पिछले दो साल से मिल रहे अच्छे दाम की वजह से रबी फसल सीजन 2022-23 में किसानों ने जमकर सरसों की बुवाई की है. इससे बंपर पैदावार का अनुमान है. जिससे रेट में कमी हो सकती है. अभी अलग-अलग मंडियों में सरसों का दाम 6000 से 6800 रुपये प्रति क्विंटल तक है. लेकिन, मार्च-अप्रैल 2023 तक नई फसल आने के साथ इसका भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे आ सकता है. क्योंकि पॉम और सोयाबीन ऑयल के भाव में पहले ही काफी नरमी दिखाई दे रही है. मस्टर्ड ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन (मोपा) ने ऐसा अनुमान लगाया है. दूसरी ओर, बाजार के कुछ जानकारों का कहना है कि रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद हम खाद्य तेलों के लिए दूसरे देशों पर ही निर्भर रहेंगे. ऐसे में कम से कम सरसों और उसके तेल के भाव में कमी आने की गुंजाइश कम है.
मोपा के संयुक्त सचिव अनिल चतर ने 'किसान तक' से बातचीत में बताया कि इस समय सरसों तेल के मुकाबले सोया तेल 8 रुपये किलो नीचे है और पॉम ऑयल का दाम 35 रुपये कम है. सरसों तेल का थोक भाव 138 रुपये है. सोयाबीन तेल का 130 और पॉम ऑयल का रेट 105 रुपये प्रति लीटर है. ऐसे में नई फसल आने के बाद हालात और बदल जाएंगे. सरकार ने तिलहन का वायदा बाजार बंद कर दिया है. इसकी वजह से भी बाजार में नरमी रहेगी. मोपा के पदाधिकारी चतर का कहना है कि 2023 में किसानों को सरसों का कम भाव मिलेगा तो 2024 में फिर से बुवाई कम होगी और तेल का दाम महंगा हो जाएगा.
हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा गठित एमएसपी कमेटी के सदस्य बिनोद आनंद मोपा के इस तर्क से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि सरसों की अधिक बुवाई भारत के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि हम इस मामले में दूसरे देशों पर निर्भर हैं. ऐसे में तिलहन फसलों का जितना उत्पादन होगा, खाद्य तेल एक्सपोर्ट पर खर्च उतना ही कम होगा.
भारत में खाद्य तेलों की घरेलू मांग लगभग 250 लाख टन है, जबकि उत्पादन औसत 112 लाख टन ही है. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि सरसों का उत्पादन ज्यादा होने से इसका भाव एमएसपी से कम हो जाएगा. जबकि, तिलहन फसलों में सरसों का योगदान सिर्फ 26 फीसदी ही है. किसानों को दुविधा में रखकर उनमें डर पैदा करने के लिए माहौल बनाया जा रहा है. ताकि वो औने-पौने दाम पर व्यापारियों को सरसों बेच दें.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक रबी सीजन 2022-23 में 23 दिसंबर तक रिकॉर्ड 92.67 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हो चुकी है. जबकि पिछले साल इस अवधि तक सिर्फ 85.35 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी. सीजन खत्म होने के बाद 2021-22 में इसका रकबा 91.44 लाख हेक्टेयर था. दो साल पहले 2020-21 में इसका क्षेत्र महज 73.12 लाख हेक्टेयर ही था. हालांकि, सरकार सरसों की खेती का नार्मल एरिया 63.46 लाख हेक्टेयर ही मानती है.
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