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फिर भुने हुए बीज को एक बोरे में भरकर रातभर के लिए रख दिया जाता है. सुबह के वक्त बीज की पोपिंग की जाती है. बीज मशीन में डाले जाते हैं. मशीन के चैम्बर का तापमान 300 से 350 डिग्री होता है. इस तापमान पर बीज फूलकर मखाना बन जाता है. इसके बाद एक बार फिर मखाने की ग्रेडिंग की जाती है. ग्रेडिंग मशीन से हर साइज के मखाने अलग-अलग किए जाते हैं.      

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