आलू किसानों को ध्यासन में रखते हुए पंजाब एग्रीकल्चकरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना ने एक टेक्नोलॉजी तैयार की है. इसके इस्तेमाल से किसानों को डबल फायदा होगा. लेकिन इसके साथ ही हलवाई की दुकान, रेस्टोरेंट और होटल चलाने वालों को भी इसका फायदा मिलेगा. पीएयू ने उस आलू का इंग्रीडेंटस समेत पाउडर बनाया है जो चिप्स और फ्रेंच फाई के काम नहीं आता है. इससे किसान को अपना आलू उस वक्त चार से पांच रुपये किलो नहीं बेचना पड़ेगा जब बाजार में रिटेल के दामों पर 20 से 25 रुपये किलो तक बिक रहा होता है. साथ ही आलू बेचने के लिए बाजार के चक्कर नहीं लगाने होंगे.
वहीं इंग्रीडेंटस वाले पाउडर से पराठे, समोसे और आलू की टिक्की बेचने वालों का भी वक्त बचेगा. पीएयू के एक्सपर्ट का मानना है कि साल के 12 महीने आलू की सबसे ज्यादा खपत इन्हीं तीन चीजों में सबसे ज्यादा होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए इंग्रीडेंटस वाला आलू का पाउडर बनाने की टेक्नोलॉजी तैयार की गई है.
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पीएयू की प्रोफेसर डॉ. पूनम सचदेव ने किसान तक को बताया कि अगर किसान चाहे तो वो भी अपने खेत में इस यूनिट को लगा सकता है. अगर 100 किलो प्रति दिन पाउडर की क्षमता वाली यूनिट की बात करें तो इसकी लागत करीब 15 लाख रुपये आएगी. क्योंकि इसके लिए एक बॉयलर और एक पैकिंग मशीन खरीदनी होगी.
और यह लागत भी तब आएगी जब आपके पास बिल्डिंग पहले से ही मौजूद हो. अगर कॉटेज स्केल यूनिट की बात करें तो यह दो लाख रुपये में शुरू हो जाएगी. और अगर पानी और बिजली की सुविधा वाला एक हॉल पहले से तैयार है तो फिर 4.5 लाख रुपये और खर्च करने की जरूरत नहीं होगी. इसमे कुछ छोटे उपकरण का इस्तेमाल करके इसे चलाया जा सकता है.
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डॉ. पूनम ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी की मदद से आलू से बनाए गए पाउडर की लाइफ एक साल होगी. आलू की टिक्की, समोसे, पराठे और दूसरे खाने-पीने के सामान का इंग्रीडेंटस आलू के पाउडर में मिलाने के बाद इसे एक साल तक आराम से इस्तेमाल किया जा सकेगा. लेकिन इस यूनिट को तैयार करने के लिए पहले पीएयू से इसकी टेक्नोलॉजी लेनी होगी. इसके लिए एक एमओयू साइन करना होगा. इसकी कीमत करीब 30 हजार रुपये है. इसके लिए पीएयू से ईमेल tmiprc@pau.edu. पर संपर्क किया जा सकता है.
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