दिल्ली में अगले कुछ दिनों में तीन साल पहले हुए किसान विरोध प्रदर्शन की कहानी दोहराई जाने वाली है. 200 यूनियनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया है और अब वह दिल्ली की तरफ बढ़ने की तैयारी कर रहे हैं. साल 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले, किसानों की तरफ से दिल्ली मार्चा के तहत ट्रैक्टरों के साथ पैदल मार्च करने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली को किले में बदल दिया गया है.
तीन साल पहले, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने एक प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन वो कड़कड़ाती ठंड में महीनों तक टिकरी बॉर्डर पर बैठे रहे. यह किसान तब तक वहां पर बैठे रहे जब तक कि पीएम मोदी तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए सहमत नहीं हो गए. उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू करने की गारंटी की भी मांग की. दिल्ली में दाखिल होने की कोशिश करने पर विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था. 26 जनवरी 2021 को नई दिल्ली में बड़े पैमाने पर हलचल देखी गई थी. जब ट्रैक्टर रैली के साथ प्रदर्शन करते किसानों का एक हुजूम लाल किले की ओर बढ़ गया.
19 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा की कि केंद्र ने साल 2020 में संसद पास तीन कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला किया है. हालांकि नए सिरे से किसानों का विरोध प्रदर्शन, जिसे पीएम मोदी सरकार के सामने टिकने में सक्षम माना जाता है, 2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मोदी सरकार के बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
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पीएम मोदी, जवाहर लाल नेहरू की बराबरी करते हुए, लगातार तीसरी बार जीत की उम्मीद कर रहे हैं. ऐसे में किसानों का यह विरोध चिंता का विषय बन गया है. प्रदर्शन ऐसे समय में हो रहे हैं जब बीजेपी जल्द होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटी हुई है.
दिसंबर 2023 में तीन विधानसभा चुनावों में जीत से जहां पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा तो वहीं किसानों का विरोध चिंता को बढ़ा रहा है. गौरतलब है कि विरोध प्रदर्शन करने वाले किसान पंजाब, हरियाणा और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश से आते हैं. हिंदी बेल्ट के अलावा तमिलनाडु के किसान भी इसमें शामिल हो गए हैं.
तमिलनाडु वह राज्य है जहां पर पीएम मोदी पकड़ बनाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. इसका मतलब यह है कि किसानों का विरोध प्रदर्शन पीएम मोदी की हिंदी हार्टलैंड पर मजबूत पकड़ के साथ-साथ भारत के दक्षिणी राज्यों को प्रभावित करने के उनकी चुनौतियों को दोगुना कर सकता है. फिलहाल सरकार इस प्रदर्शन से कैसे निबटा जाए, इस बारे में मंथन करने में लगी हुई है.15 फरवरी को प्रदर्शन का अहम दिन होगा क्योंकि इस दिन शाम पांच बजे किसानों की सरकार के साथ वार्ता होनी है.
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