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IFS: हर रोज होगी 3-4 हजार रुपये की कमाई, जानें क्या है ये सिस्टम और क्या हैं इसके फायदे?

IFS: हर रोज होगी 3-4 हजार रुपये की कमाई, जानें क्या है ये सिस्टम और क्या हैं इसके फायदे?

IFS तकनीक से किसान एक हेक्यर में खेती करता है, तो वह रोजाना लगभग तीन से चार हजार रूपये कमा सकता है. वहीं उसे अपनी घरेलू दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए फल, सब्जी ,औषधि,दूध,अनाज भी मिल जाता है. इस तरह इस IFS तकनीक का दोहरा लाभ है .

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IFS  तकनीक से खेती करने से एक दिन में लगभग तीन से चार हजार की आमदनी हो सकती है IFS तकनीक से खेती करने से एक दिन में लगभग तीन से चार हजार की आमदनी हो सकती है

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (IFS) किसान के लिए आय का एक बेहतर जरिया बन सकता है. अगर फसल प्राकृतिक आपदाओं  से प्रभावित होती है तो भी वह इस मॉडल के जरिए दुग्ध उत्पाद, मशरूम, अंडे, मछली आदि बेचकर अपनी दैनिक आय जारी रख सकता है.अगर कोई किसान IFS तकनीक का उपयोग  एक हेक्टेयर खेत में  करता है, तो वह प्रति दिन लगभग तीन से चार हजार रुपये कमा सकता है, वहीं दूसरी ओर  उसके लिए फल, सब्जियां, दवा, दूध, अनाज और गैस की अपनी  दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकता है . इस तरह इस सिस्टम से दोहरा लाभ है. तो जानिए तैयार होता है इंटीग्रेटेड फार्मिंग का IFS मॉडल, किस तरह से किसानों को मिलता है लाभ

फसल चक्र पर विशेष ध्यान दें

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि विज्ञान विभाग के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि  अगर कोई किसान एक हेक्टेयर क्षेत्र में इस तकनीक से खेती करना चाहता है तो लगभग 0.7 हैक्टेयर में फसलें उगा सकता है. इसके लिए फसल चक्र में बेबी कॉर्न, बरसीम, बेबी कॉर्न, मक्का-सरसों-सूरजमुखी, मक्का-सब्जी, टमाटर-भिंडी, मल्टी कट ज्वार, आलू-प्याज, मक्का-गेहूं-बीन, धान-गेहूं-बीन, लौकी-गेंदा-बहु-कट ज्वार, अरहर-गेहूं - बेबीकॉर्न और बैंगन - पेड़ी बैंगन - फसलें पैदा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आईएफएस मॉडल में किसान को  अधिक लाभ  के लिए अच्छा फसल चक्र अपनाना चाहिए.

डेयरी से इनकम में इजाफा, लागत में कमी

डॉ. राजीव के अनुसार IFS  मॉडल में लगभग 0.05 हेक्टेयर में बागवानी करनी चाहिए, जिसमें आम, अमरूद, अनार, नींबू, कटहल, करौंदा और केला लगाना चाहिए. उन्होंने कहा कि एक हेक्टेयर भूमि के दुग्ध उत्पादन के हिसाब से किसान अपने खेत में कम से कम 3 गाय या भैंस पाल सकते हैं.इसके लिए आप साहीवाल, गिर, जर्सी और मुर्रा, भदावरी जैसी गायें रख सकते हैं और दूध बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं फसलों के लिए गोबर की खाद वर्मीकम्पोस्ट और बायो सेलेरी से प्राप्त होती है.

मछली के साथ बत्तख और मुर्गियां पालें

डॉ. राजीव ने बताया कि मछली पालन के लिए 0.1 हेक्टेयर क्षेत्र की आवश्यकता होती है.  मछली से अच्छे उत्पादन के लिए तालाब में कटला, मृगल और रोहू को पाला जाता है. इसके साथ  बत्तख, मुर्गी  को पाला जाता है जिससे बाहर के चारे की बहुत कम जरूरत  होती है. इससे लागत कम आती है. कुक्कुट पालन में कैरी देवेंद्र, फ्रीजल, असिल, कड़कनाथ नाकानेद, ग्रामप्रिया, श्रीनिधि, वनराज, धनराजा, कालाहांडी, कलिंग ब्राउन को पालकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. बत्तख और मुर्गियों को तालाब की सतह पर पाला जाना चाहिए ताकि इनसे बचा हुआ आहार और इनका मल सीधे तालाब में गिरे जिससे  मछली इसे भोजन के रूप में ग्रहण करती है, इससे लागत कम आती है और जब  बत्तख तालाब में तैरती है तो तालाब में ऑक्सीजन बढ़ जाती है, जो मछलियों के विकास के लिए अच्छा है.

मधुमक्खी और कृषि वानिकी 

डॉ राजीव कुमार सिंह ने किसान तक से  कहा कि इसके अलावा मशरूम उत्पादन के साथ ही मधुमक्खी पालन के लिए 1 हेक्टेयर भूमि में 4 बॉक्स रख सकते है. एक बॉक्स की कीमत लगभग 3500 होती है इस तरह एक बार में एक बॉक्स से 2 किलो शहद प्राप्त होता है, लगभग 10-15 दिन में एक बार शहद मिल जाता है .इसे बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. कृषि-वानिकी प्रणाली के तहत सहजन लगा सकते हैं.  सहजन की साल में दो बार फसल देने वाली उन्नतशील प्रजातियों में पी. के. एम. 1, पी. के. एम. 2. कोयेंबटूर 1 तथा कोयेंबटूर  2 प्रमुख प्रजातियां है.  सहजन से साल में एक पौधे से लगभग 40-50 किलो ग्राम उपज प्राप्त हो जाती है.

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फार्म वेस्ट और डेयरी वेस्ट से बनाएं खाद

डॉ राजीव के मुताबिक आईएफएस तकनीक में वर्मी कम्पोस्ट व जीवांश खाद  रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में सस्ती और पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त हैं. आईएफएस मॉडल में फार्म पर बर्मी कम्पोस्ट बना कर पशुओं के मूत्र व गोबर, कूड़ा-कचरा, अनाज की भूसी, राख, फसलो एवं फलों के अवशेष इत्यादि से बेहतर जैविक खाद बना कर फसलों में इस्तेमाल कर लागत को कम करने के साथ ही अपने खेत को उपजाऊ बनाए रख सकते हैं.  वहीं फार्म के चारदीवारी पर सेम की खेती करके अच्छी उपज ली जा सकती है. वहीं यह  एक उपयोगी दलहनी फसल है, जिसकी फली, बीज, जड़ें, फूल और पत्तियां खाने के काम में आती हैं.